विकास

आबादी का बढ़ना नहीं, कम होना ले जाएगा विनाश की ओर!

संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के मुताबिक, तमाम वैश्विक चुनौतियों के लिए बड़ी आबादी नहीं, दूसरी चीजें जिम्मेदार हैं

Richard Mahapatra

‘राष्ट्रीय परिवार नियोजन कार्यक्रम’ बनाने वाला पहला देश बनने के करीब 70 साल बाद एक बार फिर भारत की जनसंख्या के आंकड़ें सुर्खियों में हैं। यूनाइटेड नेशंस पापुलेशन फंड की अप्रैल में प्रकाशित ‘ स्टेट ऑफ वर्ल्ड पापुलेशन 2023’ रिपोर्ट के मुताबिक, भारत इस साल जुलाई तक दुनिया के सबसे बड़ी आबादी वाले देश के तौर पर चीन को पीछे छोड़ देगा।

आबादी के साथ ही ‘काम करने लायक आयु-समूह’ के लोग भी सबसे ज्यादा भारत में ही होंगे। किसी देश की कुल आबादी और ‘काम करने लायक आयु-समूह’ की आबादी के मामले में भी भारत दुनिया में सबसे आगे होगा। यहां की कुल आबादी का लगभग 75 फीसदी यानी 1.1 अरब लोग इसी समूह में आएंगे।

दुनिया की आबादी कुल मिलाकर आठ अरब हो गई है और आने वाले दशकों में इसके और बढ़ने के आसार हैं। बढ़ती आबादी पर बहस जाहिर तौर पर दो बातों से जुड़ी होती है।

पहली - बढ़ी हुई आबादी सीमित प्राकृतिक संसाधनों पर और दबाव बढ़ाएगी, जिससे दुनिया सतत विकास के लक्ष्यों को पाने में पीछे रह जाएगी। इससे पर्यावरण से जुड़े संकट भी बढ़ेंगे, जिनका नतीजा ग्लोबल वार्मिंग में वृद्धि के तौर पर सामने आएगा, जो उत्सर्जन को बढ़ाएगा।

हालांकि इस तथ्य के निणार्यक तौर पर शोेध या प्रमाण नहीं मिले हैं, जो ये दिखाते हों कि आबादी में वृद्धि ने धरती पर मिलने वाली बुनियादी सुविधाओं की सीमाओं को  पार कर लिया है नहीं।

उदाहरण के लिए, दुनिया की आठ अरब आबादी के 69 फीसदी लोेग, जो रोजाना दस डालर या उससे कम कमाने वाले हैं, धरती के बढ़ते उत्सर्जन के लिए बहुत कम जिम्मेदार हैं। जबकि दुनिया के सबसे ज्यादा अमीरों में शामिल महज दस फीसदी आबादी, कुल वैश्विक उत्सर्जन के आधे हिस्से के लिए जिम्मेदार है।

दूसरी बात, कुछ देशों के लिए युवा आबादी में वृद्धि एक जनसांख्यिकीय लाभांश (डेमोग्रेफिक डिविडेंड) है, जबकि उन देशों में जहां जनसंख्या में वृद्धि की गति धीमी है और बुजुर्ग आबादी बढ़ रही हैं, वहां इसका मतलब है - भविष्य का ऐसा परिदृश्य, जो टिकाऊ नहीं होगा।

भारत जैसे ज्यादातर विकासशील और गरीब देश जनसांख्यिकीय लाभांश की वजह से खुश हैं, जबकि विकसित देश यह अवस्था पहले ही पार कर चुके हैं, क्योंकि उनमें आबादी के कम होने की स्थिति भी स्थिर हो चुकी है।

इस बार भी बहस इन्हीं संभावित पहलुओं पर ही हो रही है। हालांकि संयुक्त राष्ट्र ने बढ़ती आबादी पर चिंता नहीं जताई हैं, इसके बजाय उसने आबादी के बढ़ने में गिरावट और बुजुर्गो की बढ़ती आबादी को लेकर गंभीर चेतावनी दी है, जिस समस्या के चलते हमारे समाज टिकाऊ नहीं बने रह सकेंगे।

