विकास

पोषण से खाली भारत की थाली

भोजन की थाली में 1207 ग्राम खाद्य सामग्री होना चाहिए, लेकिन शहरी भारत में थाली में 871 ग्राम और ग्रामीण लोगों की थाली में 900 ग्राम सामग्री ही होती है। क्या यह भूख की स्थिति नहीं है?

Sachin Kumar Jain

भारत के सामने सबसे बड़ी बुनियादी चुनौती खाद्य और पोषण असुरक्षा की है। इस विषय को बहुत तार्किक ढंग से समझे जाने की जरूरत है। विश्व में भारत को मज़बूत करने की शुरुआत देश को भीतर से मज़बूत करने की पहल से होगी।

भूख की स्थितियों को नकारने से भारत की गरिमा में कोई विस्तार न होगा। वैश्विक भूख सूचकांक (ग्लोबल हंगर इंडेक्स) यह नहीं कहता कि भारत भुखमरी की स्थित में है। यह सूचकांक बताता है कि भारत खाद्य और पोषण सुरक्षा के मानकों पर अभी बहुत पीछे है और स्वस्थ समाज बनाने के लिए इसे “भूख” की स्थिति से बाहर निकलने के लिए बहुत ठोस और समुदाय केन्द्रित पहल करने की जरूरत होगी।

अक्टूबर 2022 में हार्वर्ड टी. एच. चान स्कूल आफ पब्लिक हेल्थ, गैलप और ग्लोबल अलायंस फार इम्प्रूव्ड न्यूट्रीशन (गेन) ने 41 देशों में भोजन गुणवत्ता सर्वेक्षण की रिपोर्ट – “मेजरिंग व्हाट द वर्ल्ड इट्स” जारी की। यह रिपोर्ट भूख के उस चित्र को उजागर करती है जो बाहर से नज़र नहीं आता है। यही रिपोर्ट बताती है कि जब भोजन में विविधता नहीं होती है, तब गैर-संचारी रोगों (मधुमेह, रक्तचाप, आदि) का विस्तार भी होता है।

वैज्ञानिक सिद्धांतों के अंतर्गत यह माना जाता है कि मानवीय भोजन को दस खाद्य समूहों में वर्गीकृत किया जा सकता है। ये पांच व्यापक खाद्य समूहों में दस खाद्य वर्ग हैं – एक : अनाज (कार्बोहाइड्रेट), दो: दूध और दूध से बने पदार्थ, तीन: मांस, मछली और अंडे, चार : दालें, फलियाँ और तिलहन (प्रोटीन और विटामिन), पांच : आलू, शकरकंद और अन्य कंद, छः : फल, सात : हरी पत्तेदार सब्जियां, आठ : (अन्य सब्जियां), नौ : घी, तेल, मक्खन (वसा) और दस : गुड़-शक्कर (शर्करा);

अगर समाज को स्वस्थ रखना हो तो यह अनिवार्य है कि इन दस समूहों में से कम से कम पांच समूहों (मुख्य रूप से अनाज, दालें, फल, सब्जियां, अंडे, तेल और वसा) का भोजन लोगों की थाली में हर रोज़ मौजूद होना जरूरी है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा जारी ग्लोबल रिकमंडेशन्स फार हेल्दी डाईट्स टू प्रोटेक्ट अगेंस्ट नान-कम्युनिकेबल डिजीज (2018) के मुताबिक़ एक व्यक्ति को 400 ग्राम फल और सब्जियां, भोजन में आधा हिस्सा अनाजों, दालों, बीजों-मेवों, कम से कम 25 ग्राम फाइबर हो, दैनिक ऊर्जा का 5 प्रतिशत से कम शकर से और 10 प्रतिशत से कम वसा से मिलना चाहिए।

एक दिन में भोजन में 5 ग्राम से कम नमक और एक हफ्ते में 350 से 500 ग्राम से कम मांसाहारी उत्पाद शामिल होना चाहिए। आदर्श रूप में भोजन की थाली में 40-45 प्रतिशत ही अनाजों का होना बेहतर माना गया है। वर्तमान स्थितियों में भारत के लोगों के भोजन में दो तिहाई हिस्सा तक अनाजों का होता है और यह स्थाई गैर-संचारी बीमारियों का सबसे बड़ा कारण बन रहा है।  

