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आईपीआर नियमों की छूट के संघर्ष में अमेरिका का आंशिक समर्थन विकासशील देशों के लिए बड़ा झटका

अमेरिका छूट को वैक्सीन तक सीमित करने के लिए दस्तावेज आधारित समझौता (टेक्स्ट बेस्ड निगोशिएशन) चाहता है, लेकिन कोई भी शिकायत नहीं कर रहा है।

Latha Jishnu

यहां एक विडंबना है। विकासशील देश विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) से कोविड-19 के इलाज, टीका (वैक्सीन) और उपकरणों पर बौद्धिक संपदा अधिकारों (आईपीआर) की छूट पाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। लेकिन अमेरिका की ओर से इसे आंशिक समर्थन देने की घोषणा के बाद यह और ज्यादा मुश्किल हो गया है। 5 मई को एक अप्रत्याशित बयान में अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधि कैथरीन ताई ने कहा कि जो बाइडेन प्रशासन वैक्सीन पर आईपीआर की छूट का समर्थन करेगा, जिसे सरकारों से लेकर मानवीय संगठनों और जन स्वास्थ्य की आवाज बुलंद करने वालों तक सभी ने खुशी से स्वीकार किया है।

इसका स्वागत इसलिए किया गया, क्योंकि अमेरिका आईपीआर का मूल समर्थक है और इसे मसीहाई उत्साह के साथ प्रोत्साहित करता है। यह उन देशों को सजा भी देता है, जिन पर ये आईपीआर संरक्षण के वैश्विक नियमों के उल्लंघन, सही या गलत, का आरोप लगाता है। विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) में आईपीआर संरक्षण के वैश्विक नियमों को ट्रिप्स के रूप में पहचाना जाता है। कोविड महामारी के विनाशकारी प्रभावों से लड़ने के लिए आईपीआर में कोई भी छूट देने में अमेरिका को सबसे बड़ी बाधा के रूप में देखा गया है।

यह भी आश्चर्यजनक नहीं था कि जो संगठन, आईपीआर में छूट की मांग करने वाले अभियान में सबसे आगे खड़े हैं, वे भी वाशिंगटन के रुख में अचानक आए बदलाव से अभिभूत दिखाई दिए।

लेकिन क्या यह वास्तव में एक नया मोड़ था? ताई का बयान बहुत संक्षिप्त और रूखा है। इसमें दो बिंदु हैं: जो बाइडेन प्रशासन केवल कोविड-19 वैक्सीन के लिए छूट का समर्थन करेगा और इसके लिए वह डब्ल्यूटीओ में दस्तावेज आधारित वार्ता में शामिल होगा। उसने डब्ल्यूटीओ में भारत-दक्षिण अफ्रीका के उस प्रस्ताव का कोई उल्लेख नहीं किया है, जिसे अक्टूबर 2020 में तैयार गया था और जिसके इर्द-गिर्द ही आईपीआर में छूट के इस वैश्विक अभियान ने आकार लिया है।

इस प्रस्ताव के 60 सह-प्रायोजक हैं और इसे 100 से ज्यादा डब्ल्यूटीओ सदस्यों का समर्थन हासिल है। लेकिन इस प्रस्ताव पर बीते सात महीनों में कोई प्रगति नहीं हुई है। यहां तक कि इस प्रस्ताव का कोई दस्तावेज भी नहीं है। इसके मूल प्रायोजक दस्तावेज तैयार करने की प्रक्रिया में थे, जब अमेरिका के चौंकाने वाले फैसले की घोषणा कर दी। इस प्रस्ताव के विरोधी खेमे में अमेरिका, यूरोपीय संघ, स्विट्जरलैंड और जापान जैसे अन्य देश शामिल हैं, जो दिग्गज दवा कंपनियों और खोजकर्ता कंपनियों की तरफ से ताकतवर तरीके से आवाज उठाते हैं। इसके विरोधी खेमे का इस बात पर जोर है कि अगर सौ साल बाद आई सबसे घातक महामारी से लड़ने के लिए आईपीआर में सीमित समय के लिए भी छूट दी गई तो यह उद्योग में इनोवेशन को खत्म कर डालेगा।

