विकास

एसडीजी-7: 2030 तक खाना पकाने के साफ सुथरे साधनों से वंचित होंगे 190 करोड़ लोग

रिपोर्ट के मुताबिक बढ़ता कर्ज, वित्त की कमी और ऊर्जा की आसमान छूती कीमतों की वजह से बिजली और खाना पकाने के साफ-सुथरे साधनों तक सार्वभौमिक पहुंच बाधित हो रही है

Lalit Maurya

इसमें कोई शक नहीं कि वैश्विक स्तर पर हमने अक्षय ऊर्जा, खाना पकाने के साफ-सुथरे स्रोतों और सबको बिजली मिल सके इस दिशा में उल्लेखनीय प्रगति की है। लेकिन इसके बावजूद यह रफ्तार उतना नहीं है, जिसकी मदद से हम 2030 के लिए निर्धारित सतत विकास (सतत विकास) के सातवें लक्ष्य को हासिल कर सकें।

देखा जाए तो दुनिया इस राह में भटक चुकी है। अनुमान है कि 2030 तक दुनिया में करीब 190 करोड़ लोगों भोजन तैयार करने के साफ-सुथरे साधनों से वंचित होंगे। वहीं 66 करोड़ लोगों को बिजली नहीं मिल पाएगी।

यह जानकारी अन्तरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (आईईए), अन्तरराष्ट्रीय नवीकरणीय ऊर्जा एजेंसी (आईआरईएनए), संयुक्त राष्ट्र सांख्यिकी प्रभाग (यूएनएसडी), विश्व बैंक और विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा जारी नई रिपोर्ट "ट्रैकिंग एसडीजी 7: द एनर्जी प्रोग्रेस" में सामने आई है।

सतत विकास के इन लक्ष्यों को 2015 में संयुक्त राष्ट्र द्वारा अपनाया गया था। इसमें सतत विकास के 17 लक्ष्य और 169 उद्देश्य समाहित हैं जिन्हें 2030 तक हासिल करने के लक्ष्य तय किया गया था। एसडीजी-सात भी इसका एक हिस्सा है। गौरतलब है कि 2030 तक सभी के लिए सस्ती, भरोसेमंद, टिकाऊ और आधुनिक ऊर्जा तक पहुंच सुनिश्चित करना ही एसडीजी 7 का लक्ष्य है।

इसकी प्रगति को मापने के लिए पांच संकेतक निर्धारित किए गए हैं, जिनमें पहला आधुनिक ऊर्जा तक सार्वभौमिक पहुंच को बढ़ाना। दूसरा, अक्षय ऊर्जा में वैश्विक अनुपात को बढ़ाना, तीसरा - ऊर्जा दक्षता में दोगुणा सुधार करना। चौथा, साफ-सुथरी ऊर्जा के क्षेत्र में रिसर्च, टेक्नोलॉजी और इंवेस्टमेंट को बढ़ावा देना और अंतिम  विकासशील देशों के लिए ऊर्जा सेवाओं का विस्तार करना और उन्हें बढ़ावा देना है।

इस लिहाज से देखें तो आज भी दुनिया की एक बड़ी आबादी इन लक्ष्यों से दूर हैं और जिस रफ्तार से इस दिशा में प्रगति हो रही है उससे 2030 तक इन लक्ष्यों को हासिल कर पाना करीब-करीब नामुमकिन है।

हालांकि रिपोर्ट ने इस बात की पुष्टि की है कि इस दिशा में कुछ हद तक प्रगति जरूर हुई है। आंकड़ों के मुताबिक 2010 में 290 करोड़ लोग खाना पकाने के साफ-सुथरे साधनों से वंचित थे। यह आंकड़ा 2021 में घटकर 230 करोड़ पर पहुंच गया था।

अफ्रीका में सुधार के लिए अभी और करने होंगे प्रयास

देखा जाए तो जिस तेजी से इस दिशा में प्रगति हो रही है उसके चलते 2030 तक 190 करोड़ लोग इन साफ-सुथरे साधनों से वंचित होंगें। रिपोर्ट का अनुमान है कि 2030 तक इन स्रोतों से वंचित करीब 60 फीसदी लोग उप-सहारा अफ्रीका में रहने वाले होंगें। 

इसी तरह 2010 में करीब 110 करोड़ लोग बिजली के बिना रहने को मजबूर थे। यह आंकड़ा 2021 में घटकर 67.5 करोड़ रह गया था। मतलब की 2010 में जहां दुनिया की 84 फीसदी आबादी तक बिजली की पहुंच थी वो 2021 में बढ़कर 91 फीसदी हो गई थी।

ऐसे में ऊर्जा की पहुंच में होती वृद्धि को देखें तो यह 0.7 फीसदी की औसत से बढ़ रही है। हालांकि यह रफ्तार 2019 से 2021 के बीच घटकर 0.6 फीसदी रह गई थी।  मतलब की इस रफ्तार से देखें तो 2030 तक करीब 66 करोड़ लोगों को बिजली नहीं मिल पाएगी।

रिपोर्ट के मुताबिक इसकी वजह से सबसे कमजोर तबके और संवेदनशील परिस्थितियों में रहने को मजबूर आबादी को सबसे ज्यादा परेशानियों का सामना करना पड़ेगा। जो उनके स्वास्थ्य पर भी बुरा असर डालेगा।

