प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति ने गहरे समुद्र में संसाधनों का पता लगाने और महासागरीय संसाधनों के सतत उपयोग के लिए ‘गहरे समुद्र अभियान’ को मंजूरी दे दी है। इस अभियान का उद्देश्य गहरे समुद्र से जुड़ी प्रौद्योगिकियों को विकसित करना है। इस मिशन का प्रस्ताव पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (एमओईएस) ने किया था।
इस अभियान को चरणबद्ध तरीके से लागू करने के लिए 5 वर्षों में करीब 4,077 करोड़ रुपए की लागत आएगी। वहीं पहले चरण में 3 वर्षों (2021 से 2024) पर करीब 2823.4 करोड़ रुपए का खर्च आएगा। यह एक मिशन आधारित परियोजना है जो भारत सरकार की नील अर्थव्यवस्था पहल का समर्थन करेगी। वहीं पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (एमओइएस) इस बहु-संस्थागत महत्वाकांक्षी अभियान को लागू करने वाला नोडल मंत्रालय होगा।
महासागर हमारे लिए बहुत मायने रखते हैं। विश्व के लगभग 70 फीसदी हिस्से पर महासागर मौजूद हैं जोकि हमारे जीवन का एक अभिन्न अंग हैं। हालांकि इसके बावजूद गहरे समुद्र का लगभग 95 फीसदी हिस्सा अभी तक खोजा नहीं जा सका है। यदि भारत की भौगोलिक स्थिति को देखें तो उसके तीन किनारे महासागरों से घिरे हैं। देश की लगभग 30 फीसदी आबादी तटीय क्षेत्रों में रहती है। यह मत्स्य पालन, जलीय कृषि, पर्यटन, आजीविका और नील व्यापार के लिए अत्यंत मायने रखते हैं।
क्यों मायने रखता है यह मिशन
महासागर न सिर्फ भोजन, ऊर्जा, खनिजों और औषधियों का भंडार हैं साथ ही यह मौसम और जलवायु को भी काफी हद तक प्रभावित करते हैं। संक्षेप में कहें तो यह पृथ्वी पर जीवन का आधार हैं। यही वजह है कि दीर्घकालिक रूप से महासागरों के महत्व को देखते हुए, संयुक्त राष्ट्र ने 2021 से 2030 के दशक को महासागरों के शाश्वत विकास के लिए महासागर विज्ञान दशक के रूप में घोषित किया है।
भारत की समुद्री स्थिति अद्वितीय है। इसकी 7,517 किलोमीटर लंबी तटरेखा है, जो नौ तटीय राज्यों से गुजरती है और 1,382 द्वीपों का आवास है। गौरतलब है कि 2030 तक के लिए जारी नए भारत के विकास की अवधारणा के दस प्रमुख आयामों में से नील अर्थव्यवस्था भी एक प्रमुख आयाम है।
इस अभियान में छह प्रमुख घटक शामिल हैं, जिनमें गहरे समुद्र में खनन और मानवयुक्त पनडुब्बी के लिए प्रौद्योगिकियों का विकास, महासागर जलवायु परिवर्तन सलाहकार सेवाओं का विकास, गहरे समुद्र में जैव विविधता की खोज और संरक्षण के लिए नई तकनीकों को बढ़ावा, वहां सर्वेक्षण और अन्वेषण करना, महासागर से ऊर्जा और मीठे पानी को प्राप्त करना और महासागर जीवविज्ञान के लिए उन्नत समुद्री स्टेशन की स्थापना करना शामिल है।
गहरे समुद्र में खनन करने के लिए आवश्यक प्रौद्योगिकियों का रणनीतिक महत्व है लेकिन भारत में यह वाणिज्यिक रूप से उपलब्ध नहीं हैं। इसलिए इस मिशन के तहत अग्रणी संस्थानों और निजी उद्योगों के सहयोग से प्रौद्योगिकियों को स्वदेश में ही निर्मित करने का प्रयास किया जाएगा। गहरे समुद्र में खोज के लिए भारतीय शिपयार्ड में एक शोध पोत भी बनाया जाएगा, जो रोजगार के अवसर भी पैदा करेगा।
यह मिशन समुद्री जीव विज्ञान क्षमता के विकास पर भी ध्यान देगा जो रोजगार के नए अवसर पैदा करेगा। इसके साथ ही विशेष उपकरणों, जहाजों के डिजाइन, विकास और निर्माण और आवश्यक बुनियादी ढांचे की स्थापना से भारतीय उद्योग, विशेष रूप से एमएसएमई और स्टार्ट-अप के विकास को भी गति मिलने की उम्मीद है।