आखिरकार इस साल भारत के पास गरीबी का अपना आधिकारिक आंकड़ा उपलब्ध होगा। दरअसल, राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) वर्तमान में उपभोग व्यय नमूना सर्वेक्षण कर रहा है, जिसका उपयोग गरीबी के स्तर को मापने के लिए किया जाता है। सर्वेक्षण इस साल जुलाई तक जारी रहेगा और इसके प्रारंभिक परिणाम साल के अंत तक आने की संभावना है।
दिल्ली में सत्ता के गलियारों में अधिकारियों के बीच जारी सुगबुगाहटों की मानें तो, “गरीबी के आंकड़ों में गिरावट से दुनिया हैरान हो जाएगी।” कई विशेषज्ञ निजी तौर पर इस बात से सहमत हैं कि भारत ने अत्यधिक गरीबी का “उन्मूलन” पहले ही कर दिया है।
अधिकांश अधिकारी गरीबी के आंकड़ों में कमी के लिए दो घटनाक्रमों का जिक्र करते हैं। पहला, ग्रामीण रोजगार गारंटी जैसे विभिन्न कार्यक्रमों के जरिए बड़ी मात्रा में नगद भुगतान और दूसरा उज्ज्वला योजना के तहत सब्सिडी युक्त ईंधन।
इस सूची में मार्च 2020 से दिसंबर 2022 तक प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (पीएमजीकेएवाई) के तहत प्रदान किए गए मुफ्त खाद्यान्न और इस वर्ष के अंत तक राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (एनएफएसए) के तहत मुफ्त खाद्यान्न प्रदान करने के सरकार के हालिया फैसले को भी जोड़ सकते हैं।
गरीबी के स्तर पर इन कार्यक्रमों के प्रभाव को मापने का एक आधार है। मसलन, इन कार्यक्रमों से लोगों को रोजगार प्राप्त हुआ है और उन्हें मजदूरी से आय मिली। सस्ती गैस का अर्थ है ईंधन की बचत (एक प्रमुख घरेलू खर्च)। वहीं मुफ्त खाद्यान्न का अर्थ है भोजन पर होने वाले खर्च में बचत यानी बढ़ी हुई आय।
इन तमाम मदों में हुई बचत का उपयोग दूसरी मदों में होगा यानी उपभोक्ता व्यय बढ़ेगा। भारत की गरीबी के स्तर को प्रति व्यक्ति उपभोग पर खर्च के आधार पर मापा जाता है। यानी खर्च को आय की प्रॉक्सी के रूप में इस्तेमाल किया जाता है।
पिछले साल अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) में भारत, बांग्लादेश, श्रीलंका और भूटान के कार्यकारी निदेशक सुरजीत भल्ला ने पाया था कि एनएफएसए के तहत खाद्य सब्सिडी और पीएमजीकेवाई ने किस प्रकार महामारी के दौरान अत्यधिक गरीबी और असमानता के स्तर को प्रभावित किया।
भल्ला न अपने शोध में दावा किया, “महामारी से पहले 2019 में अत्यधिक गरीबी 0.8 प्रतिशत थी। खाद्य हस्तांतरण जैसे उपायों से यह सुनिश्चित हुआ कि यह महामारी वर्ष 2020 में उसी निम्न स्तर पर रहे।”
सरकार द्वारा इस साल जनवरी से एनएफएसए के तहत मुफ्त खाद्यान्न देने के फैसले के तुरंत बाद विशेषज्ञों की कुछ रिपोर्ट सामने आईं कि यह फैसला देश में समग्र मुद्रास्फीति को कैसे प्रभावित करेगा और कैसे गरीबी को कम करने में मददगार साबित होगा।
एनएसओ के सर्वेक्षक जब तक नमूना घरों के दरवाजों तक पहुंचेंगे, तब तक उनमें से अधिकतर नई योजना के तहत चार से पांच महीने के लिए मुफ्त खाद्यान्न का आनंद ले चुके होंगे।
क्या सर्वेक्षण प्रश्नावली में मुफ्त खाद्यान्न और रसोई गैस जैसी अन्य सब्सिडी वाली वस्तुओं को शामिल करने या मुद्रीकरण करने का प्रयास किया गया है, यह हम नहीं जानते। लेकिन, अगर इस तरह से सर्वे किया जाएगा तो संभावना है कि इससे लोगों की कमाई में वृद्धि नजर आएगी।
भारतीय स्टेट बैंक के मुख्य आर्थिक सलाहकार सौम्य कांति घोष ने इस साल जनवरी में जारी अपने शोध इकोरैप में पाया कि कैसे इन योजनाओं ने 2019-2021 की अवधि के आंकड़ों का उपयोग करके लोगों की आय में वृद्धि की है।
इस शोध पत्र में शामिल चार योजनाओं- प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि (पीएम किसान), महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा), प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना (पीएमयूवाई) और पीएमजीकेएवाई से बचत शामिल हैं। इन योजनाओं ने मिलकर एक व्यक्ति की मासिक आय में 2,111 रुपए की वृद्धि की है।
शोत्रपत्र में कहा गया है, “पीएम किसान, मनरेगा, पीएमयूवाई और पीएमजीकेएवाई जैसी योजनाएं ग्रामीण आय में प्रति व्यक्ति प्रति माह 437 रुपए की वृद्धि कर रही हैं। जब प्रति व्यक्ति प्रति माह ग्रामीण मजदूरी (662 रुपए) में सरकार द्वारा प्राप्त नगद भुगतान (437 रुपए) जोड़ दिया जाता है तो प्रति व्यक्ति प्रति माह ग्रामीण आय 1,099 रुपए हो जाती है। यह आय ग्रामीण गरीबी रेखा के लिए निर्धारित आय से अधिक है। इस तरह सरकार अत्यधिक गरीबी को खत्म करने के लिए प्रयासरत है।”
उपभोग व्यय पर एनएसओ का सर्वेक्षण अच्छा है। इस सर्वेक्षण के माध्यम से ये आर्थिक अनुमान सही साबित होंगे या नहीं, यह देखने वाली बात होगी।
लेकिन, यह स्पष्ट है कि सरकार घरेलू आय में वृद्धि का दावा करने के लिए अपनी सभी सहायता का मुद्रीकरण करना चाहती है, भले ही लाक्षणिक रूप से। यह गरीबी मिटाने का एक नया तरीका है, कम से कम सरकारी कागजों पर ही सही। हालांकि यह भी हो सकता है कि एनएसओ सर्वेक्षण हमें “आश्चर्य” में डाल दे।