विकास

पीपुल्स फॉर हिमालय ने राजनीतिक पार्टियों के लिए जारी किया पांच सूत्रीय मांग पत्र

हिमालय में बढ़ रही आपदाओं पर अंकुश लगाने के लिए भारत के सभी हिमालयी राज्यों के संगठन एकजुट हुए

DTE Staff

2024 लोकसभा चुनाओं के मद्देनजर, नागरिक अधिकार संगठनों और सामाजिक, पर्यावरण न्याय के लिए प्रतिबद्ध कार्यकर्ताओं ने मिलकर पीपुल्स फॉर हिमालय नामक अभियान की शुरूआत की है और एक ऑनलाइन संवाददाता सम्मेलन के जरिए तमाम राजनीतिक पार्टियों के लिए एक पांच सूत्रीय मांग पत्र जारी किया है।

संविधान में दर्ज छठवीं अनूसूची लागू करने और लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा देने की मांग को लेकर पिछले 21 दिनों तक भूखहड़ताल करने वाले पर्यावरणवादी कार्यकर्ता सोनम वांगचुक ने कहा कि अद्भुत टोपोग्राफी, संस्कृति और जीवनशैली वाले क्षेत्रों में विकास और शासन का ऊपर से थोपा जाने वाला मॉडल काम करने वाला नहीं है।

लद्दाख के संघर्ष के साथ एकजुटता दर्शाते हुए पूरे हिमालय क्षेत्र के प्रतिनिधियों ने प्रेस को संबोधित करते हुए हिमालय से उठने वाली आवाजों को राष्ट्रीय स्तर पर हाशिये पर धकेले जाने को सामने रखा और कहा कि पर्वतों और उसमें रहने वाले समुदायों की भलाई के लिए निर्णयों में विकेंद्रीकरण और लोकतांत्रिक प्रक्रिया की मांग को लेकर हिमालयन एकजुटता की जरूरत है।

तीस्ता प्रभावित नागरिक (एसीटी) की तरफ से मय्लमित लेपचा और नार्थ ईस्ट डायलॉग फॉरम की तरफ से मोहन सैकिया ने स्थानीय आदिवासी समुदायों से अनुमति लिए बिना ब्रह्मपुत्र और उसकी सहायक नदियों पर प्रस्तावित भारी पन विद्युत परियोजनाओं के प्रति अपनी गंभीर चिंता प्रकट की, जिनसे वहां के पर्यावरण पर बुरे प्रभाव पड़ेंगे। सैकिया ने कहा कि ये ढांचागत परियोजनाओं का दूरगामी प्रभाव बाढ़ के रूप में नीचे तक दिखाई देता है।

जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति की तरफ से अतुल सती और हिमालयन नीति अभियान की तरफ से गुमान सिंह ने भूमिगत अतिक्रमण और भारी कचरे को देखते हुए बांध, रेलवे लाइन, फोरलेन हाईवे जैसी भारी ढांचागत परियोजनाओं पर पूर्णत रोक लगाने की मांग को जोरशोर के साथ उठाया गया।

उनका कहना था कि चाहे वह ब्यास में आई बाढ़ हो या फिर जोशीमठ में भूमि धंसाव ये प्राकृतिक नहीं, बल्कि मानव निर्मित आपदाएं हैं, इसके लिए नीतियां जिम्मेदार हैं। उन्होंने दोहराया कि अर्थव्यवस्था और शासन मुनाफा केंद्रित नहीं बल्कि जन केंद्रित होना चाहिए।

पर्वतीय महिला अधिकार मंच, हिमाचल की तरफ से विमला विश्वप्रेमी, वनगुज्जर ट्राइबल युवा संगठन, उतराखंड की तरफ से अमन गुज्जर ने कहा कि जिन लोगों का पर्यावरण संकट बढ़ाने और नीतियां बनाने में कोई योगदान नहीं है वही उनसे सबसे अधिक प्रभावित हो रहे हैं, इसमें हिमालय के चरवाहे, भूमिहीन दलित और महिला जैसे हाशिये के लोग शामिल हैं। जब वे अपने पांव पर खड़े होने की कोशिश करते हैं तो उनके लिए समर्थन और एकजुटता नजर नहीं आती।

अमन गुज्जर ने कहा कि एक तो हम आपदाओं से घिरे हुए हैं दूसरी तरफ लगातार हमारी भूमि पर जबरन वृक्षारोपण जैसी नीतियां अपनाई जाती हैं और हमारे जीवन, आजीविका के अधिकारों को प्रतिबंधित किया जाता है।

क्लाइमेट फ्रंट जम्मू के अनमोल ओहरी ने ग्लेशियर क्षेत्रों में बेतरतीब सड़क निर्माण और धार्मिक पर्यटन के मुद्दे को उठाते हुए कहा कि नदियों के किनारे स्थापित की जा रही विकास परियोजनाओं के कारण क्षेत्र में बाढ़ का खतरा बढ़ता जा रहा है।

कश्मीरी लेखक और शोधकर्ता डा. राजा मुजाफ्फर भट्ट ने क्षेत्र में वेटलैंड विनाश के संदर्भ में कहा कि निगरानी और विनियमन के मामले में केंद्रीय संस्थान पूरी तरह से विफल और उदासीन साबित हुए हैं।

वन्यजीव जीवविज्ञानी त्सेवांग नामगियाल और ग्लेशियोलॉजिस्ट स्मृति बासनेट ने उच्च हिमालय में जैव विविधता और हिमनदों के होते नुकसान पर अपनी चिंता जाहिर करते हुए अभियान के साथ अपनी आवाज मिलाई।

नामगियाल ने कहा, 'पहाड़ों को जल्दबाज, अहंकारपूर्ण और बेतरतीब विकास की जरूरत नहीं है।' शांति और न्याय के साथ न्यायसंगत, टिकाऊ और लचीले पर्वतीय समाजों का निर्माण ही आगे का रास्ता है और इसके लिए उचित संसाधन वितरण और स्वामित्व के माध्यम से स्थानीय आजीविका के आधार को मजबूत करने की आवश्यकता है।

आने वाले दिनों में मीडिया अभियान के साथ-साथ राजनीतिक दलों को पत्र लिखकर इस मांग पत्र से अवगत करवाया जाएगा और इसका अधिक से अधिक प्रचार प्रसार किया जाएगा।