राजधानी दिल्ली में 19 जुलाई, 2020 को हुई भारी बारिश की वजह से मिंटो ब्रिज अंडर पास पर पानी भर गया, जिसमें एक बस डूब गई। फोटो: twitter.com/mohulsharmaa 
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जानिए कैसे वर्षा ज्ञान के अभाव ने मिंटो ब्रिज को बनाया ऐतिहासिक भूल

वास्तुकार लुटियंस ने नई दिल्ली गढने के दौरान इस ब्रिज की खूबसूरती को तो ध्यान में रखा लेकिन वह ये भूल गए कि यूरोप और भारत की वर्षा में काफी भिन्नता है

Vivek Mishra

भारतीय मानसून की खासियत यह है कि कुछ ही घंटो में किसी क्षेत्र में साल की औसत वर्षा का 50 या उससे अधिक फीसदी पानी बरसा सकता है। 

भारत में राज करने वाले ब्रितानिया हुकूमत के अंग्रेजी वास्तुकार वर्षा वितरण की इस खासियत का अंदाजा नहीं लगा पाए और देश की राजधानी दिल्ली में मिंटो ब्रिज नाम का एक ऐसा विरासती नमूना देकर चले गए जहां थोड़ी सी वर्षा के दौरान ही जानलेवा बाढ़ जैसी स्थिति पैदा हो जाती है।

हाल ही में 28 जून, 2024 को दिल्ली में हुई अत्यंत भीषण मानसूनी वर्षा ने पूरी राजधानी को जलमग्न कर दिया। इस भीषण वर्षा के दौरान 11 लोगों की मौत हो गई और मिंटो ब्रिज समेत कई सुरंग वाले रास्तों में इतना पानी भर गया कि उन्हें बंद करना पड़ा। जुलाई, 2020 में ऐसी ही भीषण वर्षा के बाद मिंटो ब्रिज के नीचे एक डीटीसी बस डूब गई थी और जलभराव के कारण एक व्यक्ति की मौत भी हो गई थी।

भारतीय मौसम विभाग के मुताबिक सफदरजंग स्टेशन पर 28 जून, 2024 की सुबह साढ़े आठ बजे तक 229 मिलीमीटर (एमएम) वर्षा रिकॉर्ड की गई जो कि 1936 के बाद से जून महीने की दूसरी सर्वाधिक वर्षा थी। सालाना औसत 800 एमएम वर्षा हासिल करने वाले दिल्ली में कुछ घंटों की यह वर्षा  भारत के मानसून की प्रकृति को दिखाता है कि किस तरह कुछ घंटों में ही बहुत ज्यादा वर्षा हो सकती है।

दिल्ली की हृदयस्थली कनॉट प्लेस और रेलवे स्टेशन तक पहुंचाने वाला मिंटो ब्रिज का रास्ता अब अपनी ऑर्क शेप की खूबसूरत सिविल इंजीनियरिंग के कारण कम बल्कि जलभराव के कारण ज्यादा पहचाने लगा है, जहां बरसात में न सिर्फ शक्तिशाली इंजन वाली गाड़ियां पानी में जाकर डूबने की स्थिति में आ जाती हैं बल्कि यह ब्रिज जानलेवा भी बन जाता है। 

मिंटो एक रेलवे ब्रिज है जो कि मिंटो रोड पर ही बनाया गया है। दरअसल मिंटो नाम 1905 से 1910 के बीच भारत में तत्कालीन ब्रिटिश वायसराय रहे लॉर्ड मिंटो के नाम से प्रचलन में आया। हालांकि, सरकारी कागजों में इसका नाम अब शिवाजी ब्रिज दर्ज है।

1933 में इसे यमुना के बाढ़ क्षेत्र और दिल्ली रिज के बीच बनाया गया था। दिल्ली रिज प्राचीन अरावली रेंज का उत्तरी विस्तार है जो शहरी क्षेत्र से घिरा हुआ है। मिंटो रेलवे ब्रिज को बनाने में चूना गारे और सीमेंट का इस्तेमाल किया गया है। 

90 वर्ष के इस पुराने ब्रिज के नीचे की सड़क एक कटोरे जैसी है, जिसमें वर्षा के समय बहुत तेज जलभराव होता है। इस दौरान जलभराव की समस्या से बचने के लिए ब्रिज के रास्ते में कई बदलाव किए गए, मसलन रास्ते को चौड़ा किया गया। साथ ही शक्तिशाली मोटर पंप लगाए गए ताकि जलभराव होते ही पानी को बाहर निकाल लिया जाए । हालांकि, यह सारे उपाय अब तक विफल साबित हुए हैं। 

