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आवारा कुत्तों के प्रति असहिष्णुता की कमी: मेनका गांधी

आवारा कुत्तों से खतरे के आंकड़े विश्वसनीय नहीं

हाल के दिनों में मीडिया में “कुत्तों के काटने” से जुड़ी खबरों में ध्यान देने योग्य बढ़ोतरी हुई है। आइए, इसे बेहतर तरीके से समझते हैं। कुत्ते बहुत कठोर परिस्थितियों में ही काट सकते हैं और इसके पीछे सिर्फ दो कारण हो सकते हैं, जैविक या पर्यावरणीय। एक मादा, बच्चों को जन्म देती है तो वह उनको लेकर काफी सुरक्षात्मक रहती है और थोड़ा भी खतरा महसूस होने पर विरोधी हो जाती है। कुत्ते भी इससे अलग नहीं हैं।

वहीं, अगर मादा कुत्ता उत्तेजना में होती है तो नर कुत्ते (जिनकी नसबंदी नहीं हुई है) उसके पास जाने के लिए प्रतिस्पर्धा करते हैं और हार्मोन के चलते वे आक्रामक हो जाते हैं। कुत्तों को नपुंसक बनाकर इन कारणों का समाधान निकाला जा सकता है। पर्यावरणीय कारण अलग-अलग हो सकते हैं।

अगर उनके साथ बुरा बर्ताव किया जाता है जैसे उन्हें उनके परिचित इलाकों से उठाकर कहीं और रख दिया जाता है, लम्बे समय तक चेन में बांधकर रखा जाता है, अगर वे बीमार हों, भूखे हों या सोते अथवा खाते वक्त कोई उन्हें बिदका दे, तो कुत्तों का मनुष्य विरोधी हो जाना संभावित होता है।

अक्सर स्वास्थ्य विभागों से कुत्तों के काटने का आंकड़ा लेकर यह कहना कि मनुष्यों की जान, जानवरों की जान से कीमती है, सीधे तौर पर आवारा कुत्तों को टारगेट में लेना है। मगर ये आंकड़े कितने भरोसे लायक हैं? जब भी कोई आदमी पोस्ट-एक्सपोजर रेबीज लेने जाता है, तो अस्पताल अपने रिकॉर्ड में उसे कुत्ते के काटने के तौर पर दर्ज करता है। इसमें फोकस इलाज पर होना चाहिए और कुत्तों से जुड़ी कोई भी जानकारी अप्रासंगिक है। अगर जानवर को वैक्सीन लगी हुई और लोगों को जख्म नहीं है, तब भी उन्हें वैक्सीन लगा दी जाती है। ऐसा लगता है कि विभाग, काउंसलिंग करने की जगह सिर्फ आंकड़े बढ़ाना चाहता है। वैक्सीन के लिए जितने लोग जाते हैं, उनमें से 80 प्रतिशत लोगों को या तो उनके अपने पालतू कुत्तों ने या फिर दूसरों के पालतू कुत्तों ने काटा होता है। आवारा कुत्तों से हमारा संपर्क सीमित है।

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लेकिन पालतू कुत्तों के साथ हम नजदीक से जुड़े हैं। जब कुत्तों के काटने की घटनाएं होती हैं, तो आवारा कुत्तों ने काटा है या पालतू ने, यह अंतर नहीं किया जाता है। सभी मामले कुत्ते के काटने के तौर पर दर्ज होते हैं और ये सारे मामले आवारा कुत्तों के मत्थे मढ़ दिए जाते हैं। सच तो यह है कि एक ही आदमी को जब वैक्सीन लगती है, तो उसे कुत्ते के काटने के नए मामले के तौर पर दर्ज किया जाता है। यह बहुत जरूरी है कि केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय सभी मेडिकल इंस्टीट्यूट्स को कुत्तों के काटने के मामलों को आवारा कुत्तों के काटने, पालतू कुत्तों के काटने या किसी अन्य जानवर के काटने के अलग-अलग खानों में दर्ज करने का निर्देश जारी करें। हर मरीज को एक अद्वितीय नंबर/ कार्ड जारी किया जाना चाहिए ताकि वैक्सीन लेने पर उसी नंबर पर दर्ज हो न कि नए मरीज के तौर पर। केवल कुत्तों की आबादी घटाने का जवाब जन्म-दर नियंत्रण है, लेकिन लोगों में आवारा जानवरों के प्रति बढ़ी असहिष्णुता को कम करना भी उतना ही जरूरी है। मीडिया की बड़ी जिम्मेदारी है कि वह इस तरह की दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं को सनसनी न बनाए बल्कि इसको लेकर जागरुकता फैलाए और सहानुभूति व्यक्त करे।

(मेनका गांधी लोकसभा सांसद और पर्यावरण तथा पशु अधिकार कार्यकर्ता हैं)