विकास

मनरेगा से बने स्कूलों में खेल के मैदान

Anil Ashwani Sharma

राजस्थान के गांवों की नवपौध यानी बच्चे जब स्कूल जाते हैं तो उन्हें स्कूल तो जैसे-तैसे नसीब हो जाता है, लेकिन खेल के मैदान के नाम पर स्कूल के आसपास की खाली पड़ी जमीनों पर लगी जंगली झाड़ियों से भरा मैदान ही नसीब हो पाता है। वहीं राज्य सरकार की प्राथमिकताएं भी ग्रामीण अंचलों में खेल मैदान तो दूर केवल स्कूल खोलने तक ही सीमित रहती हैं, लेकिन महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) के तहत इस कमी को दूर करने का प्रयास किया जा रहा है।

अकेले अजमेर जिले में मनरेगा के माध्यम से अब तक नौ स्कूलों में खेल के मैदान, ट्रैक एंड फील्ड और बाक्केटबॉल कोर्ट तैयार किए गए हैं। इस सबंध में अजमेर जिला परिषद में मनरेगा अधिकारी गजेंद्र सिंह राठौर ने डाउन टू अर्थ को बताया कि हमने यह महसूस किया है कि मरनेगा के तहत कहने के लिए तमाम विकास कार्यों को स्वीकृति दी जा रही है। और जिस प्रकार से हमने जिले में तमाम जल स्त्रोतों को पुनर्जीवित करने के साथ अन्य विकास कार्यों को शुरू करने के लिए पहले पहल ग्रामीणों के साथ बैठक कर अंतिम निर्णय पहुंचे थे। ठीक उसी प्रकार से मई में हमने कम से कम आधा दर्जन से अधिक स्कूलों से बातचीत की और इस दौरान यह बात निकल कर आई कि स्कूल तो हैं लेकिन खेल के मैदान नदारद।

वे बताते हैं कि ऐसे में हमने अब तक चार स्कूलों में खेल के मैदान, 200 मीटर दौड़ के लिए ट्रैक एंड फील्ड और बास्केटबॉल के मैदान  तैयार किए हैं। स्कूलों में बने खेल के मैदान के संबंध में जिले के एक अन्य मनरेगा अधिकारी अमित माथुर बताते हैं कि अकेले राजस्थान में ही नहीं देशभर के ग्रामीण अंचलों में सरकारों ने स्कूल तो खोल दिए हैं लेकिन अधिकांश स्कूलों में खेल के मैदान नहीं होते हैं। और इसे एक कमी के रूप में कोई भी नहीं उठाता।

वह बताते हैं कि अक्सर इसके लिए वित्तीय संसाधन की कमी को एक बड़े कारण के रूप में बताया जाता है। चूंकि हमारे पास मनरेगा फंड था तो हमने इस प्रकार से मनरेगा में खर्च करने की तैयारी की, ताकि गांव में हर प्रकार की मूलभूत सुविधाओं का निर्माण हो सके। केवल तालाब या नाली या सड़क तक ही मनरेगा के कामों को सीमित नहीं रखा गया।

उन्होंने बताया कि हमने देखा कि कई गांवों में स्कूल तो हैं लेकिन खेल के मैदान नहीं, ऐसे में हमने ग्राम पंचायत प्रमुख से बातचीत करके उनसे जमीन लेकर मनरेगा के तहत खेल मैदान तैयार करवाए। वह बताते हैं कि किक्रेट अब अकेले शहरी खेल नहीं रहा, अब बड़ी संख्या में ग्रामीण बच्चे भी इसमें अपना कौशल दिखाने में पीछे नहीं रहते। इसी बात को ध्यान में रखकर हमने दो स्थानों पर तो बकायदा किक्रेट खेलने के लिए सीमेंट की पिच तक तैयार करवा दी है। ताकि कोई भी खेल प्रतिभा केवल इस बिना पर पीछे न रह जाए कि उसके पास खेल के मैदान नहीं था, इस प्रकार दो स्कूलों में बास्केटबॉल कोर्ट भी तैयार किए हैं।