ताई इस बात को लेकर स्पष्ट हैं कि आईपीआर में अमेरिका का भरोसा अपरिवर्तित है। हालांकि, वे कहती हैं कि महामारी की असाधारण परिस्थितियों ने असाधारण उपायों की जरूरत पैदा की है और बाइडेन प्रशासन का मकसद है कि कम से कम समय में ज्यादा से ज्यादा लोगों को वैक्सीन मिले। इस सिरे पर, यह “वैक्सीन के उत्पादन और वितरण को बढ़ाने के लिए निजी क्षेत्र और सभी संभावित साझेदारों के साथ काम करना जारी रखेगा।” अमेरिका ने वैक्सीन बनाने में इस्तेमाल होने वाले कच्चे माल को बढ़ाने की दिशा में भी काम करने का वादा किया है।

कुछ हद तक, बिडेन ने अपनी साख को साबित भी किया है। उन्होंने एस्ट्राजेनेका कोविशिल्ड वैक्सीन की 20 लाख (दो मिलियन) डोज का उत्पादन करने के लिए सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया को कच्चा माल दिलाने के लिए रक्षा उत्पादन अधिनियम (डीपीए) के आधार पर काम किया है। डीपीए के तहत अमेरिकी फर्मों के लिए अन्य अमेरिकी अनुबंधों से पहले सरकारी अनुबंधों को प्राथमिकता देना जरूरी होता है। राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के हालिया बयान के मुताबिक, अमेरिकी सरकार खुद के लिए खरीदे गए कच्चे माल को भारत को दे रही है। उसने इसे भारत में सार्स-कोव-2 वायरस के भयावह प्रसार के खिलाफ लड़ाई में मदद करने का कार्यक्रम बना दिया है।

हालांकि, यह डब्ल्यूटीओ में लंबित आईपीआर की छूट का सवाल छोड़ देता है। डब्ल्यूटीओ में दस्तावेज आधारित वार्ताएं (Text-based negotiations) हमेशा ही बहुत लंबे समय तक अटकी रहती हैं और ताई भी चेतावनी दे चुकी हैं कि संस्था के आम सहमति-आधारित स्वभाव और इसमें शामिल विषयों की जटिलता को देखते हुए इसमें (अंतिम फैसला होने में) वक्त लगेगा। दस्तावेज को लिखना एक जटिल अभ्यास हो सकता है, क्योंकि इसमें तकनीक हस्तांतरण की बात को शामिल करने की जरूरत होगी।

इसका मतलब है कि अगर विकासशील देश अपने प्रस्ताव के कांट-छांट वाले संस्करण के साथ आगे बढ़ने के लिए राजी हुए तो ही बात आगे बढ़ सकती है।

बाइडेन की घोषणा पर तत्काल आई प्रतिक्रिया इस बात का संकेत हैं कि आगे क्या होने वाला है। हालांकि, यूरोपीय संघ का कहना है कि वह अमेरिकी प्रस्ताव पर चर्चा करने के लिए तैयार है, वह आईपीआर छूट के अलावा उत्पादन क्षमता, लाइसेंस और वैक्सीन निर्यात के बारे में ज्यादा विस्तृत चर्चा करना चाहता है। इस बात ने आईपीआर में छूट के जरिए ज्यादा से ज्यादा वैक्सीन उपलब्ध होने की उम्मीदों पर ठंडा पानी डाल दिया है। एक अपुष्ट बयान में कहा गया कि यह अगले साल भी संभव नहीं हो पाएगा। इस बीच उद्योग ने इसके खिलाफ एक तीखा अभियान छेड़ दिया है और इन्नोवेशन के खत्म होने जैसी गंभीर भविष्यवाणियां करने लगा है।