न्यूनतम भोजन विविधता

“मेजरिंग व्हाट द वर्ल्ड इट्स” अध्ययन की रिपोर्ट के मुताबिक़ भारत दुनिया के उन देशों में शामिल है, जहाँ लोगों के भोजन में सबसे कम विविधता है। भारत में 15 से 49 वर्ष की आयु वर्ग (प्रजनन आयु वर्ग) की महिलाओं के समूह में केवल 41 प्रतिशत महिलाओं के दैनिक भोजन में “न्यूनतम भोज्य विविधता” (भोजन में 5 या 5 से ज्यादा खाद्य वर्गों का होना) मौजूद है। जबकि बांग्लादेश में 59 प्रतिशत, चीन में 86 प्रतिशत, नेपाल में 64 प्रतिशत, श्रीलंका में 82 प्रतिशत, केन्या में 69 प्रतिशत, नाइजीरिया में 48 प्रतिशत, दक्षिण अफ्रीका में 72 प्रतिशत और पाकिस्तान में 54 प्रतिशत महिलाओं के भोजन में न्यूनतम विविधता उपलब्ध है।

सभी 5 खाद्य समूहों का उपभोग

व्यापक समाज के स्तर पर सभी 5 खाद्य समूहों (फल, सब्जियां, दालें और बीज, पशुओं से प्राप्त उत्पाद और अनाज) का उपलब्ध होना समाज के स्वस्थ होने के लिए बेहद जरूरी होता है। इस अध्ययन के मुताबिक़ भारत में केवल 28 प्रतिशत लोगों के दैनिक भोजन में सभी पांच व्यापक समूहों से सम्बंधित खाद्य सामग्री उपलब्ध होती है। बांग्लादेश में 22 प्रतिशत, चीन में 54 प्रतिशत, नेपाल में 39 प्रतिशत, श्रीलंका में 58 प्रतिशत, केन्या में 38 प्रतिशत, नाइजीरिया, दक्षिण अफ्रीका और पाकिस्तान में 23 प्रतिशत निवासियों के दैनिक भोजन में सभी पांच खाद्य समूह मौजूद होते हैं।

सब्जियों और फलों का शून्य उपभोग

खाद्य और पोषण सुरक्षा के नज़रिए से सब्जियों और फलों का उपभोग बहुत बुनियादी जरूरत के रूप में देखा जाता है। मानकों के मुताबिक़ 400 ग्राम सब्जियों और फलों का सेवन किया जाना चाहिए, लेकिन जिन 41 देशों का अध्ययन किया गया, उनमें आबादी का एक हिस्सा ऐसा भी है, जिसने अध्ययन के एक दिन पहले सब्जियों और फलों का बिलकुल सेवन नहीं किया था। भारत में सब्जियों और फलों का शून्य उपभोग करने वाले 22 प्रतिशत लोग थे, यह दुनिया में सबसे ज्यादा संख्या है। अमेरिका में 6 प्रतिशत, दक्षिण अफ्रीका में में दस प्रतिशत, कीनिया में 7 प्रतिशत, बांग्लादेश में 14 प्रतिशत और पाकिस्तान में 13 प्रतिशत लोगों ने फलों और सब्जियों का सेवन नहीं किया था।

भोजन और खुशहाली (स्वस्थ जीवन) के आपसी सम्बन्ध

हमेशा से यह माना जाता रहा है कि बेहतर भोजन का सम्बन्ध बेहतर जीवन शैली के साथ है और ये दोनों मिलकर व्यक्ति और समाज को स्वस्थ और खुशहाल बनाते हैं। इस अध्ययन के मुताबिक़ जिन देशों में संतुलित भोजन का उपभोग किया जाता है, वहां गैर-संचारी बीमारियों का जोखिम कम है यानी उन देशों में ह्रदय रोग, अवसाद, मधुमेह, कैंसर जैसी बीमरियों की फैलाव का स्तर कम है।

जब लोग शकर वाले पेय, मीठे खाद्य पदार्थों, नमक की अधिकता वाले पैकेट बंद खाने, गहरे तले हुए भोजन और लाल मांस या प्रसंस्कृत मांस का ज्यादा उपभोग करते हैं, तब दिल की बीमारियों, मधुमेह, कैंसर सरीखी बीमारियों ज्यादा फैलाव होता है। जिन देशों में लोगों के भोजन में कम विविधता है, वहां गैर-संचारी बीमारियों के फैलाव की आशंका ज्यादा है।

भोजन उपभोग के इन मानकों के आधार पर लेबनान के लोगों में सबसे ज्यादा 48 प्रतिशत जोखिम है, इसके बाद तुर्की में 45 प्रतिशत और मोज़ाम्बीक में 36 प्रतिशत, भारत में 25 प्रतिशत दक्षिण अफ्रीका में 24 प्रतिशत और पाकिस्तान में 34 प्रतिशत जोखिम है। 

