उत्तराखंड के पहाड़ों पर बने तीर्थस्थलों की वहन क्षमता (कैरिंग केपेसिटी) पर एक रिपोर्ट दो माह के भीतर तैयार की जाएगी। यह आश्वासन उत्तराखंड पर्यावरण संरक्षण और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) दिया है।
उत्तराखंड के तीर्थस्थलों की वहन क्षमता निर्धारित करने की मांग को लेकर एक याचिका एनजीटी में डाली गई है। इस पर पांच जनवरी 2024 को सुनवाई हुई। सुनवाई के दौरान बोर्ड की ओर से पेश हुए वकील ने स्वीकार किया कि अब तक वहन क्षमता का कोई अध्ययन नहीं किया गया है, लेकिन यह अब किया जाएगा और ट्रिब्यूनल के समक्ष एक रिपोर्ट दायर की जाएगी। मामले को 6 मार्च 2024 के लिए सूचीबद्ध किया गया है।
एनजीटी के 8 फरवरी, 2023 के आदेश को अमल में लाने की मांग करते हुए एक आवेदन दायर किया गया था। एनजीटी से केदारनाथ, हेमकुंड साहिब, यमुनोत्री और गोमुख तीर्थ केंद्रों के तीर्थ मार्गों पर पर्यावरण मानदंडों के बड़े पैमाने पर उल्लंघन की शिकायत की गई थी
ट्रिब्यूनल के निर्देश पर संयुक्त समिति ने रिपोर्ट प्रस्तुत की थी, जिस पर अदालत ने विधिवत विचार किया था। संयुक्त समिति की सिफारिशों में से एक वहन क्षमता की गणना से संबंधित थी।
गौरतलब है कि देवों की भूमि कहे जाने वाले उत्तराखंड में धार्मिक पर्यटन का बड़ा महत्व है। हर साल लाखों यात्री धार्मिक स्थलों में जाते हैं। पर्यावरण कार्यकर्ताओं का कहना है कि हिमालय पर बसे इन धार्मिक स्थलों में बहुत ज्यादा यात्रियों के आने के कारण पर्यावरण को नुकसान पहुंच रहा है। साथ ही, प्राकृतिक आपदाएं भी बढ़ी हैं, इसलिए यहां आने वाले यात्रियों की संख्या निर्धारित होनी चाहिए। इसके लिए वहनीय क्षमता का आकलन होना बहुत जरूरी है।