महामारी ने कई मोर्चों पर सुपरिचित उत्तर-दक्षिण विभाजन को तीखा कर दिया है, विशेष रूप से वैक्सीन तक पहुंच को लेकर। अमीर देशों ने अपनी आबादी के एक बड़े हिस्से का वैक्सीनकरण करने में सफलता हासिल कर ली है और हर्ड इम्युनिटी की तरफ बढ़ रहे हैं, जबकि कई देशों ने, विशेष रूप से अफ्रीका में, वैक्सीन से ही इनकार कर दिया है। इस छूट के प्रस्ताव ने डब्ल्यूटीओ को और ज्यादा ध्रुवीकृत बना दिया है, विशेष तौर पर उद्योग की सफल लॉबीइंग के कारण, जिसने कोविड वैक्सीन से भारी मुनाफा कमाने का लक्ष्य तय कर रखा है। कोविड वैक्सीन के शीर्ष पांच निर्माताओं को 2021 में 38 बिलियन डॉलर का मुनाफा होने की उम्मीद है।

लेकिन मृतकों की संख्या 32 लाख (3.2 मिलियन) (10 मई) पार होने के बाद, आईपीआर में छूट समर्थक खेमे की बेचैनी बढ़ने लगी है कि विकासशील देश गलत दिशा में कोई कदम उठा सकते हैं। एक विस्तार ले रही धारणा यह भी है कि सभी को वैक्सीन की उपलब्ध कराने में केवल आईपी की बाधा नहीं है, बल्कि निर्माण की सीमित क्षमता, कच्चा माल और प्रौद्योगिकी की कमी समेत दूसरी समस्याओं का पुलिंदा मौजूद है। इसे देखते हुए, डब्ल्यूटीओ के महानिदेशक नगोजी ओकोंजो-इवेला लाइसेंस पर आधारित ‘तीसरे रास्ते’ का सुझाव दिया है, ताकि ज्यादा से ज्यादा लोगों की वैक्सीन तक पहुंच को सरल बनाया जा सके।

पिछले साल छूट के प्रस्ताव को आगे बढ़ाने के बाद से दुनिया भर में 20 लाख (दो मिलियन) लोगों की मौत हो चुकी है और लाइसेंसिंग लॉबी दलीलों को इसलिए जीतती हुई दिखाई देती है, क्योंकि इसमें कोई स्पष्टता नहीं है कि अगर सब कुछ संभव हो जाए तो आईपीआर की छूट कैसे ज्यादा से ज्यादा वैक्सीन के रूप में बदल पाएगी। छूट समर्थकों ने हमेशा इस मुख्य सवाल को दरकिनार किया है कि डब्ल्यूटीओ की वार्ता के अगर सफल नतीजे आते हैं तो उन्होंने इनोवेशन करने वाली कंपनी से तकनीकी हस्तांतरण के लिए क्या योजना बनाई है। अगर यह भी मान लें कि वैक्सीन का उत्पादन करने के लिए अत्याधुनिक निर्माण सुविधा, उसके संचालन के लिए सक्षम वैज्ञानिक और कच्चे माल की पर्याप्त आपूर्ति जैसी सभी जरूरतें पूरी हो जाएंगी, तब भी तकनीकी हस्तांतरण को लेकर साझेदारी के बगैर नए एमआरएनए वैक्सीन का निर्माण मुश्किल हो सकता है। वैक्सीन के मामले में, पेटेंट नहीं है जो बाधा डालने का काम कर रहा है, बल्कि इससे जुड़ा ट्रेड सीक्रेट (व्यापारिक गोपनीयता) है, जो आईपीआर का सबसे जटिल रूप है। लाइसेंसिंग और सहयोग का विकल्प तकनीकी का दबावपूर्ण हस्तांतरण होगा, जो कतई आकर्षक नहीं है।

जो बाइडेन ने कांग्रेस (अमेरिकी संसद) से वादा किया है कि वे महामारी के खिलाफ इस लड़ाई में अमेरिका को “वैक्सीन के शस्त्रागार” में बदल देंगे। यह व्यापारिक दलील को मानवीय सिद्धांतों के साथ जोड़ता है और आईपीआर में छूट के लिए उनके समर्थन को एक अच्छी रणनीति बनाता है। जाहिर सी बात है, यह जीत या हार के बारे में नहीं है, - यह अमेरिका के लिए भी कोई मायने नहीं रखता है- बल्कि, इस बात को लेकर है कि लड़ाई में कौन किस पक्ष के साथ खड़ा है।