कोविड-19 महामारी के पहले दौर में महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) ने ग्रामीणों को बहुत सहारा दिया। सरकार ने भी खुल कर खर्च किया। लेकिन कोविड-19 की दूसरी लहर में मनरेगा ग्रामीणों के लिए कितनी फायदेमंद रही, यह जानने के लिए डाउन टू अर्थ ने देश के पांच सबसे बड़ी जनसंख्या वाले राज्यों में मनरेगा की जमीनी वस्तुस्थिति की विस्तृत पड़ताल की है। इस कड़ी की पहली रिपोर्ट में आपने पढ़ा, सरकार ने नियमों में किया बदलाव और आज पढ़िए कि मध्य प्रदेश में मनरेगा का हाल-
मध्य प्रदेश के रीवा जिले के छतैनी गांव के रोजगार सहायक विनय सिंह ने बताया कि कोविड की दूसरी लहर में हमारी पंचायत में लगभग 150 लोग पलायन से आए हैं, लेकिन किसी ने भी मनरेगा के अंतर्गत पंचायत में काम का आवेदन नहीं लगाया है। पंचायत की प्राथमिकता पहले कोविड संक्रमण से लोगों को बचाने की थी, इसलिए पंचायत से कोई काम भी नहीं खुला, लेकिन परिस्थितियां सामान्य होने पर अब जल्द ही काम शुरू करवाया जा रहा है।
इसी जिले की एक दूसरी पंचायत के गेदुरहा रोजगार सहायक शुभेन्दु त्रिपाठी ने बताया कि हमारी पंचायत मे बहुत लोग पलायन से लौट कर घर वापस आए हैं, लेकिन हमारे पास 8 लोगों का ही डाटा है, इनमें से किसी ने भी काम की मांग नहीं की है।
सोहावल खुर्द रोजगार सहायक हरिमोहन वर्मा ने बताया कि हमारे पंचायत में 15 लोग वापस आए हैं और किसी ने भी काम के लिए आवेदन नहीं किया। अलबत्ता पंचायत में आने वाले गांव पनवार खुर्द मे तालाब में सफाई का काम चालू और दो दिवस के बाद पंचायत भवन निर्माण का काम शुरू होने वाला है। इनमें लोगों को काम मिलने लगेगा।
सतना जिले की कहानी भी ऐसी ही है, मझगवां ब्लॉक के ग्राम पंचायत देवलहा के रोजगार सहायक पप्पू यादव ने बताया कि ग्राम पंचायत में 13 लोग पलायन से लौटे हैं पर किसी ने भी काम के लिए आवेदन नहीं किया। 3 मार्च से लेकर मई तक के अवधि में 140 परिवारों ने मनरेगा में काम किया है। इन मजदूरों को 24 से 48 दिनों तक का काम दिया गया है। इनमें लूज बोल्डर बांध, कंटूर ट्रेंच, मेड़बन्दी के काम हुए हैं।
रीवा जिले के कोल्हुआ गांव में लालमणि कोल नोयडा में सेक्टर 35 में मजदूरी करते हैं। लालमणि कोविड लॉकडाउन में अपने घर वापस लौटे, लेकिन उन्होंने पंचायत में काम नहीं मांगा। उनका कहना है कि पंचायत में हमें काम के बदले कम पैसा मिलता है और महीने दो महीने में दो चार दिन ही काम मिलता है, जबकि हमें नोएडा में चार सौ से साढ़े चार सौ रुपए तक मिल जाता है, इसलिए हमें वहां जाकर मजबूरी में काम करना पड़ता है। बाल बच्चों को पालने के लिए जाना पड़ता है। हालांकि उनका मानना है कि गांव में ही लगातार काम मिल जाए तो वे शहर में नहीं जाना चाहते हैं।
रीवा जिले के सामाजिक कार्यकर्ता रामनरेश यादव बताते हैं कि मनरेगा योजना तो अच्छी है, लेकिन इसके क्रियान्वयन की गड़बड़ियों के कारण यह जमीनी तौर पर सफल नहीं हो पा रही है। इसमें सबसे पहला कारण तो भुगतान में विलम्ब है, दूसरा कारण मजदूरों को शहरों में जाकर मजदूरी ज्यादा मिल जाती है, और जिस दिन काम करते हैं, उसी दिन भुगतान हो जाता है, इससे उन्हें शहरों में जाकर मजदूरी करना ज्यादा अच्छा लगता है।
शिवपुरी जिले के सामाजिक कार्यकर्ता अजय यादव बताते हैं कि उनके जिले में ग्राम पंचायतों में मजदूरों की जगह पंचायत सचिव और सरपंच के रिश्तेदार काम कर रहे हैं। मस्टर रोल पर उनके नाम चढ़ा दिए जाते हैं, और भुगतान भी उनके खाते में करवा दिया जाता है। भुगतान की राशि वापस ले ली जाती है और दस प्रतिशत राशि खातेदार को दे दी जाती है। बाद में मशीनों से काम करवा कर उसका वेरीफिकेशन भी करवा लिया जाता है, योजना के इस घपले से जमीनी स्तर पर काम सही नहीं हो पा रहा है, आंकड़ों में तो मनरेगा खूब चल रही है, लेकिन जमीनी तौर पर यह गायब है।
निवाड़ी जिले के सामाजिक कार्यकर्ता मस्तराम घोष के अनुसार पंचायतों में काम मांगने कोई नहीं जाता, क्योंकि इस योजना की ठीकठीक जानकारी मजदूरों को नहीं है। वे खुद से काम मांगने नहीं जाते हैं, काम तो पंचायतों को अपने स्तर पर खोलना चाहिए। कोविड की दूसरी लहर का प्रभाव कम होते ही अब फिर से उनके जिले के लोग दिल्ली की तरफ पलायन करने लगे हैं। हर दिन दो सौ से ढाई सौ लोग पलायन पर जा रहे हैं।
हालांकि मनरेगा की साइट कुछ और कहानी बयां करती है। मप्र में तकरीबन 80 लाख सक्रिय जॉबकार्डधारी परिवार हैं। 1 अप्रैल से शुरू हुए वित्त वर्ष में अब तक मनरेगा में 3892551 परिवारों के 7054228 लोगों ने काम की डिमांड की, इनमें से 7032757 लोगों को रोजगार का आफर भी दे दिया गया। जहां तक काम की बात है, 2890385 जॉब कार्डधारी परिवारों के 4872693 लोगों को काम दे दिया गया। इससे तकरीबन 8 करोड़ मानव दिवस का काम सृजित हुआ है।
दस जून की स्थिति में इसी अवधि में 9005 परिवारों ने सौ दिन का काम पूरा भी कर लिया है। यह वही दौर है जबकि मध्यप्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में कोविड19 का असर बहुत बुरी तरह से फैला और अप्रैल और मई महीने के दिनों में प्रदेश भर में लॉकडाउन भी लगा रहा।
कल पढ़ें, एक और राज्य का हाल