विकास

भारत क्यों है गरीब-6: राष्ट्रीय औसत आमदनी तक पहुंचने में गरीबों की 7 पुश्तें खप जाएंगी

विश्व आर्थिक मंच की हालिया रिपोर्ट कहती है कि सामाजिक गैर-बराबरी से उच्च आर्थिक विकास का पूरा लाभ नहीं मिल पा रहा है। इस मामले में 82 देशों में से भारत का स्थान 76वां है

Richard Mahapatra

नए साल की शुरुआती सप्ताह में नीति आयोग ने सतत विकास लक्ष्य की प्रगति रिपोर्ट जारी की है। इससे पता चलता है कि भारत अभी गरीबी को दूर करने का लक्ष्य हासिल करने में काफी दूर है। भारत आखिर गरीब क्यों है, डाउन टू अर्थ ने इसकी व्यापक पड़ताल की है। इसकी पहली कड़ी में आपने पढ़ा, गरीबी दूर करने के अपने लक्ष्य से पिछड़ रहे हैं 22 राज्य । दूसरी कड़ी में आपने पढ़ा, नई पीढ़ी को धर्म-जाति के साथ उत्तराधिकार में मिल रही है गरीबी । पढ़ें, तीसरी कड़ी में आपने पढ़ा, समृद्ध प्राकृतिक संसाधनों के बीच रहने वाले ही गरीब । चौथी कड़ी में आपने पढ़ा घोर गरीबी से बाहर नहीं निकल पा रहे हैं लोग । पांचवी कड़ी में पढ़ें वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की वार्षिक बैठक शुरू होने से पहले ऑक्सफैम द्वारा भारत के संदर्भ में जारी रिपोर्ट में भारत की गरीबी पर क्या कहा गया है? पढ़ें, छठी कड़ी-  

भारत की गरीबी को लेकर बहस काफी तेज होती जा रही है, विशेषकर वो गरीबी जो किसी विशेष आबादी के भीतर है। 19 जनवरी को जारी हुए विश्व आर्थिक मंच के एक अध्ययन ने इस बहस में कई नए आयाम भी जोड़ दिए हैं। अध्ययन के मुताबिक भारत में सामाजिक असमानता एक बड़े वर्ग में फैली हुई है और इसी वजह से यह वर्ग देश की आर्थिक तरक्की अच्छी होने के बावजूद हमेशा के लिए गरीबी की चपेट में आ गया है। 

विश्व आर्थिक मंच इस समय 50वीं वर्षगांठ के मौके पर दावोस में वार्षिक बैठक का आयोजन कर रहा है। इसी बैठक में यह अध्ययन 'ग्लोबल सोशल मोबिलिटी रिपोर्ट 2020: इक्वलिटी, अपॉर्चुनिटी एंड अ न्यू इकोनॉमिक इम्पेरेटिव (वैश्विक सामाजिक अस्थिरता रिपोर्ट 2020: समानता, अवसर और अर्थव्यवस्था में बदलाव) है।

यह रिपोर्ट कहती है कि कम आय वर्ग वाले परिवारों में जन्म लेने वाले भारतीय को 7 पुश्तों तक महज भारत को औसत आमदनी तक पहुंचने के लिए संघर्ष करना होगा। गरीबी को लेकर मौजूद आंकड़ें को देखें तो ग्रामीण इलाकों की तकरीबन 22 करोड़ जनता रोजाना 32 रुपए से नीचे खर्च करने की हैसियत रखती है।

हाल ही में राष्ट्रीय सांख्यिकी दफ्तर (एनएसओ) ने साल 2019-20 के लिए प्रति व्यक्ति औसत 1,12,835 रहने की उम्मीद जताई है। देश के हालात को फौरी तौर पर बताने के लिए यह मापदंड काफी हैं।

ग्लोबल सोशल मोबिलिटी इंडेक्स को 82 देशों या अर्थव्यवस्था के साथ 5 महत्वपूर्ण संकेतकों जैसे स्वास्थ्य, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक पहुंच, तकनीक, काम करने के अवसर, मजदूरी और सामाजिक सुरक्षा के दायरों को देखकर लिया जाता है। 

यह संकेतक लोगों के सामाजिक बदलाव की संभावनाओं को भी आंकता है, इसमें किसी की स्थिति उनके माता-पिता से भविष्य में बेहतर या बदतर होने की संभावनाओं को परखा जाता है। इसका मतलब किसी बच्चे का जीवन स्तर उनके माता-पिता से अच्छा होगा या नहीं। इसने इस इंडेक्स में एक और स्तर ''रिलेटिव सोशल मोबिलिटी (पारस्परिक सामाजिक विचलता)" को शामिल किया है, जो कि यह देखता है कि किसी के आर्थिक-सामाजिक पृष्ठभूमि का उसके जीवन में क्या योगदान होता है।

82 देशों में से भारत का स्थान इस मामले में 76वां है। रिपोर्ट के मुताबिक बावजूद उसके की भयानक गरीबी में रहने वाले लोगों की संख्या में थोड़ी गिरावट देखी गई है, भारत में अभी भी कुछ क्षेत्र ऐसे बचे हैं जहां यहां के नागरिकों को समान अवसर देकर बेहतर स्थिति में लाया जा सकता है।

इस रिपोर्ट की एक महत्वपूर्ण बात, जिसकी चर्चा लंबे वक्त से होती रही है, यह है कि जो गरीब पैदा होता है उसे लंबे समय तक गरीबी नसीब होती है। इसके मुताबिक अर्थव्यवस्थाओं में कम संसाधन सम्पन्न घरों में पैदा होने वाले बच्चों को सफलता के रास्ते में अधिक संसाधन वाले बच्चों की तुलना में अधिक बाधाएं आती हैं।

इसने यकीनन दुनिया में आय की असमानता पर कई बहस का आरंभ किया है।अध्ययन के निष्कर्षों से यह स्पष्ट है कि सामाजिक गतिशीलता में अच्छा अंक पाने वाले देशों में आय में असमानता कम है। इसी प्रकार, इसके विपरीत कम सामाजिक असमानता वाले देश जैसे चीन या ब्राजील भी आर्थिक असमानता के मामले में काफी आगे हैं।

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