विकास

महिला सशक्तीकरण और लैंगिक समानता के मामले में पिछड़े देशों में शामिल है भारत: यूएन वीमेन रिपोर्ट

बात चाहे स्वास्थ्य की हो या विकास की देश में महिलाएं आज भी पुरुषों से पीछे हैं और बराबरी का हक पाने के लिए जद्दोजहद कर रही हैं

Lalit Maurya

यूनाइटेड नेशन डेवलपमेंट प्रोग्राम (यूएनडीपी) और महिलाओं के सशक्तिकरण और लैंगिक समानता के लिए काम कर रहे संगठन यूएन वीमेन ने अपनी नई रिपोर्ट "द पाथ्स टू इक्वल" में भारत को महिला सशक्तीकरण और लैंगिक समानता के मामले में पिछड़े देशों की लिस्ट में शामिल किया है। 

रिपोर्ट में महिला सशक्तिकरण सूचकांक (डब्ल्यूईआई) और वैश्विक लिंग समानता सूचकांक (जीजीपीआई) से जुड़े आंकड़े साझा किए गए हैं। इन दोनों ही सूचकांकों में भारत को पिछड़े देशों की लिस्ट में रखा गया है। जहां भारत को डब्ल्यूईआई इंडेक्स में 0.52 अंक दिए गए हैं वहीं जीजीपीआई इंडेक्स में कुल 0.56 अंक मिले हैं। इस लिस्ट में भारत के साथ उसके पड़ोसी देश पाकिस्तान, नेपाल और श्रीलंका भी शामिल हैं। 

इस रिपोर्ट में महिलाओं के विकास, स्वास्थ्य, स्वतंत्रता, सामर्थ्य की दिशा में हुई प्रगति का आंकलन करने के लिए दोनों सूचकांकों का उपयोग किया गया है। यह दोनों महिला सशक्तिकरण सूचकांक (डब्ल्यूईआई) और वैश्विक लिंग समानता सूचकांक (जीजीपीआई) अलग-अलग होते हुए भी एक दूसरे के पूरक हैं।

डब्ल्यूईआई इंडेक्स पांच आयामों में विकल्प चुनने और जीवन के अवसरों का लाभ उठाने में महिलाओं के सामर्थ्य और स्वतंत्रता को मापता है, जिनमें  स्वास्थ्य, शिक्षा, समावेशन, निर्णय लेने और महिलाओं के खिलाफ हिंसा से जुड़े मुद्दे शामिल हैं। इसी तरह, जीजीपीआई इंडेक्स स्वास्थ्य, शिक्षा, समावेशन और निर्णय लेने सहित मानव विकास के मुख्य आयामों में पुरुषों के सापेक्ष महिलाओं की स्थिति का मूल्यांकन करता है।

गहरी है महिला-पुरुष के बीच असमानता की खाई

वैश्विक लिंग समानता सूचकांक (जीजीपीआई) के मुताबिक भारत में महिलाओं की स्थिति इसी बात से स्पष्ट हो जाती है कि जहां 2023 के दौरान संसद में महिलाओं की हिस्सेदारी केवल 14.72 फीसदी थी वहीं स्थानीय सरकार में उनकी हिस्सेदारी 44.4 फीसदी दर्ज की गई। हालांकि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में राष्ट्रपति के रूप एक महिला का चुनाव महिला सशक्तीकरण की गाथा का एक अंश है। जो दर्शाता है कि समाज जागरूक हो रहा है। लेकिन अभी भी इस क्षेत्र में काफी कुछ किया जाना बाकी है।

इसी तरह यदि शिक्षा की बात करें तो जहां 2022 में केवल 24.9 फीसदी महिलाओं ने माध्यमिक या उच्चतर शिक्षा हासिल की थी वहीं पुरुषों में यह आंकड़ा 38.6 फीसदी दर्ज किया गया। इसी तरह यदि 2012 से 2022 के आंकड़ों को देखें तो केवल 15.9 फीसदी महिलाएं ही मैनेजर पदों पर थी।

इसी तरह विवाहित महिलाओं या जिनका छह वर्ष से कम उम्र का बच्चा है उनकी श्रम बल में भागीदारी 27.1 फीसदी दर्ज की गई। इसी तरह 2018 में करीब 18 फीसदी महिलाएं और लड़कियां अपने साथी द्वारा शारीरिक या यौन हिंसा का शिकार बनी थी। इसी तरह 2012 से 2022 के बीच 43.53 फीसदी युवा बच्चियां शिक्षा, रोजगार या प्रशिक्षण से वंचित रह गई थी।

एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया भर में काम करने योग्य उम्र की 15 फीसदी महिलाऐं ऐसी हैं जो काम करना चाहती हैं, लेकिन उनको इसका अवसर ही नहीं मिल पा रहा है। वहीं पुरुषों की बात करें तो उनके लिए यह आंकड़ा 10.5 फीसदी है। मतलब साफ है की महिलाओं की तुलना में पुरुषों को काम पाने के कहीं ज्यादा मौके हैं।

यदि वर्ल्ड बैंक द्वारा जारी आंकड़ों को देखें तो भारत की कुल आबादी में महिलाओं की हिस्सेदारी 48.4 फीसदी है। ऐसे में यदि हम उनको बढ़ने का मौका नहीं देते तो उसका असर पूरे समाज पर पड़ेगा। ऐसे में यदि महिलाओं को भी यदि देश की प्रगति में हिस्सेदार बनाया जाए तो उससे देश कहीं ज्यादा खुशहाल बनेगा।

यह सही है कि देश में महिलाओं और बच्चियों को प्रत्यक्ष रूप से सशक्त बनाने के लिए ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ जैसी कई सरकारी योजनाएं शुरू की गई हैं। लेकिन साथ ही समाज को अपनी महिलाओं को लेकर अपनी मानसिकता में भी बदलाव करने की जरूरत है। हमें यह समझना होगा की समाज महिला और पुरुष दोनों से मिलकर बना है, ऐसे में समुचित विकास के लिए दोनों की ही बराबर की भागीदारी जरूरी है।