विकास

मनरेगा में पारदर्शिता पर सवाल, केवल दो राज्यों के हर जिले में हैं लोकपाल

18 राज्यों में अभी भी स्वतंत्र सोशल ऑडिट यूनिट निदेशक की नियुक्ति नहीं की गई है

Raju Sajwan

महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) के कार्यों की निगरानी के लिए हर जिले में लोकपाल की नियुक्ति का प्रावधान है, लेकिन केवल दो राज्य ऐसे हैं, जिसके हर जिले में लोकपाल है, बाकी 15 राज्यों और केंद्र शासित क्षेत्रों में किसी भी जिले में लोकपाल नहीं है, जबकि 17 राज्यों व केंद्र शासित क्षेत्रों के कई जिलों में लोकपाल नहीं है।

केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय की वर्ष 2020-21 के लिए बनी परफॉरमेंस रिव्यू कमेटी की पहली बैठक 24 से 28 अगस्त के बीच चल रही है। इस बैठक के एजेंडे के मुताबिक, राज्यों में मनरेगा लोकपाल की नियुक्ति नहीं हो पाई है। केवल दो राज्यों के सभी जिलों में लोकपाल की नियुक्ति की जा चुकी है, उनमें महाराष्ट्र और मणिपुर शामिल हैं।

जिन राज्यों के किसी भी जिले में लोकपाल की नियुक्ति नहीं हो पाई है, उनमें अरुणाचल प्रदेश, आसाम, बिहार, झारखंड, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, मिजोरम, नागालैंड, ओडिशा, राजस्थान, तमिलनाडु, त्रिपुरा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और जम्मू कश्मीर शामिल हैं।

इसके अलावा जिन राज्यों में लोकपाल नहीं हैं, उनमें आंध्रप्रदेश, छत्तीसगढ़, गोवा, गुजरात, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, केरल, मेघालय, पंजाब, सिक्किम, तेलंगाना, पश्चिम बंगाल, अंडमान निकोबार, दादर नागर हवेली और दमन दीव, लद्दाख, लक्षद्वीप और पुडुचेरी शामिल हैं।

इसके अलावा 26 राज्यों में स्वतंत्र सोशल आडिट यूनिट का गठन हो चुका है, लेकिन त्रिपुरा और गोवा में यूनिट का गठन नहीं हुआ है। ग्रामीण विकास मंत्रालय के एजेंडे में कहा गया है कि 18 राज्यों में अभी भी स्वतंत्र सोशल ऑडिट यूनिट निदेशक की नियुक्ति नहीं की गई है। इनमें अरुणाचल प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, केरल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, पंजाब, राजस्थान, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पश्चिम बंगाल, जम्मू कश्मीर शामिल हैं।

रोजगार गारंटी के लिए जन संघर्ष (पीएईजी) से जुड़े देबमाल्या बताते हैं कि मनरेगा के कार्यों में पारदर्शिता रहे और किसी तरह का भ्रष्टाचार न हो, इसके लिए मनरेगा कानून में लोकपाल और सोशल ऑडिट का प्रावधान किया गया था, लेकिन राज्य सरकारें इनके प्रति गंभीर नहीं हैं। सरकारें न तो लोकपाल की नियुक्ति करनी चाहती हैं और सोशल ऑडिट यूनिट की। जहां की भी जा रही है, वहां सरकारी अधिकारियों को ही इन पदों पर बिठाया जा रहा है।  जिस वजह से ये मकसद में कामयाब नहीं हो रही हैं। वह कहते हैं कि कोविड-19 के बाद मनरेगा जिस तरह से रोजगार का सबसे बड़ा जरिया बन कर सामने आया है। ऐसे समय में यह जरूरी है कि मनरेगा के कार्यों में पारदर्शिता बरती जाए और गड़बड़ी न हो।

2017 में केंद्र सरकार ने लोकपाल की नियुक्ति से संबंधित नई गाइडलाइन जारी की थी, जिसमें कहा गया था कि राज्य सरकारें जिला स्तर पर लोकपाल की नियुक्ति की सूचना केंद्रीय रोजगार गारंटी कौंसिल को भेजें, लेकिन राज्यों ने यह अब तक केंद्र को नहीं भेजी है। परफॉरमेंस रिव्यू कमेटी की बैठक में इस पर केंद्र द्वारा राज्यों से जवाब मांगा जाएगा। देबमाल्या कहते हैं कि कई राज्यों में तो राज्य रोजगार गारंटी कौंसिल तक निष्क्रिय हैं।