इतना ही नहीं जीवाश्म ईंधन पर मौजूदा निर्भरता के चलते जलवायु में आते बदलावों की गति भी बढ़ने की आशंका है। यदि विश्व स्वास्थ्य संगठन की मानें तो दूषित ईंधन और प्रौद्योगिकियों की वजह से होने वाली बीमारियों के चलते हर साल 32 लाख लोगों की मौत हो जाती है। इसकी सबसे बड़ी वजह घरों के भीतर मौजूद वायु प्रदूषण है।

भारत के हर घर तक पहुंच चुकी है बिजली

एसडीजी -7 के मामले में भारत से जुड़े आंकड़ों को देखें तो 2021 में देश की शत प्रतिशत आबादी तक बिजली पहुंच चुकी है। वहीं 71 फीसदी आबादी खाना पकाने के लिए साफ-सुथरे साधनों पर निर्भर है। वहीं यदि अक्षय ऊर्जा से जुड़े आंकड़ों को देखें तो देश में 2020 में देश की कुल ऊर्जा खपत में अक्षय ऊर्जा की हिस्सेदारी करीब 36 फीसदी थी। इसी तरह यदि प्रति व्यक्ति अक्षय ऊर्जा की उपलब्धता की बात करें तो वो 2021 में 104.5 वाट दर्ज की गई थी।

देखा जाए तो एसडीजी 7 के इस लक्ष्य की प्राप्ति से लोगों के स्वास्थ्य और कल्याण पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। इससे न केवल वायु प्रदूषण के स्तर में गिरावट आएगी साथ ही पर्यावरण और अन्य सामाजिक जोखिमों से भी लोगों की रक्षा की जा सकेगी। साथ ही इसकी वजह से प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल व सेवाओं तक पहुंच में विस्तार किया जा सकता है।

हालांकि देखा जाए तो बढ़ते कर्ज और ऊर्जा की आसमान छूती कीमतों की वजह से खाना पकाने के लिए साफ-सुथरे साधनों और बिजली तक सार्वभौमिक पहुंच बाधित हो रही है। इसके साथ ही अर्थव्यवस्था में आता उतार-चढ़ाव, मुद्रास्फीति, देशों पर बढ़ता कर्ज, फण्ड की कमी, सप्लाई चेन में आती अड़चनें, कठिन वित्तीय परिस्थितियां और मैटेरियल की बढ़ती कीमतें भी इसकी राह में रोड़ा बन रही हैं।

वहीं यूक्रेन में जारी युद्ध के चलते वैश्विक ऊर्जा संकट कहीं ज्यादा गहरा गया है। लेकिन कुछ देशों द्वारा किए जा रहे निवेश के चलते, अक्षय ऊर्जा के इस्तेमाल व ऊर्जा क्षमता में सुधार होने की उम्मीद है।

अंतर्राष्ट्रीय नवीकरणीय ऊर्जा एजेंसी के मुताबिक कोरोना महामारी के पहले से ही निम्न और मध्यम-आय वाले देशों को स्वच्छ ऊर्जा के लिए दिए जा रहे अन्तरराष्ट्रीय सार्वजनिक वित्त पोषण में गिरावट दर्ज की गई थी। इस समय कुछ ही देशों को इसके लिए वित्तीय सहायता मिल पा रही है। ऐसे में विशेषज्ञों ने एसडीजी 7 के लक्ष्य को हासिल करने के लिए अन्तरराष्ट्रीय सार्वजनिक वित्त व्यवस्था में संरचनात्मक रूप से सुधार करने और निवेश को बढ़ावा देने की बात कही है।

इस बारे में डब्ल्यूएचओ प्रमुख डॉक्टर टैड्रॉस एडहेनॉम घेबरेयेस का कहना है कि, "हमें अगली पीढ़ी की रक्षा के लिए अभी से कार्रवाई करनी होगी।" उनके मुताबिक हम ऊर्जा के साफ-सुथरे और नवीकरणीय समाधानों में निवेश करके वास्तविक बदलाव ला सकते हैं। जो सबके लिए ऊर्जा तक पहुंच का मार्ग भी प्रशस्त करेगा।

"घरों में खाना पकाने के लिए साफ-सुथरी तकनीकों और स्वास्थ्य केंद्रों में भरोसेमंद बिजली, सबसे कमजोर तबके के स्वास्थ्य को सुरक्षित रखने में अहम भूमिका निभा सकती है।"

वहीं यूएनएसडी के स्टीफन श्वेनफेस्ट के मुताबिक विद्युतीकरण के हालिया आंकड़ों में गिरावट के बावजूद, पिछले एक दशक में उन लोगों की संख्या में 50 फीसदी की गिरावट आई है जो बिजली से वंचित हैं। यह आंकड़ा 2010 में 110 करोड़ से घटकर 2021 में 67.5 करोड़ रह गया है।" उनका कहना है कि सबसे कमजोर तबके और दुर्गम क्षेत्रों में रहने वाले लोग कहीं पीछे न छूट जाएं इसके लिए इस दिशा में अतिरिक्त प्रयासों की तत्काल जरूरत है।