विकास

कंक्रीट के जंगल में तब्दील हो रहा है भारत, 17 साल में 25 लाख हेक्टेयर बढ़ा निर्मित क्षेत्र

Kiran Pandey

एक नए विश्लेषण से पता चला है कि 2005-06 से 2022-23 तक पिछले 17 सालों में भारत का निर्मित क्षेत्र लगभग 25 लाख हेक्टेयर तक बढ़ गया है। इस रुझान ने इस अवधि के दौरान देश भर में तीव्र गति से हो रहे शहरीकरण और बुनियादी ढांचे के विकास को उजागर किया।

हैदराबाद में राष्ट्रीय रिमोट सेंसिंग सेंटर (एनआरएससी) और इसरो द्वारा जारी वार्षिक भूमि उपयोग और भूमि कवर के व्यापक मूल्यांकन के अनुसार, 2005-06 और 2022-23 की अवधि के दौरान निर्मित भूमि में लगभग 31 प्रतिशत की समग्र वृद्धि के साथ बढ़ोतरी देखी गई।

इस अवधि के दौरान लगभग 35 प्रतिशत निर्मित क्षेत्र जुड़ गया है, जिसमें भूमि कवर से सालाना लगभग 2.4 प्रतिशत की औसत वृद्धि हुई है, जिसमें बंजर भूमि और कृषि भूमि भी शामिल हैं।

भारत के सालाना भूमि उपयोग और भूमि कवर एटलस शीर्षक वाले एनआरएससी मूल्यांकन के अनुसार, बंजर भूमि, जिसमें खराब और अनुत्पादक भूमि शामिल है, ने 12.3 प्रतिशत तक निर्मित क्षेत्र के विस्तार में अहम योगदान दिया।

एटलस से पता चलता है कि निर्मित क्षेत्रों की वृद्धि का एक बड़ा हिस्सा कृषि भूमि में बदलाव या डायवर्जन के कारण है।

रिपोर्ट के मुताबिक, निर्मित क्षेत्र में विस्तार का एक बड़ा हिस्सा कृषि भूमि से उत्पन्न हुआ, जिसमें 6.3 प्रतिशत दोहरी या तिगुनी सालाना, 5.3 प्रतिशत खरीफ की फसल, 3.1 प्रतिशत रबी की फसल, 2.9 प्रतिशत वृक्षारोपण और 5.8 प्रतिशत परती भूमि का हिस्सा शामिल है।

निर्मित सीमा तक विभिन्न प्रकार की जमीन की हिस्सेदारी 

रिपोर्ट के अनुसार, तेजी से बढ़ते राज्यों के लिए निर्मित क्षेत्र का रुझान काफी स्थिर प्रतीत होता है, जहां 17 वर्षों में क्षेत्रफल में मामूली वृद्धि हुई है। मध्य प्रदेश, गुजरात, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल और आंध्र प्रदेश में निर्मित क्षेत्र में स्पष्ट वृद्धि देखी गई।

वार्षिक मानचित्रण चक्र के दौरान राज्यों में निर्मित भूमि के लंबी अवधि के रुझान

एनआरएससी एटलस के अनुसार, 'निर्मित क्षेत्र' शब्द इमारतों (छत वाली संरचनाओं), पक्की सतहों (सड़कों, पार्किंग स्थल), व्यावसायिक और औद्योगिक स्थलों (बंदरगाहों, लैंडफिल, खदानों, रनवे) और शहरी हरियाली वाले क्षेत्रों (पार्क, उद्यान) से संबंधित है।

भारतीय रिजर्व बैंक के अनुसार, राज्य और केंद्र पूंजीगत व्यय वित्त वर्ष 2005-06 में 1.28 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर वित्त वर्ष 2022-23 में 11.92 लाख करोड़ रुपये हो गया।

पूंजीगत व्यय में उच्चतम वृद्धि दर (76.34 प्रतिशत) वित्त वर्ष 2019-20 और वित्त वर्ष 2022-23 के दौरान हुई।

अवधि

राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों द्वारा पूंजीगत व्यय में प्रतिशत परिवर्तन

वित्तीय वर्ष 2019-20 से 2022-23

76.34

वित्तीय वर्ष 2014-15 से 2018-19

69.52

वित्तीय वर्ष 2009-10 से 2013-14

48.72

वित्तीय वर्ष 2004-05 से 2008-09

62.71

नई सड़कें, राजमार्ग, रेलवे लाइनें और अन्य बुनियादी ढांचे से संबंधित विकास परियोजनाएं इस प्रगति के स्पष्ट संकेत हैं।

राष्ट्रीय रिमोट सेंसिंग सेंटर 2005 से 2023 के बीच गुजरात में (175 प्रतिशत), कर्नाटक में (109 प्रतिशत), आंध्र प्रदेश (94 प्रतिशत), मध्य प्रदेश (75 प्रतिशत) और पश्चिम बंगाल में ( 58 फीसदी) राष्ट्रीय राजमार्ग की लंबाई बढ़ी।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) ने हाल ही में 34 किलोमीटर लंबे इंदौर वेस्टर्न बाईपास, जिसे वेस्टर्न रिंग रोड भी कहा जाता है के निर्माण को मंजूरी दी है।

हालांकि इस तरह का बुनियादी ढांचागत विकास महत्वपूर्ण है, लेकिन ये कृषि भूमि की कीमत पर है, जो किसानों के लिए आजीविका का स्रोत है। एनआरएससी एटलस ने भी इसका खुलासा किया है। लेकिन किसानों को पर्याप्त मुआवजा नहीं दिया गया है, ऐसी विकास परियोजनाओं के लिए नाम मात्र के मुआवजे के खिलाफ किसानों ने हाल ही में विरोध प्रदर्शन किया।

गुजरात में किसानों ने वापी से शामलाजी तक राष्ट्रीय राजमार्ग 56 के विकास का विरोध किया था। फरवरी 2024 में, मध्य प्रदेश में भी किसान इंदौर के पश्चिमी रिंग रोड और इंदौर-बुधनी रेल लिंक के लिए भूमि अधिग्रहण के विरोध में सामने आए।

इस संदर्भ में, एटलस में भूमि कवर और उपयोग पर निष्कर्ष बुनियादी ढांचागत परियोजनाओं सहित विकास परियोजनाओं के निर्माण के लिए बहुत प्रासंगिक हैं।

राष्ट्रीय रिमोट सेंसिंग सेंटर (एनआरएससी) के वैज्ञानिक और निदेशक प्रकाश चौहान ने अपनी प्रस्तावना में कहा, “यह एटलस एक कम्पास के रूप में काम करेगा, जो भूमि संसाधनों की हमारी समझ का मार्गदर्शन करेगा और सतत विकास प्रथाओं को सुविधाजनक बनाएगा"। उन्होंने कहा, मुझे पूरी उम्मीद है कि यह एटलस निर्णय लेने के लिए उत्प्रेरक के रूप में कार्य करेगा।