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एनजीटी की संयुक्त समिति ने चार धाम यात्रा के दौरान होने वाले पारिस्थितिकी विनाश को रोकने के लिए सुझाए उपाय

उत्तराखंड के तीर्थ यात्रा क्षेत्रों में पारिस्थितिक को हो रहे नुकसान की जांच करने के लिए एनजीटी द्वारा नियुक्त संयुक्त समिति द्वारा आज एक व्यापक मूल्यांकन रिपोर्ट प्रस्तुत की गई

Dayanidhi

संयुक्त समिति की रिपोर्ट 2022 के मूल आवेदन (ओए) संख्या 561 में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के निर्देशों के अनुपालन में प्रस्तुत की गई थी। समिति द्वारा केदारनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री और हेमकुंड साहिब नामक चार तीर्थ मार्गों का मूल्यांकन किया गया। ठोस अपशिष्ट, तरल अपशिष्ट और प्लास्टिक अपशिष्ट प्रदूषण के सकल कुप्रबंधन और पीक सीजन के दौरान तीर्थ यात्रियों और पर्यटकों की भारी संख्या से निपटने के लिए बुनियादी ढांचे की भारी कमी के संबंध में समिति द्वारा तीखी टिप्पणियां की गईं।

रिपोर्ट में, संबंधित तीर्थ इलाकों की जिला पंचायतों द्वारा निष्पादित एक सामान्य तरीके से ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम 2016 और प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 का घोर उल्लंघन करना, नगर पालिका ट्रेंचिंग क्षेत्रों में ठोस और प्लास्टिक कचरे को डंप करने को भी उजागर किया गया है।

शौचालय जिनमें पानी सोखने वाले गड्ढे होते हैं, सार्वजनिक शौचालयों की अपर्याप्त संख्या, रास्तों को साफ करने के लिए लोगों (स्वीपर) की कमी, घोड़ों के गोबर, अपशिष्ट जल और घोड़ों के शवों से निपटने के लिए निपटान तंत्र की कमी और घोड़ों की संख्या के नियमन की समग्र कमी को सामने रखा गया।

संयुक्त समिति ने अपनी रिपोर्ट में कार्रवाई योग्य उपायों की सिफारिश की है जिसमें - क्षेत्र की वहन क्षमता के अनुरूप घोड़े के प्रवेश को नियमित करना, घोड़े के स्वास्थ्य का प्रबंधन और निगरानी करना, घोड़े की देखभाल करने और पशु दुर्व्यवहार को रोकने के लिए पशु चिकित्सकों की एक टीम का प्रावधान, घोड़े के आवास की स्थापना इक्वाइन हाउसिंग करना।

1964 के लिए बीआईएस कोड ऑफ प्रैक्टिस के अनुपालन में सुविधाएं, विभिन्न जगहों के ठोस अपशिष्ट को अलग करना, जैव खाद गड्ढों के उपयोग के साथ संग्रह, परिवहन और प्रबंधन, मिट्टी और पानी की गुणवत्ता की नियमित निगरानी और आंकड़ों का संग्रह करना।

एक वैज्ञानिक आयोग द्वारा क्षेत्र में जैव विविधता के नुकसान पर पर्यटन के प्रभाव और नियमित निगरानी के माध्यम से ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम 2016 और प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 के प्रवर्तन पर अध्ययन करना आदि शामिल है।

गौरी मौलेखी ने कहा यह उचित समय है जब उत्तराखंड सरकार द्वारा चार धाम यात्रा से घिरे नाजुक पर्यावरण-संवेदनशील क्षेत्रों की पारिस्थितिक गुणवत्ता की रक्षा के लिए कड़े और समयबद्ध उपाय किए जाएं। रुद्रप्रयाग, उत्तरकाशी और चमोली जिलों की जिला पंचायतों पर पर्यावरणीय क्षरण को रोकने की जिम्मेदारी डालना सही दिशा में एक कदम है।

हालांकि, इन जिलों के जिला प्रशासन पर शुल्क और लागत दोनों को लागू करना सैद्धांतिक रूप से भी महत्वपूर्ण है क्योंकि प्रशासन द्वारा घोड़ों के पंजीकरण और घोड़े के यातायात को चलाने के लिए अनुमति देने से भारी राजस्व अर्जित किया जाता है। मौलेखी, उत्तराखंड के पीपल फॉर एनिमल के सदस्य सचिव हैं।

याचिकाकर्ता उर्वशी शोभना कचारी ने कहा उत्तराखंड के तीर्थ क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर प्रदूषण की स्वीकारोक्ति और फैक्ट फाइंडिंग कमेटी द्वारा जमीन पर विनाशकारी प्रदूषण का दस्तावेजीकरण हेतु तत्काल नीतिगत हस्तक्षेप की आवश्यकता को उचित ठहराया गया है।

एनजीटी द्वारा नियुक्त समिति के पास पशु चिकित्सा बुनियादी ढांचे और घोड़े के आश्रयों की कमी, पर्याप्त आराम के बिना अत्यधिक भ्रमण करना, घोड़ों की पिटाई और सार्वजनिक स्वास्थ्य पर निहितार्थ के साथ घोड़ों के शवों के अनुचित निपटान को उजागर करने की दूरदर्शिता भी है।

इस प्रकार, एक समग्र स्वास्थ्य दृष्टिकोण अपनाना जो सार्वजनिक स्वास्थ्य के साथ-साथ कल्याण और घोड़ों के स्वास्थ्य के साथ पर्यावरणीय स्थिरता को जोड़ता है, उर्वशी शोभना कचारी, कंज्यूमर फॉर सस्टेनेबिलिटी की सदस्य सचिव हैं।

एनजीटी द्वारा इस मामले की अगली सुनवाई 25 जनवरी को की जाएगी, जिसमें संयुक्त समिति की रिपोर्ट (जो कि केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, उत्तराखंड राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और जीबी पंत राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण संस्थान के वैज्ञानिक विशेषज्ञों द्वारा तैयार की गई है) का प्रधान पीठ द्वारा मूल्यांकन किया जाएगा।