विकास

बैंकों से कहीं बेहतर स्थिति में हैं स्वयं सहायता समूह, आर्थिक सर्वेक्षण में की गई तारीफ

DTE Staff

केंद्रीय वित्त मंत्री द्वारा 31 जनवरी को संसद में प्रस्तुत किए गए आर्थिक सर्वेक्षण 2022-2023 में भारत के ऐसे बैंकिंग संचालन का विशेष उल्लेख किया गया है, जिसकी चर्चा बहुत कम होती है, लेकिन इसका प्रभाव बहुत अधिक है। इसे महिलाओं के नेतृत्व वाले स्वयं सहायता समूह (एसएचजी) के नाम से जाना जाता है, जो हर साल औसतन अरबों रुपए का लेनदेन करता है।

भारत में लगभग 1.2 करोड़ स्वयं सहायता समूह हैं, इनमें 88 प्रतिशत ऐसे समूह ऐसे हैं, जिनकी सभी सदस्य महिलाएं हैं। इन समूहों में आमतौर पर 20-25 सदस्य होते हैं, जो ज्यादातर गांवों के निवासी होते हैं। 1992 में, इन समूहों को छोटे ऋणों के वितरण के लिए बैंकों से जोड़ा गया था - जिसे एसएचजी बैंक लिंकेज प्रोजेक्ट (एसएचजी-बीएलपी) कहा जाता है। इस प्रोजेक्ट के तहत आजीविका के लिए छोटे-छोटे ऋण दिए जाते हैं।

2022 तक, ये समूह एक वित्तपोषण संचालन संचालित करते हैं जिसे दुनिया की सबसे बड़ी माइक्रोफाइनेंस परियोजना माना जाता है। आर्थिक सर्वेक्षण 2022-2023 में उद्धृत आंकड़ों के अनुसार, एसएचजी-बीएलपी से लगभग 14.2 करोड़ परिवार जुड़े हैं, जहां अपनी बचत का लगभग 47,240 करोड़ रुपए जमा है।

सर्वेक्षण 2022-2023 बताता है कि पिछले दस वर्षों (वित्त वर्ष 2013 से लेकर 2022 तक ) के दौरान एसएचजी क्रेडिट लिंक्ड की संख्या 10.8 प्रतिशत चक्रवृद्धि वार्षिक विकास दर ( सीएजीआर) से बढ़ी है, जबकि इसी अवधि के दौरान ऋण वितरण में 5.7 प्रतिशत सीएजीआर से वृद्धि हुई है।

आर्थिक सर्वेक्षण 2022-2023 रिपोर्ट में यह कई बार उल्लेख किया गया है कि भारत के वाणिज्यिक बैंकों की बैलेंस शीट कितनी अच्छी है। लेकिन यह ज्यादातर गैर-निष्पादित ऋणों (एनपीए) को बड़े पैमाने पर माफ करने के कारण है।

लेकिन एसएचजी-बीएलपी के तहत शायद ही कोई ऋण माफ करने योग्य हो। आर्थिक सर्वेक्षण 2022-2023 कहता है, "एसएचजी का बैंक पुनर्भुगतान 96 प्रतिशत से अधिक है, जो उनके क्रेडिट अनुशासन और विश्वसनीयता को रेखांकित करता है।"

देश भर में लगभग सभी राज्य स्वयं सहायता समूहों के लिए विशेष आर्थिक पैकेज घोषित कर रहे हैं, जिसे राज्यों ने अपने समग्र आजीविका विकास कार्यक्रमों का हिस्सा बनाया है। राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (एनआरएलएम) के तहत, सरकार ने 2024 तक प्रत्येक स्वयं सहायता समूह की आय को 1 लाख रुपये तक बढ़ाने का लक्ष्य रखा है। ऐसा करने के लिए, आजीविका विकास से जुड़ा माइक्रोफाइनेंस प्रमुख रणनीति है।

2021 में, सरकार ने अपने कोविड-19 महामारी प्रोत्साहन पैकेज के तहत स्वयं सहायता समूहों के लिए गारंटी मुक्त उधारी की सीमा 10 लाख से बढ़ा कर 20 लाख रुपए कर दी गई थी। इससे कथित तौर पर 63 लाख महिला स्वयं सहायता समूह और 6.85 करोड़ परिवार लाभान्वित हुए।

देश की अर्थव्यवस्था की स्थिति बताने और विकास नीतियों पर सिफारिशों करने वाले आर्थिक सर्वेक्षण में तर्क दिया गया है कि महिला स्वयं सहायता समूह को ग्रामीण विकास का केंद्र बनाया जाना चाहिए क्योंकि वे पहले से ही एक प्रभावी स्थानीय सामुदायिक संस्था के रूप में प्रदर्शित हो चुकी हैं।

आर्थिक सर्वेक्षण में कहा गया है, “यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि 75 प्रतिशत से अधिक ग्रामीण महिला श्रमिक कृषि क्षेत्र में कार्यरत हैं। इसका तात्पर्य कृषि से संबंधित क्षेत्रों जैसे कि खाद्य प्रसंस्करण में महिलाओं के कौशल को बढ़ाने और रोजगार सृजित करने की आवश्यकता है। यहां, स्वयं सहायता समूह (एसएचजी) वित्तीय समावेशन, आजीविका विविधीकरण और कौशल विकास के ठोस विकासात्मक परिणामों में ग्रामीण महिलाओं की क्षमता को आकार देने के साथ-साथ उनकी उपज के लिए बाजार उपलब्ध कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।


पिछले सितंबर में, प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने मध्य प्रदेश में स्वयं सहायता समूहों के सदस्यों की एक विशाल सभा को संबोधित करते हुए कहा था, "समय के साथ, 'स्वयं सहायता समूह' 'राष्ट्र सहायता समूह' में बदल जाते हैं।" उसी बैठक में, उन्होंने यह भी वादा किया कि आने वाले समय में देश के प्रत्येक ग्रामीण परिवार में से एक सदस्य स्थानीय स्वयं सहायता समूह में शामिल होगा।