वास्तव में गैर-संचारी बीमारियों का जोखिम कब कम होता है? जब किसी देश में लोग अपने दैनिक भोजन में कम से कम 400 ग्राम फलों और सब्जियों का सेवन करते हैं, उनके भोजन में अनाजों, दालों और बीजों की मात्रा में संतुलन होता है, और जो दिन भर में कम से कम 25 ग्राम फाइबर (रेशे) अपने भोजन में शामिल करते हैं। इस सन्दर्भ में कोलंबिया और तुर्की में 25 प्रतिशत लोग गैर-संचारी बीमारियों से लोग सुरक्षित हैं, पाकिस्तान में 7 प्रतिशत से कम, जबकि अमेरिका में 14 प्रतिशत और भारत में 15 प्रतिशत समाज सुरक्षित है। 

भारत की स्थिति

इंडियन काउंसिल आफ मेडिकल रिसर्च और नेशनल इंस्टीटयूट आफ न्यूट्रीशन की रिपोर्ट (व्हाट इंडिया इट्स?) के मुताबिक़ पोषण मानकों के मुताबिक़ एक व्यक्ति के भोजन की थाली में 270 ग्राम अनाज, 90 ग्राम दाल, 300 ग्राम दूध-दूध उत्पाद, 350 ग्राम सब्जियां और 150 ग्राम फल होना चाहिए। लेकिन वास्तविकता में ग्रामीण भारत के लोगों की थाली में 395 ग्राम अनाज, 43 ग्राम दाल, 118 ग्राम दूध, 80 ग्राम सब्जियां और 47 ग्राम फल ही हैं। इससे पता चलता है कि भारतीयों के भोजन की थाली बेहद असंतुलित है।

शहरी भारत में भोजन की थाली में 293 ग्राम अनाज है, लेकिन दालें केवल 38.6 ग्राम ही हैं, सब्जियां 92 ग्राम और फल केवल 51.6 ग्राम हैं। भोजन की थाली में 1207 ग्राम खाद्य सामग्री होना चाहिए, लेकिन शहरी भारत में थाली में 871 ग्राम और ग्रामीण लोगों की थाली में 900 ग्राम सामग्री ही होती है। क्या यह “भूख’ की स्थिति नहीं है।  

भारत में निर्धारित मानकों के मुताबिक़ भोजन करने वालो का अनुपात

“व्हाट इंडिया इट्स?” रिपोर्ट के मुताबिक़ केवल 2.9 प्रतिशत भारतीय निर्धारित मानकों के के अनुसार अनाज का, 7.2 प्रतिशत दालों का, 8.7 प्रतिशत दूध का, 8.8 प्रतिशत सब्जियों का, 15.9 प्रतिशत फलों और 97.4 प्रतिशत वसा का इस्तेमाल करते हैं। समग्रता में 90 प्रतिशत से ज्यादा ग्रामीण भारतीय पूरा भोजन नहीं पाते हैं। शहरी भारत में लगभग 70 प्रतिशत लोगों की यही स्थिति है। क्या यह भूख की स्थिति नहीं है?  

वास्तव में इस बात के प्रमाण हमारे सामने लगातार आ रहे हैं कि भारत और पूरी दुनिया में भोजन में असंतुलित पोषण होने के कारण न केवल खाद्य और पोषण सुरक्षा का लक्ष्य दूर होता जा रहा है, बल्कि जाती और स्थाई बीमारियों का संकट भी अपने दायरे को बढ़ाता जा रहा है। अब बच्चों में तनाव-अवसाद, ह्रदय रोग, मधुमेह सरीखी बीमारियों का भी बहुत विस्तार हो रहा है।

भारत में स्वास्थ्य और पोषण की नीति बनाने वालों को यह ध्यान रखना होगा कि भारत के आर्थिक विकास का मतलब उपचार के बाज़ार को बढाते जाना नहीं होना चाहिए; इसके उलट यह सुनिश्चित करना होगा कि गैर-संचारी बीमारियों को और ज्यादा फैलने से रोका जाए। वैश्विक भूख सूचकांक ने जो स्थितियों सामने दिखाई हैं, उन्हें खारिज करने का मतलब होगा भारत के लोगों को और ज्यादा कमज़ोर बनाना और गैर-संचारी बीमारियों के जाल में फंसने के लिए मजबूर करना। 

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