अमेठी जिले के ब्रहमनी गांव में मनरेगा के तहत कार्य करते ग्रामीण। फोटो: गौरव गुलमोहर 
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कोरोना की दूसरी लहर और मनरेगा-6: उत्तर प्रदेश के कई गांवों में एक भी ग्रामीण को नहीं मिला काम

कोविड-19 की दूसरी लहर के दौरान जब लोग बेरोजगार थे, उस समय उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनाव चल रहे थे, जिस वजह से लोगों को मनरेगा का काम भी नहीं मिला

Gaurav Gulmohar

कोविड-19 महामारी के पहले दौर में महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) ने ग्रामीणों को बहुत सहारा दिया। सरकार ने भी खुल कर खर्च किया। लेकिन कोविड-19 की दूसरी लहर में मनरेगा ग्रामीणों के लिए कितनी फायदेमंद रही, यह जानने के लिए डाउन टू अर्थ ने देश के पांच सबसे बड़ी जनसंख्या वाले राज्यों में मनरेगा की जमीनी वस्तुस्थिति की विस्तृत पड़ताल की है। इस कड़ी की पहली रिपोर्ट में आपने पढ़ा, सरकार ने नियमों में किया बदलाव और दूसरी कड़ी में आपने पढ़ा, मध्य प्रदेश में मनरेगा का हाल। तीसरी कड़ी में बिहार की स्थिति का आकलन किया गया था। अगली कड़ी में आपने पढ़ा, राजस्थान में इस बार मनरेगा नहीं बना मददगार । अगली कड़ी में छत्तीसगढ़ में मनरेगा का हाल के बारे में आपने पढ़ा। अब पढ़े उत्तर प्रदेश का हाल - 

कोविड-19 की दूसरी लहर में भी बड़ी संख्या में मज़दूर शहर से गांव की ओर आए। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक साल 2020 में 1,500 से अधिक स्पेशल ट्रेनों से 21 लाख से अधिक संख्या में प्रवासी श्रमिक देश के विभिन्न हिस्सों से उत्तर प्रदेश लौटे थे। हालांकि महामारी की दूसरी लहर में प्रदेश के गांवों में कुल कितने श्रमिक लौटे हैं इसका कोई आधिकारिक आंकड़ा उपलब्ध नहीं है।

प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस साल के शुरू में गांवों में ज्यादा से ज्यादा लोगों को रोजगार से जोड़ने के लिए बड़ी पहल करते हुए महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) के बजट को 8500 करोड़ सालाना से बढ़ाकर 15 हजार करोड़ करने के निर्देश दिया था।

बढ़े बजट के कारण गांव-गांव में मनरेगा के तहत हर हाथ को काम मिलना तय माना जा रहा था, लेकिन बड़ी संख्या में गांव लौटे प्रवासी मज़दूरों के हाथ को काम नहीं मिल सका।

कौशांबी जिले के सिराथू ब्लॉक में विकास खण्ड अधिकारी के अनुसार कुल 21023 लोगों को मई महीने में मनरेगा के तहत रोजगार दिया गया। सिराथू ब्लॉक के कइनी गांव में जब डाउन टू अर्थ ने बात की तो पता चला कि पिछले तीन महीने क्रमशः मार्च, अप्रैल और मई महीने में एक भी व्यक्ति को मनरेगा के तहत रोजगार नहीं मिला।

कइनी ग्राम प्रधान बलराम सरोज ने डाउन टू अर्थ को बताया कि गांव में बाहर से तीस से अधिक मज़दूर आये हैं और वे सभी मनरेगा में काम कर रहे हैं। वे बताते हैं कि "पिछले तीन महीने से पंचायत चुनाव के कारण मनरेगा का काम बंद है। लॉकडाउन के दौरान मई महीने में एक भी दिन मनरेगा का काम नहीं चला। जून महीने में 30-40 मज़दूरों ने काम शुरू किया। आज दस दिन बाद लगभग सौ मज़दूर काम पर आने लगे हैं।"

कौशाम्बी जिले के मंझनपुर ब्लॉक के चकथाम्भा गांव की स्थिति भी कुछ ऐसी ही है। गांव की आबादी लगभग 4600 की है और 549 लोगों का जॉब कार्ड बना है। चकथाम्भा निवासी दीपक कुमार कहते हैं कि "कोरोना की दूसरी लहर में 150 से अधिक लोग शहर से गांव आये हैं। वे कहते हैं कि "गांव में दो महीने से अधिक समय से मनरेगा का काम बंद है। बल्कि पिछले साल मनरेगा में ठीक-ठाक काम मिला था इस साल काम न के बराबर मिला है। जो बाहर से 150 लोग आये हैं निश्चित ही उन्हें काम की जरूरत होगी, यदि मनरेगा चले तो वे जरूर जाएंगे।"

चकथाम्भा गांव के पंचायत मित्र शिव प्रकाश सिंह बताते हैं कि गांव में काम की आवश्यकता बहुत है लेकिन मिल नहीं पाता है। शिव प्रकाश बताते हैं कि "इस साल 22 अप्रैल तक मनरेगा का काम चला, उसके बाद से मई महीने तक काम बंद रहा। जून में काम शुरू हुआ है, 15 मजदूर लगे हैं। मनरेगा में मज़दूरी 204 रुपये होने के कारण मज़दूर कम आते हैं। वही मज़दूर मनरेग में आते हैं जिन्हें कहीं काम नहीं मिलता।"