विकास

खेती-किसानी को लील जाएंगे शहर, तीन साल बाद सामने आएंगे आंकड़े

Richard Mahapatra

एक साल से अधिक समय से जनगणना-2021 की तैयारियां हो रही हैं। महारजिस्ट्रार एवं जनगणना कार्यालय और जनगणना आयुक्त को सबसे पहले भारत के शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों की पहचान करनी है। इसके लिए अधिकारियों ने जनगणना के मापदंडों के आधार एक बेस मानचित्र बनाया है। इस काम में लगे अधिकारी कहते हैं कि वे शहरों के विस्तार की तेजी देखकर हैरान हैं। अगर यह ऐसे ही जारी रहा तो गांव इतिहास में दर्ज हो जाएंगे और यह हमारे सोच से काफी पहले होगा। अधिकारी कहते हैं कि शहरों की परिभाषा के अनुसार, 2011 की जनगणना में शामिल किए गए बहुत से शहरी क्षेत्र इतना बढ़ गए हैं कि हजारों गांव उनकी जद में पहुंच गए हैं। जनगणना की प्रक्रिया से देश की बदलती जनसंख्या, भूगोल और अर्थव्यवस्था की जानकारी मिलती है। इस कवायद के प्रारंभिक नतीजों के लिए हमें तीन साल का इंतजार करना होगा, लेकिन एक बात पूरी स्पष्टता से कही जा सकती है कि ग्रामीण भारत तेजी से शहरी भारत में तब्दील हो रहा है।

आखिर, इस बदलाव के क्या नतीजे होंगे? यह खतरनाक है क्योंकि ग्रामीण भारत के शहरी भारत में तब्दील होने से लोगों का व्यवसाय और प्राथमिकताएं भी बदल जाएंगी। क्या भारत की खेती करने वाली आबादी अपने पेशे में बनी रहेगी या यह गैर कृषि व्यवसाय अपना लेगी? यह तत्काल चिंता का विषय है। अगला बड़ा सवाल यह है कि खेती कौन करेंगे और क्या खेती लाभकारी होगी जिससे इस पर निर्भर लोग गुजर-बसर कर सकें? यह काफी हद तक ग्रामीण-शहरी परिस्थितियों पर निर्भर रहेगा। जनगणना की परिभाषा कहती है कि वह रिहाइश शहरी (नगर निगम, नगरपालिका, केंटोनमेंट बोर्ड और अधिसूचित नगर क्षेत्र समिति को छोड़कर) घोषित कर दी जाती है जिसकी आबादी कम से कम 5,000 हो और जिसमें 75 प्रतिशत पुरुष गैर कृषि कार्य करते हों, साथ ही साथ इसकी आबादी का घनत्व कम से कम 400 लोग प्रति वर्ग किलोमीटर हो। ऐसी रिहाइश को जनगणना नगर भी कहा जाता है।

जनगणना-2011 में बताया है कि इतिहास में पहली बार ग्रामीण भारत में जनसंख्या की विकास दर कम हुई है। हालांकि उस समय भी भारत मुख्य रूप से ग्रामीण ही था और शहरी आबादी केवल 30 प्रतिशत ही थी। जनगणना-2001 से जनगणना-2011 के बीच नगरों की संख्या 1,362 से बढ़कर 3,894 हो गई थी। यह बताता है कि ग्रामीण क्षेत्रों में लोग खेती छोड़कर गैर कृषि कार्यों को अपना रहे हैं। लाखों किसान खेती से तौबा कर चुके हैं और चिंता की बात यह है कि नई पीढ़ी की खेती में दिलचस्पी ही नहीं है।

कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि देश अपने किसान खो रहा है। यह संकेत भी मिल रहे हैं कि बहुत से ग्रामीण बेरोजगार होने के बावजूद खेती में दिलचस्पी नहीं दिखा रहे हैं। इससे पता चलता है कि भारत बड़े बदलाव की ओर अग्रसर है। 1970 में ग्रामीण परिवार की तीन चौथाई आय का स्रोत कृषि हुआ करती थी। इसके 45 साल बाद 2015 में यह एक तिहाई से भी कम हो गई है। अब अधिकांश ग्रामीण परिवार गैर कृषि कार्यों से अधिक आय अर्जित कर रहे हैं। चिंता का एक बड़ा कारण यह भी है कि गैर कृषिगत नौकरियों शहरों में केंद्रित हैं। हाल के वर्षों में शहरों में केंद्रित नौकरियां भी कृषि से पलायन के चलते अपर्याप्त साबित हुई हैं। हाल में जारी आर्थिक आंकड़े संकेत देते हैं कि उत्पादन, भवन निर्माण और अन्य क्षेत्र पहले जितनी नौकरियां सृजित नहीं कर पा रहे हैं। ये सभी सेक्टर मंदी से जूझ रहे हैं।

यह एक अजीब विडंबना है। हम यह मान लेते हैं कि शहरी होकर उन्नति पक्की है लेकिन शहरीकरण उन लोगों को मूलभूत सुविधाएं भी नहीं मुहैया करा पाता जो ग्रामीण क्षेत्रों से पलायन करके आए हैं। मांग में कमी के पीछे भी यही वजह है और इसी के चलते अर्थव्यवस्था सुस्त पड़ी है।