यही नहीं, रिपोर्ट में कहा गया है कि बढ़ती आबादी को उन तमाम समस्याओं के लिए जिम्मेदार मान लिया गया है, जिनके चलते इंसान ने इस धरती को रहने लायक नहीं छोड़ा हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, ‘ तमाम वास्तविक चुनौतियों से इस एक सरल और शून्यवादी तर्क के चलते मुंह मोड़ा गया है। अगर वैश्विक आपदाएं, बड़ी आबादी की वजह से ही आतीं तो सामान्य तर्क के लिहाज से तो दुनिया में लोगों की तादाद तो कम हो जानी चाहिए थी। फिर तो केवल कुछ खास तरह की आबादी के लोग ही धरती पर जिंदा बच पाते और बाकी लोग नहीं बचते।’

जनसंख्या के आकड़ों को देखें तो बढ़ती आबादी को खतरा बताना अब एक मिथ ज्यादा है। वैश्विक आबादी की वृद्धि दर साल 2020 से एक फीसदी से कम है। पूरी दुनिया में बच्चे पैदा करने की दर यानी फर्टिलिटी रेट घट रही है। दुनिया की दो तिहाई आबादी जिन देशों में रहती है, वहां कुल प्रजनन दर यानी टोटल फर्टिलिटी रेट यानी टीएफआर 2.1 से कम है या फिर ग्रोथ फर्टिलिटी रेट शून्य है।

टोटल फर्टिलिटी रेट को उन बच्चों के औसत के तौर पर परिभाषित किया जाता है, जिन्हें एक महिला अपने प्रजनन-काल के दौरान जन्म देती है। फर्टिलिटी रेट के 2.1 होने या औसतन एक महिला के दो बच्चों को जन्म देने को इस तरह से समझना चाहिए कि जन्म लेने वाले सारे बच्चे जीवित नहीं बचते, उनमें से कुछ की मौत हो जाती है।

इस तरह आबादी की वृद्धि दर, नकारात्मक श्रेणी में पहुंच जाती है। जिसके चलते आबादी घटती है। संयुक्त राष्ट्र के अनुमान दर्शाते हैं कि 2050 तक दुनिया की 50 फीसदी जनसंख्या-वृद्धि केवल आठ देशों में होगी। इनमें कांगो गणराज्य, मिस्र, इथिओपिया, भारत, नाइजीरिया, पाकिस्तान, फिलीपींस और यूनाईटेड रिपब्लिक ऑफ तंजानिया शामिल हैं।

वर्ल्ड पापुलेशन प्रॉस्पेक्टस् रिपोर्ट, 2022 भी उच्च- आय वाले देशों में आबादी के घटने को लेकर इसी तरह के तथ्य सामने लाती है। उसके मुताबिक, ‘ अगले कुछ दशकों में उच्च-आय वाले देशों में आबादी केवल उन लोगों के चलते बढ़ेगी, जो पलायन करके वहां जाएंगे, क्योंकि इन देशों में जन्म लेने वालों से ज्यादा संख्या मरने वालों की होगी।’

सरकारी आंकड़े के मुताबिक, भारत के 23 राज्यों और केंद्र- शासित प्रदेशों में टोटल फर्टिलिटी रेट कम है और जन्म- मृत्यु का अनुपात ज्यादा। आर्थिक सर्वेक्षण 2018-19 में कहा गया था कि जनसंख्या-वृद्धि दर अनुमान से ज्यादा तेजी से घटेगी।

इसके मुताबिक, ‘अगले दो दशकों में भारत जनसंख्या-वृद्धि दर में तीव्र गति से कमी आने के दौर का चलेगा।’ आर्थिक सर्वेक्षण में विश्लेषण किया था कि 2030 तक कुछ राज्यों में बुजुर्ग आबादी ज्यादा होगी। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट ने भी पहली बार आबादी घटने के अब तक विचार न किए जाने वाले इस पहलू पर हमें चेताया है। उसके मुताबिक, ‘अगर आबादी घटना जारी रहता है तो फिर सारे देश, यहां तक कि पूरी मानव-आबादी विनाश का शिकार हो सकती है।’