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भारत के दो और तटों को मिला प्रतिष्ठित ब्लू फ्लैग प्रमाणन, जानें क्या है यह प्रमाणन

भारत के दो और तटों कोवलम और ईडन को 'ब्लू फ्लैग' प्रमाणन दिया गया है, जोकि सारे देश के लिए गर्व की बात है। इससे पहले पिछले वर्ष देश के आठ तटों को यह प्रतिष्ठित प्रमाण पत्र दिया गया था

Lalit Maurya

भारत के दो और तटों को 'ब्लू फ्लैग' प्रमाणन दिया गया है। यह अंतराष्ट्रीय स्तर पर दिया जाने वाला एक प्रतिष्ठित प्रमाण पत्र है, जिसे डेनमार्क की एक संस्था द्वारा दिया जाता है। गौरतलब है कि अब तक देश के कुल 10 तटों को यह प्रमाणन दिया जा चुका है, जोकि सारे देश के लिए गर्व की बात है। इस बार तमिलनाडु में कोवलम और पुडुचेरी में ईडन को यह प्रतिष्ठित प्रमाण पत्र दिया गया है। पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने इस बारे में जानकारी साझा की है। 

इससे पहले देश में केरल के कप्पाड़, शिवराजपुर (गुजरात), घोघला (दीव), कासरकोड और पदुबद्री (कर्नाटक), रुशिकोंडा (आंध्र प्रदेश), गोल्डन (ओडिशा) और राधानगर (अंडमान और निकोबार द्वीप समूह) को पिछले वर्ष यह प्रमाणन दिया जा चुका है। 

पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने देश में तटीय क्षेत्रों के शाश्वत विकास के लिए एक नई पहल बीईएएमएस को शुरू किया है। इसका उद्देश्य संसाधनों के समग्र प्रबंधन के जरिए देश के प्राचीन तटीय और समुद्री पारिस्थितिक तंत्र की रक्षा और संरक्षण करना है। देखा जाए तो इस कार्यक्रम का उद्देश्य तटीय जल में मौजूद प्रदूषण को कम करना, तटीय सुविधाओं के सतत विकास को बढ़ावा देना, तटीय पारिस्थितिक तंत्र और प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा करना और तटीय पर्यावरण सम्बन्धी नियमों के अनुसार स्वच्छता और सुरक्षा के उच्च मानकों को बनाए रखना है। 

क्या होता है ब्लू फ्लैग प्रमाणन

'ब्लू फ्लैग' एक अंतराष्ट्रीय प्रमाणन है जो समुद्र तटों, मरीनाओं और पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए बोट टूरिज्म चला रहे ऑपरेटरों को हर वर्ष दिया जाता है। वर्तमान में दुनिया के 49 देशों के 4,820 समुद्र तटों, मरीनाओं और नौकाओं को यह प्रमाणन दिया जा चुका है, जिसमें भारत भी शामिल है। इस डेनमार्क की एक संस्था फाउंडेशन फॉर एनवायरनमेंटल एजुकेशन (एफईई) द्वारा दिया जाता है। 

यह प्रमाणन किसे दिया जाना है इसका फैसला एक अंतरराष्ट्रीय जूरी द्वारा किया जाता है, जिसमें संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी), संयुक्त राष्ट्र विश्व पर्यटन संगठन (यूएनडब्ल्यूटीओ), डेनमार्क स्थित एनजीओ फाउंडेशन फॉर एनवायरनमेंटल एजुकेशन (एफईई) और इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (आईयूसीएन) के सदस्य शामिल होते हैं।

यह किसे दिया जाएगा इसका फैसला इस बात के आधार पर लिया जाता है कि जिन तटों को यह दिया जा रहा है वहां पानी की गुणवत्ता कैसी है। वहां पर्यावरण शिक्षा एवं सूचना के प्रसार के लिए कितना काम किया जा रहा है साथ ही पर्यावरण प्रबंधन और समुद्र तटों पर संरक्षण, सुरक्षा एवं सेवा की क्या स्थिति है। साथ ही वो वहां पर्यावरण की गुणवत्ता को बनाए रखने के लिए निरंतर प्रयास कर रहे हैं। 

इस प्रमाणन के लिए एफईई निर्धारित 33 मानदंडों का पालन हो रहा है या नहीं इसकी नियमित निगरानी और ऑडिट करती है। इस प्रमाण पत्र इस बात का सबूत है कि यह समुद्र तट इन मानदंडों का पूरी तरह पालन कर रहे हैं। साथ ही यहां पानी की गुणवत्ता बेहतर है। 

सफलता की कहानी

पिछले तीन वर्षों में वृक्षारोपण की मदद से इन दस तटों पर करीब 95,000 वर्ग मीटर क्षेत्र में बालू के टीलों की बहाली की गई है।  यही नहीं समुद्री कचरे में करीब 85 फीसदी और प्लास्टिक में करीब 78 फीसदी की कमी आई है। वहीं 750 टन कचरे का वैज्ञानिक तरीके से निपटान किया गया है। यही वजह है कि वहां स्वच्छता का स्तर  "सी" (खराब) से "ए ++ पर पहुंच गया है। यही नहीं रीसाइक्लिंग की मदद से हर वर्ष करीब 1100 एमएल पानी की बचत की जा रही है।  

पिछले तीन वर्षों से पानी की गुणवत्ता और स्वास्थ्य पर पड़ने वाले असर की निगरानी की जा रही है, साथ ही इसका एक डाटाबेस भी तैयार किया गया है। यही नहीं समुद्र तटों पर जाने वाले करीब 1,25,000 सैलानियों को भी इस बारे में जागरूक किया गया है। वहां मनोरंजन गतिविधियों के लिए पर्यटकों की संख्या में लगभग 80 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई है जो आर्थिक विकास में भी मददगार हुई है। साथ ही प्रदूषण रोकथाम, और सुरक्षा सेवाओं में मछुआरों के 500 परिवारों के लिए जीविका के अवसर तैयार किए गए हैं। 

देखा जाए तो भारत में दो और तटों को स्वच्छता, पानी की गुणवत्ता और पर्यावरण प्रबंधन के लिए इस  प्रमाणन का मिलना इस बात को दर्शाता है कि देश में पर्यावरण संरक्षण और स्वच्छता की दिशा में काम हो रहा है।