विकास

राजस्थानः तीन साल में डीएमएफ से आवंटित 62 फीसदी काम अभी भी अधूरे

तीन साल में 1420 करोड़ रुपए का बजट आवंटन कर 8550 कार्यों की अनुमति दी गई थी, लेकिन धीमी सरकारी कार्यप्रणाली के चलते सिर्फ 3325 कार्य ही पूरे हो पाए हैं

Madhav Sharma

राजस्थान में डीएमएफ ट्रस्ट के फंड से जारी हुए कामों में से सिर्फ 38 फीसदी ही पूरे हो पाए हैं। कार्य आवंटन के तीन साल बाद भी 62 फीसदी विकास कार्य या तो शुरू ही नहीं हुए या अभी तक अधूरे हैं। बीते तीन सालों में 1420 करोड़ रुपए का बजट आवंटन कर 8550 कार्यों की अनुमति दी गई थी, लेकिन धीमी सरकारी कार्यप्रणाली के चलते सिर्फ 3325 कार्य ही पूरे हो पाए हैं, 5225 विकास कार्य अभी अधूरे हैं। आवंटित 1420 करोड़ रुपए में से 3325 कार्यों पर 676.34 करोड़ रुपए ही खर्च किए जा सके हैं। जिलों के पास करोड़ों रुपए डीएमएफ कोष में जमा हैं जिसे खान विभाग खर्च ही नहीं कर पा रहा।

राजस्थान में खनन क्षेत्र में काम करने वाली संस्थाओँ और सामाजिक कार्यकर्ताओं का मानना है कि सरकार और जिला प्रशासन के पास डीएमएफ के पैसों के उपयोग को लेकर कोई योजना ही नहीं है। यही कारण है कि देश के अलग-अलग राज्यों के पास डीएमएफ फंड में करोड़ों रुपए जमा हो चुके हैं। 2018-19 में प्रदेश के डीएमएफ में 932.94 और 2019-20 (31 जनवरी 2020 तक) 861.90 करोड़ रुपए जमा हुए हैं। इस तरह राजस्थान के पास डीएमएफ में 2755.15 करोड़ रुपए फिलहाल जमा हैं।

वहीं, खान विभाग के आंकड़े दिखाते हैं कि विभाग का राजस्व हर साल बढ़ रहा है। 2016-17 में विभाग को 4,233.74 करोड़ रुपए का राजस्व प्राप्त हुआ। 2017-18 में 4521.52 और 2018-19 में 5301.48 करोड़ रुपए राजस्व खान विभाग को प्राप्त हुआ है।

खान मजदूर सुरक्षा अभियान ट्रस्ट के मैनिजिंग ट्रस्टी राणा सेनगुप्ता डाउन-टू-अर्थ को बताते हैं कि, ‘राजस्थान में 25 लाख से ज्यादा खान मजदूर हैं। इतनी संख्या होने के बाद भी प्रदेश में खान मजदूर असंगठित श्रेणी में हैं। हम कई सालों से सरकार से खान मजदूर कल्याण बोर्ड बनाने की मांग कर रहे हैं। इस बोर्ड के बनने से ये 25 लाख मजदूर सरकार के डेटाबेस में आएंगे और डीएमएफ का जो पैसा बिना उपयोग के जमा है उसका सही उपयोग भी हो पाएगा, लेकिन यह बोर्ड अब तक नहीं बनाया गया है।’

वे आगे कहते हैं, ‘हाल ही में राज्य सरकार ने डीएमएफ का 30% पैसा कोराना संक्रमण के रोकथाम में उपयोग लेने की बात कही है, लेकिन यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि जिन खान मजदूरों की मेहनत का यह पैसा है, उन्हें इसका कोई लाभ नहीं मिलेगा। इसीलिए हमारी मांग है कि डीएमएफटी की 50% राशि मजदूरों और उनके कल्याण से जुड़ी गतिविधियों पर खर्च होना चाहिए। ताकि सिलिकोसिस जैसी लाइलाज बीमारी से जूझ रहे खान मजदूरों को थोड़ी राहत मिल सके और सरकार पर भी वित्तीय भार कम हो।’

बता दें कि राजस्थान में सिलिकोसिस पीड़ित को 5 लाख रुपए की आर्थिक सहायता, विकलांगता की श्रेणी और मृत्यु के बाद विधवा को 1500 रुपए पेंशन देने का प्रावधान है। बीते साल अक्टूबर में ही राज्य सरकार ने सिलिकोसिस नीति बनाई थी।

ज्यादा खनन प्रभावित क्षेत्रों में कम कार्य हुए

सरकार के आंकड़े बताते हैं कि जो जिले सबसे ज्यादा खनन प्रभावित हैं, वहां डीएमएफटी के जरिए पूरे हुए कामों की संख्या बेहद कम है। बूंदी ऐसा जिला है जहां 106 विकास कार्य स्वीकृत हुए, लेकिन कोई भी काम बीते तीन सालों में पूरा नहीं हुआ है। इसी तरह उदयपुर में बीते तीन सालों में 545 विकास कार्य स्वीकृत हुए, लेकिन पूरे सिर्फ 14 ही हुए। राजसमंद में 1550 में से 760, अजमेर 541 में से 193, पाली 213 में से 6, भीलवाड़ा में 2083 स्वीकृत कार्यों में से सिर्फ 762 ही पूरे हुए।

आंकड़े बताते हैं कि इस वित्तीय वर्ष यानी 2019-20 में सिर्फ 795 नए कार्य शुरू किए गए हैं जबकि 2018-19 में 4,252 नए कार्य शुरू किए गए थे। इन जिलों के डीएमएफ ट्रस्ट में इतनी राशि जमा है। जयपुर जिले के पास 55.39 करोड़, भीलवाड़ा के पास 841.77, उदयपुर 227.80, अलवर 14.43, डूंगरपुर 3, प्रतापगढ़ 3.06, बांसवाड़ा 14.46, भरतपुर 13.93, धौलपुर 50 लाख, करौली 1.22 करोड़, सवाई माधोपुर 76 लाख, नागौर 33.12, दौसा 2.92, सीकर 7.12, राजसमंद 623.04, जोधपुर 3.69, पाली 147.73, सिरोही 97.08,बाड़मेर 77.24, जालौर 5.26, झुंझुनू 17.35, टोंक 6.63, कोटा 32.87, बूंदी 15.80, झालावाड़ 4.96, बारां 96 लाख, अजमेर 153.47, बीकानेर 25.25, जैसलमेर 35.82, श्रीगंगानगर 4.31, हनुमानगढ़ 4.88, चुरू 1.60, चित्तौड़गढ़ 277.59 करोड़ रुपए डीएमएफटी फंड में जमा हैं। इस तरह राजस्थान में 31 जनवरी 2020 तक डीएमएफ ट्रस्ट में 2755.15 करोड़ रुपए जमा हो चुके हैं।