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जनसंख्या नियंत्रण कानून: क्या आबादी वाकई विस्फोट के कगार पर है?

केंद्र सरकार देश में जनसंख्या नियंत्रण कानून लागू करनी चाहती है। डाउन टू अर्थ ने इस मुद्दे का व्यापक विश्लेषण किया। प्रस्तुत है दूसरी रिपोर्ट

Kundan Pandey

रिपोर्ट की पहली कड़ी में आपने पढ़ा: जनसंख्या नियंत्रण कानून: क्या सच में जरूरी है?

क्या आबादी वाकई विस्फोट के कगार पर है? इस सवाल का जवाब पूरी बहस को बाधित करता है। हाल के रुझानों से पता चलता है कि संगठित कृषि शुरू होने के 12,000 साल बाद शायद अब होमो सेपियन्स की आबादी ह्रास के कगार पर है और भारत के लिए शायद जनसंख्या वृद्धि पहले से ही स्थिर हो गई है। भारत 350 मिलियन लोगों के साथ आजादी के दौरान भी सबसे अधिक आबादी वाले देशों में से एक था। यही कारण था कि यह 1951 में परिवार नियोजन कार्यक्रम शुरू करने वाला पहला विकासशील देश बना। 2019 में 1.37 बिलियन लोगों के साथ, तब से अब तक देश की आबादी चार गुनी बढ़ गई है।

जनसंख्या वैज्ञानिकों ने आबादी को नियंत्रण में रखने के लिए जन्म की संख्या के लिए एक सीमा रेखा निर्धारित की है। इसे ‘कुल प्रजनन दर’ के रूप में व्यक्त करते हैं। यह बच्चों की वह संख्या है, जो बच्चा पैदा करने की उम्र की हर महिला के पास औसतन होनी ही चाहिए। जहां आबादी का कुल प्रजनन दर से ऊपर होना बढ़ोतरी की ओर इशारा करता है, वहीं इसके नीचे होने का मतलब है गिरावट। कुल प्रजनन दर और आबादी अगर बराबरी पर हैं, तो इसका मतलब है कि जनसंख्या संतुलित है। इस देश की आबादी को स्थिर रखने के लिए होमो सेपियंस की कुल प्रजनन दर 2.1 होनी चाहिए। यह दर प्रति मां एक बच्चा, प्रति पिता एक बच्चा और शेष 0.1 दर बचपन में मर गए हर एक बच्चे और मां बनने की उम्र से पहले मर गई हर एक औरत का द्योतक है। संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या प्रभाग इसे प्रतिस्थापन स्तर की फर्टिलिटी के रूप में देखता है।

यूएन के मुताबिक, “यदि प्रतिस्थापन स्तर की फर्टिलिटी पर्याप्त रूप से लंबे समय तक बनी रहती है तो देश के अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्थापन द्वारा जनसंख्या को संतुलित करने के लिए कुछ भी करने की जरूरत के बिना ही प्रत्येक पीढ़ी खुद को पूरी तरह बदल देगी।” भारत अब इसके बहुत करीब है, क्योंकि कई राज्यों में कुल प्रजनन दर 2.1 से नीचे है। इसका मतलब है कि भारत की आबादी अब प्रतिस्थापन स्तर पर पहुंचने ही वाली है। या अब संभवतः कोई प्रभावी जनसंख्या वृद्धि नहीं होगी। भारत का आधिकारिक आंकड़ा भी यही बताता है।

2015-16 में हुए राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-4 में पाया गया कि भारत की कुल प्रजनन दर 2.2 तक पहुंच गई है। अधिकांश भारतीय राज्यों ने पहले ही 2.1 कुल प्रजनन दर हासिल कर ली थी या उससे नीचे थे। हिमाचल प्रदेश, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, पंजाब, तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक, और आंध्र प्रदेश में कुल प्रजानन दर प्रतिस्थापन स्तर से काफी नीचे थी। बिहार (3.4), उत्तर प्रदेश (2.7), झारखंड (2.6), राजस्थान (2.4), मध्य प्रदेश (2.3), छत्तीसगढ़ (2.2), असम (2.2) और कुछ उत्तर-पूर्वी राज्य अपवाद के रूप में मौजूद थे।

प्रजनन क्षमता में अभूतपूर्व वैश्विक गिरावट की भविष्यवाणी करने वाली किताब “एम्प्टी प्लेनेट” के लेखक डारेल ब्रिकर का यह कहना है, “भारत की कुल प्रजनन दर पहले ही प्रतिस्थापन दर तक पहुंच गई है।” जनसांख्यिकी और सामाजिक वैज्ञानिक शिरीन लिखतीं हैं कि 28 में से 17 राज्य और 9 में से 8 केंद्र शासित प्रदेश प्रतिस्थापन स्तर तक पहुंच चुके हैं। संसद में प्रस्तुत जनसंख्या पर एक अध्याय के वाले आर्थिक सर्वेक्षण 2018-19 में कहा गया है, “भारत अगले दो दशकों में जनसंख्या वृद्धि में तेजी से गिरावट देखने के लिए तैयार है।” इस सर्वेक्षण के अनुसार, देशभर में कुल प्रजनन दर में तेज गिरावट के कारण 0-19 आयु वर्ग में जनसंख्या पहले ही चरम पर है। वास्तव में, इस आर्थिक सर्वेक्षण ने स्कूलों जैसे सार्वजनिक संरचनाओं के कम आबादी के लिए बड़े पैमाने पर पुन:निर्माण कि जरूरत को व्यक्त की है। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, दिल्ली के क्षेत्रीय विकास अध्ययन केंद्र में जनसंख्या अध्ययन के सहायक प्रोफेसर श्रीनिवास गोली कहते हैं, “आगे 2021 तक राष्ट्रीय कुल प्रजनन दर प्रतिस्थापन स्तर से नीचे गिर जाएगी।”