विकास

प्रधानमंत्री आवास योजना: क्या कागजों में बन रहे हैं घर?

प्रधानमंत्री आवास योजना (ग्रामीण) के तहत केंद्र सरकार पक्के मकान बनाने का दावा कर रही है, जमीनी पड़ताल करती एक रिपोर्ट-

Shahnawaz Alam

 

गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले शोहराब के पास आज तक अपना घर नहीं है। आज भी वह गांव में दूसरे की जमीन पर एक झोपड़ी डालकर रहते हैं। जब प्रधानमंत्री आवास योजना- ग्रामीण (पीएमएवाई-जी) की शुरुआत हुई तो गरीबी का दंश झेल रहे शोहराब के मां कमरूनिशा को उम्‍मीद थी कि बेटे को एक अदद पक्‍का मिल जाएगा, लेकिन प्रशासनिक लापरवाही और बेदम व्‍यवस्‍था की वजह से शोहराब आज तक मकान नहीं बनवा पाया है। शोहराब की मां बताती है करीब दो साल पहले मकान बनवाने की बात कर कुछ अधिकारी आए थे। फिर पहली किस्‍त मिली। जिससे दीवारें तो खड़ी हो गई, लेकिन उसके बाद कोई पैसा नहीं मिला। अब तक कई बार अधिकारियों के चक्‍कर काट चुके है, लेकिन उन्‍हें केवल आश्‍वासन मिलता है। बेटा गुड़गांव में मजदूरी करता है। न तो खेती है और न ही आमदनी का जरिया। जो कमाता है, उसी से गुजर बसर हो रही है। ऐसे में घर बनाना मुश्किल है।

यह हकीकत है वर्ष 2018 में नीति आयोग द्वारा घोषित देश के सबसे पिछड़े जिले नूंह (मेवात) के तावड़ू खंड के गांव सबरस की। जहां पीएमएवाई-जी अब तक मूर्त रूप नहीं लिया है। 2011 की जनगणना के मुताबिक, 88.59 फीसदी आबादी इस जिले में गांवों में बसती है। स्‍थानीय लोगों का कहना है कि नूंह जिले में किसी को भी सभी किस्‍तें नहीं मिली है। अभी तक मकान नहीं बना है। एक तरफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राज्‍य सरकारें 2022 तक सभी को आवास उपलब्‍ध करवाने के दावे कर रही है। जबकि हकीकत उससे इतर है। नूंह जिला प्रशासन के मुताबिक, 2100 आवासों का निर्माण कार्य प्रगति पर है, जिन्‍हें इस साल क अंत तक पूरा कर लिया जाएगा। घरों का निर्माण जल्‍द हो पूरे जिले को 21 कलस्‍टर में बांटा गया है। सभी मकानों की जियो टैगिंग कर निगरानी की जा रही है।  प्रशासन का दावा है कि 1230 मकानों का कार्य पूरा हो चुका है।

लोकसभा में एक प्रश्‍न के जवाब में सरकार ने बताया कि एक अप्रैल 2016 को प्रधानमंत्री आवास योजना- ग्रामीण की शुरुआत की गई। वर्ष 2022 तक 2.95 करोड़ घर बनाने का लक्ष्‍य रखा गया। दो चरणों में सरकार ने 1,59,86,012 घर बनाने का लक्ष्‍य रखा था, जिसमें से 87 प्रतिशत ही स्‍वीकृति मिल चुकी है। इसमें से अब तक कुल लक्ष्‍य का अब तक केवल 67 फीसदी मकान बन चुके है। जबकि इन दावों से इतर शोहराब की कहानी कुछ और ही बयां कर रही है।

हरियाणा के लिए प्रथम चरण 2016-17 से 2018-19 में 21502 मकान बनाने का लक्ष्‍य रखा गया था। 21031 मकान बनाने की स्‍वीकृति मिल चुकी है। 11 फरवरी 2020 तक उपलब्‍ध आंकड़ों के मुताबिक अब तक केवल 16702 मकान बने है। वर्ष 2016-17 में एक, वर्ष 2017-18 में 6676, वर्ष 2018-19 में 5963, वर्ष 2019-20 में 4062 मकान बने है। जबकि दूसरे चरण में जीरो लक्ष्‍य हरियणा के लिए निर्धारित किया गया।

सरकारी आंकड़ों में भले ही मकान बन चुके है, लेकिन ह‍कीकत में अब भी मकानों की छतें नहीं है। हरियणा के लाभार्थियों को अब भी मकान बनाने के लिए किस्‍त मिलने का इंतजार है। हिसार के हांसी उपखंड में 2216 पात्र लोगों में 143 को ही पहली किस्‍त मिली। चरखी दादरी में 293 में से 221 को पहली किस्‍त और 94 को दूसरी व तीसरी किस्‍त मिली है। गोहाना में 906 में से 156 को दो किस्‍त मिली है। इसी तरह अन्‍य जिलों में इस योजना के तहत पात्र लोगों को एक या दो किस्‍तें मिली है। दो किस्‍त मिलने से मकानों की चारदीवारी तो खड़ी हो गई है, लेकिन छत नहीं डलने की वजह से मकान रहने लायक नहीं है।

सेवानिवृत्‍त हुए जिला विकास एवं पंचायत अधिकारी अरविंद राठी का कहना है कि इस योजना की सबसे बड़ी परेशानी इसकी जटिल प्रक्रिया है। जिनके कच्‍चे मकान है, उन्‍हें पक्‍के लिए आवेदन करना होता है, जो आवेदन आते है, उनका सर्वे करके देखते हैं कि मकान कच्‍चा है या पक्‍का। पात्र लोगों को योजना के तहत तीन किस्‍तों में एक लाख 20 हजार रुपए पैसे मिलते है। योजना के तहत पात्र होने के लिए सरकार की ओर से 13 शर्तें रखी गई है। इन शर्तों को पूरा करने और फिर सरकारी प्रोसेस में एक साल से अधिक समय लग जाता है। यह किस्‍तें कभी केंद्र से बजट अटकने तो कभी फील्‍ड ऑफिसर की लापरवाही के कारण देरी से मिलती है। इसके अलावा हरियाणा के फील्‍ड अफसर के आधे से अधिक पद भी खाली है।