औपनिवेशिक काल में बनाए गए इस रेलवे ब्रिज को हेरिटेज यानी विरासत माना जाता है। इसका निर्माण नई दिल्ली को अपने शिल्प और वास्तु से गढ़ने वाले एडविन लुटियंस की देखरेख में उनकी टीम के द्वारा हुआ था। 

आधुनिक शिल्प और वास्तु के महारथी लुटियंस नई दिल्ली में इस ब्रिज की खूबसूरती को ध्यान में रखा लेकिन वह यह भूल गए कि यूरोप और भारत की वर्षा में काफी भिन्नता है। 

सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट की ओर से प्रकाशित बूंदों की संस्कृति (डाइंग विजडम का हिंदी अनुवाद) में बरसात की विभिन्नता को लेकर दिवंगत प्रमुख मौसम विज्ञानी पी.आर पिशरोती के हवाले से लिखा गया है " भारत में बरसात की प्रकृति यूरोप से एकदम भिन्न है। और यहां की बरसात की प्रवृत्तियों को औपनिवेशिक शासन के दौरान यूरोप से आए इंजीनियरों ने नहीं समझा और आज भी भारतीय इंजीनियर यही गलती दोहराए जा रहे हैं। अब भी जो परियोजनाएं तैयार हो रही हैं वे देसी पर्यावरण से मेल नहीं खाती।"

वहीं, बरसात इस प्रकृति की भिन्नता पर पिशरोती आगे बताते हैं कि  "यूरोप के विपरीत भारत में पूरे वर्ष बरसात नहीं होती। बरसात मुख्यतः साल के चार महीनों में होती है। फिर इन दिनों भी रोज पानी नहीं बरसता। देश के अधिकांश इलाकों में वहां पड़ने वाला अधिकांश पानी 50 दिनों में ही गिरता है। और इन दिनों में भी चौबीसो घंटो पानी नहीं बरसता। दरअसल जब पानी पड़ता है तब मूसलाधार ही बरसता है। देश के अधिकांश हिस्सों में ज्यादातर पानी 100 घंटों के अंदर ही गिरता है।" 

बूंदों की संस्कृति पुस्तक में इस बारे में पिशरोती के अनुभव के हवाले से एक दावा यह भी किया गया है कि किसी भी जगह औसत जितने सेंटीमीटर पानी बरसता है और अक्सर वहां उतने ही घंटों में पानी पड़ जाता है। 

मिसाल के तौर पर दिल्ली में 80 सेंटीमीटर बारिश होती है और यहां 80 घंटों में ही बारिश हो जाती है। इतना ही नहीं पिशरोती के अनुसार साल का आधा पानी तो बरसात वाले कुछ घंटों के सिर्फ पांचवे हिस्से के अंदर ही बरस जाता है। 

इस प्रकार अगर किसी शहर में औसत 80 सेंटीमीटर पानी पड़ता है तो 40 सेंटीमीटर पानी सिर्फ 16 घंटों में ही बरस जाता है। जबकि पूरे देश को देखें तो आधे हिस्से में वहां पड़ने वाले पानी का आधा भाग सिर्फ 20 घंटों के अंदर ही बरस जाता है। 

भारत में मूसलाधार वर्षा की यह तथ्य शायद वास्तुकार एडवर्ड लुटियंस नहीं लगा पाए।

पिशरोतीके अनुसार "एडवर्ड लुटियंस जिन्होंने दिल्ली शहर को बसाने की योजना बनाई थी, वह भी हमारे यहां होने वालीबरसात की प्रकृति नहीं जान पाए थे। नई दिल्ली और पुरानी दिल्ली को जोड़ने वाली जो सड़क मिंटो ब्रिज के नीचे से गुजरती है वह 20 से 30 मिलीमीटर वर्षा होते ही पानी से भर जाती है। शायद इस नामी वास्तुकार ने सोचा होगा कि दिल्ली में होने वाली 800 मिलीमीटर वर्षा 365 दिनों में बराबर होती होगी।"

इससे पता चलता है कि देसी पर्यावरण के ज्ञान के अभाव में  न सिर्फ करीब 90 साल पुराना शिल्प एक बर्बाद नमूना हो सकता है बल्कि इंजीनियरों का अंधानुकरण आधुनिक सुरंगों को भी एक ही बरसात में विफल कर दे रहा है।