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असम में हाईवे के लिए कट रहे पेड़ों के बारे में एनजीटी ने मांगी जानकारी

झारखंड में अवैध खनन में शामिल लोगों के खिलाफ कार्रवाई की भी जानकारी एनजीटी ने मांगी है

Susan Chacko, Lalit Maurya

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) की पूर्वी बेंच के न्यायमूर्ति बी अमित स्टालेकर हाईवे निर्माण के दौरान काटे और बचाए गए पेड़ों के बारे में जानकारी न देने पर असम सरकार से असंतोष व्यक्त किया है। गौरतलब है कि यह मामला कामरूप में बोको और आजरा के बीच चार-लेन के हाईवे के निर्माण के दौरान काटे गए पेड़ों से जुड़ा है।

13 मई, 2024 को न्यायमूर्ति स्टालेकर ने सवाल किया है कि क्या जानबूझकर यह महत्वपूर्ण जानकारी अदालत से छिपाई जा रही है। इस मामले में अगली सुनवाई 24 जुलाई 2024 को होनी है।

गौरतलब है कि यह मामला 27 अक्टूबर, 2023 को नॉर्थईस्ट नाउ में छपी एक खबर पर स्वतः संज्ञान लेते हुए कोर्ट ने शुरू किया था। इस खबर के मुताबिक भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) ने चार लेन के हाइवे के निर्माण के लिए निचले इलाकों में 2000 से अधिक पेड़ों को काटने की योजना बनाई है। इस खबर में अभिनेता आदिल हुसैन के बयान का हवाला दिया है, जिनका कहना है कि हाईवे का निर्माण सदियों पुराने पेड़ों को काटे बिना संभव है।

इस बारे में चार अप्रैल 2024 को असम सरकार ने एक हलफनामा दायर किया था। इस हलफनामे में जिक्र किया है कि देहरादून में भारतीय वानिकी अनुसंधान और शिक्षा परिषद को पर्यावरण मंत्रालय ने सर्वोत्तम प्रथाओं और तकनीकों के उपयोग के दस्तावेजीकरण का काम सौंपा था। भारत में बुनियादी ढांचे से जुड़ी परियोजनाओं के दौरान पेड़ों को काटने के बजाय उनको कहीं ओर कैसे ले जाया जा सकता है, यह प्रथाएं उससे जुड़ी हैं।

देहरादून में वन अनुसंधान संस्थान (एफआरआई) ने एक अध्ययन किया था, जिसमें विभिन्न राज्यों से आंकड़े एकत्र किया गए और भारत में पेड़ों के स्थानांतरण पर एक रिपोर्ट पर्यावरण मंत्रालय को सौंपी गई।

हालांकि इस रिपोर्ट को शपथ पत्र के साथ दाखिल नहीं किया गया है। इसके अतिरिक्त, चार अप्रैल, 2024 को दायर हलफनामे में संदर्भित मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) की प्रति भी प्रदान नहीं की गई है, हलफनामे में केवल उसकी कुछ बातों का उल्लेख किया है। हलफनामे में यह भी नहीं बताया गया है कि एसओपी की तारीख क्या है या किसने इसपर हस्ताक्षर किए हैं।

इसके अलावा, एसओपी के अनुसार किन पेड़ों को संरक्षित किया जा सकता है या नहीं, इसके आंकड़ों का कोई जिक्र नहीं है। वहीं असम सरकार द्वारा प्रस्तुत दो हलफनामों में से किसी में भी इन निर्णयों के पीछे के कारणों का खुलासा नहीं किया गया है।

अवैध खनन में शामिल लोगों के खिलाफ क्या कुछ की गई कार्रवाई, एनजीटी ने जिला मजिस्ट्रेट से मांगा जवाब

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने 14 मई 2024 को गौरी घाट पर हो रहे अवैध रेत खनन के खिलाफ की गई कार्रवाई पर सरायकेला के जिला मजिस्ट्रेट को जवाबी हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया है।

अदालत ने यह भी जवाब मांगा है कि कानून का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ क्या कोई कार्रवाई की गई है। साथ ही क्या इन उल्लंघन करने वालों के खिलाफ पर्यावरणीय मुआवजे की गणना की गई है और क्या इसकी वसूली के लिए कानून के तहत कार्रवाई की गई है।

झारखंड राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (जेएसपीसीबी) ने अपनी रिपोर्ट में जानकारी दी थी कि नौ अप्रैल, 2024 को किए निरीक्षण के दौरान गौरी घाट पर अवैध खनन के संकेत मिले थे। बताया गया है कि स्थानीय ग्रामीणों द्वारा नदी तल से अवैध खनन किया जा रहा था।

गौरतलब है कि प्लास्टिक और टिन के ड्रमों की मदद से नावें बनाकर अवैध खनन किया जा रहा था। सात मई 2024 को इनमें से पांच नावें जब्त कर नष्ट कर दी गई। इनमें से कुछ नावों पर रेत पाई गई थी। इसके साथ ही नदी तट पर रेत के दो ताजा भंडार देखे गए, जो हालिया गतिविधियों का संकेत देते हैं। इसके अलावा, गौरी घाट तक पहुंचने वाली दो सड़कों को खाइयों का उपयोग करके अवरुद्ध कर दिया गया है। हालांकि इस मामले में सरायकेला के उपायुक्त या जिला दंडाधिकारी की ओर से अब तक कोई शपथ पत्र जमा नहीं किया गया है।

एनजीटी ने यह भी सवाल किया है कि 22 फरवरी, 2024 को एनजीटी की दिल्ली बेंच और फिर दो अप्रैल 2024 को कोलकाता में पूर्वी बेंच से नोटिस मिलने के बावजूद, सरायकेला के उपायुक्त या जिला मजिस्ट्रेट ने अभी तक हलफनामा क्यों जमा नहीं किया है। अदालत ने इस बात पर चिंता व्यक्त की है कि क्या राज्य उल्लंघनकर्ताओं को बचा रहा है।