विकास

जोशीमठ : खत्म होते शहर की दर्द-ए-दास्तां

जोशीमठ में हर मॉनसून में भूस्खलन की समस्या होती है। लेकिन अब जो नई दरारें दिखाई पड़ रही हैं, इसका कारण तपोवन-विष्णुगाढ़ परियोजना ही है

Raju Sajwan

उत्तराखंड के निवासियों ने जमींदोज होते जोशीमठ शहर के लिए प्रशासन को जिम्मेदार ठहराया है। स्थानीय निवासियों ने डाउन टू अर्थ की टीम को बताया है कि तपोवन-विष्णुगाढ़ जैसी परियोजनाएं इस स्थिति के लिए वास्तव में जिम्मेदार हैं। स्थानीय निवासी प्रताप चौहान ने कहा कि यहां बड़ी संख्या में निवासी न केवल तनाव में हैं बल्कि वे मानसिक दबाव में भी है। उन्होंने बताया कि जोशीमठ में हर मॉनसून में भूस्खलन की समस्या होती है। लेकिन अब जो नई दरारें दिखाई पड़ रही हैं, इसका कारण तपोवन-विष्णुगाढ़ परियोजना ही है।

इसके अलावा, हाल के दिनों में सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट ने पूरे क्षेत्र को खोखला कर दिया। यह भी वर्तमान में चल रही आपदा का एक संभावित कारण है। वहीं जोशीमठ निवासी दुर्गा प्रसाद सकलानी ने इस मौजूदा संकट के लिए सीधे तौर पर अधिकारियों को जिम्मेदार ठहराया है। वह कहते हैं कि मेरे घर में दरारें पहली बार पिछले अक्टूबर 2022 में दिखाई पड़ी थीं, जब ज्यादा बारिश हुई थी। इस घटना की जानकारी मैंने प्रशासन को तुरंत दी थी लेकिन तब किसी ने इस पर ध्यान देना मुनासिब नहीं समझा। यदि उस समय इस पर अफसरों ने ध्यान दे दिया होता तो आज हम इस स्थिति में नहीं होते।

जोशीमठ की घटना के कारण प्रभावित होने वाले लोगों में से कई ऐसे हैं जो अब दूसरी बार विस्थापित हो रहे हैं। उदारहण के लिए सकलानी के दो भाइयों को चार दशक पहले भी बाढ़ के कारण विस्थापित होना पड़ा था। वर्तमान में उन्हें एक होटल में भेज दिया गया है। ये लोग रात बिताने के बाद हर दिन अपने घरों को देखने आते हैं कि क्या वे घरों के पास बनी अपनी गौशालाओं को बचा सकते हैं।

इस संकट का असर युवाओं पर भी पड़ा है। जैसे कि सेमवाल के भाई की एक बेटी को किसी परीक्षा में बैठना था लेकिन इस घटना के कारण अब वह लगातार तनाव में है। इस पर परिवार के लोगों का कहना है कि यदि सरकार हमें फिर से विस्थापित कर रही है तो अब ऐसे स्थान पर बसाए जहां फिर विस्थापन की पीड़ा न झेलनी पड़े।

डाउन टू अर्थ ने जोशीमठ के एक अन्य मोहल्ले मनोहरबाग का भी दौरा किया। यहां के एक युवा सूरज कपरवान इलाके में लॉन्ड्री यूनिट लगाना चाहते हैं। इसके लिए उन्होंने बंगलूरू से मशीन मंगाई थी। इसके लिए उन्हें 35 लाख रुपए की लागत आई। लेकिन जहां पर उन्होंने यह यूनिट लगाई थी, उसमें शुरू में हल्की दरारें दिखाई पड़ीं और 3 जनवरी को तो वे दरारें इतनी बड़ी हो गईं कि अब वे यूनिट लगाने का सपना बिखरता हुआ महसूस कर रहे हैं और वास्तव में उनके हालात देखकर ऐसा ही लगता है कि जैसे उन्होंने इसकी उम्मीद अब छोड़ दी हैं। 

वहीं दूसरी ओर राज्य के सिंचाई विभाग से सेवानिवृत्त हुए चंदर वल्लभ पांडेय और उनकी विधवा भाभी उत्तरा देवी इस घटना के बाद अब असमंजस की स्थिति में हैं। दोनों ने जोशीमठ में अपनी जिंदगी के आखिरी पलों को बिताने के  लिए अपनी जीवनभर की कमाई से नौ कमरों का एक घर बनवाया था। लेकिन बीते दिसंबर 2022 में ही घर के कई हिस्सों में दरारें आ गईं थीं। हालांकि इसकी मरम्मत करवा दी गई थी लेकिन वे दरारें फिर से दिखाई देने लगी हैं और अब यह दरारें इतनी बड़ी हो गई हैं कि घर अब लगभग गिरने के कगार पर है। उत्तरा देवी के तीन बच्चे हैं, जो कि राज्य की राजधानी देहरादून में रहते हैं। अब उनको यह समझ नहीं आ रहा है कि ऐसी हालात में कहां जाएं?