बसंत उरांव लोहरदगा के कांड्रा में रहते हैं। पासबुक में उनका नाम सही लिखा है, लेकिन आधार कार्ड में नाम गलत है। इस वजह से वे अपना 'केवाईसी' नहीं करवा पाए। दुर्भाग्य से उन्हें सरकार से कोई मदद नहीं मिल पा रही है 
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झारखंड में 'केवाईसी महामारी' ने गरीबों को अपने ही पैसों से किया दूर

नरेगा सहायता केंद्रों द्वारा लातेहार और लोहरदगा जिलों में किए सर्वेक्षणों में सामने आया है कि बड़े पैमाने पर बैंक खातों के फ्रीज होने से पीड़ित लोगों में बुजुर्ग पेंशनभोगी भी शामिल हैं

Lalit Maurya

उस व्यक्ति पर क्या गुजरेगी यदि वो अपने ही खाते से पैसे न निकाल पाएं, सोचने में ही यह स्थिति काफी हताश-परेशान कर देने वाली लगती है। झारखण्ड में अनगिनत लोग ऐसी ही समस्या से जूझ रहे हैं, वो अपने ही बैंक खातों से पैसे नहीं निकाल पा रहे।

इसके पीछे की वजह 'केवाईसी' है, क्योंकि जब तक वे इससे जुड़ी औपचारिकताएं पूरी नहीं कर लेते, तब तक के लिए उनके खाते फ्रीज कर दिए गए हैं।

यह जानकारी स्थानीय नरेगा सहायता केंद्रों द्वारा लातेहार और लोहरदगा जिलों में हाल ही में किए सर्वेक्षणों में सामने आई है।

बैंक खातों के बड़े पैमाने पर फ्रीज होने से पीड़ित लोगों में वे बुजुर्ग पेंशनभोगी भी शामिल हैं, अपनी रोजमर्रा की जरूरतों के लिए छोटी से पेंशन पर निर्भर हैं। इसके साथ ही इसमें छात्रवृत्ति पाने वाले बच्चे और नई मैया सम्मान योजना के तहत 1,000 रुपये प्रति माह पाने की हकदार महिलाएं भी शामिल हैं।

गौरतलब है कि 'केवाईसी' (अपने ग्राहक को जानें), एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके तहत बैंक अपने ग्राहकों की पहचान का सत्यापन करता है। हालांकि गरीब और कम शिक्षित लोगों के लिए ये औपचारिकताएं पूरी करना आसान नहीं है।

इसके लिए उन्हें प्रज्ञा केंद्र में अपने आधार नंबर का बायोमेट्रिक सत्यापन करवाना होगा, फिर इसके सत्यापन प्रमाणपत्र को बैंक ले जाना होगा। इसके बाद बैंक में एक फॉर्म भरना होगा और अन्य दस्तावेजों के साथ इसे जमा करना होगा। उसके बाद, उन्हें बैंक द्वारा अपने खाते को फिर से सक्रिय करने का इन्तजार करना होगा, हालांकि इनका सत्यापन बैंक की दया पर निर्भर है, जिसमें महीनों लग सकते हैं।

ग्रामीण बैंकों में भीड़भाड़ से हालात और खराब हो रहे हैं। सर्वेक्षण किए गए दोनों ही क्षेत्रों में, स्थानीय बैंकों में लंबी कतारें लग गई। इस भीड़ में ज्यादातर लोग केवाईसी पूरा करने की जद्दोजहद कर रहे थे, या फिर ऐसी महिलाएं थी जो अपनी 'मैया सम्मान योजना' के पैसे की तलाश में थी।

इस बारे में जारी प्रेस विज्ञप्ति में सामने आया है कि सर्वेक्षण टीम ने लातेहार जिले के मनिका ब्लॉक के तीन छोटे गांवों दुंबी, कुटमू और उचवाबल के साथ-साथ लोहरदगा जिले के भंडरा और सेन्हा ब्लॉक के चार गांवों बूटी, धनमुंजी, कंदरा और पाल्मी का दौरा किया। सर्वे के दौरान टीम के सदस्य घर-घर गए थे।

इन सात गांवों में सर्वेक्षण किए गए 244 परिवारों में से 60 फीसदी का कम से कम एक बैंक खाता फ्रीज था, तथा कुछ परिवारों के तो सभी खाते फ्रीज थे।

खाते फ्रीज, केवाईसी के लिए जद्दोजहद करते लोग

सर्वेक्षण के दौरान बैंक खातों के फ्रीज होने के कुछ मामले तो चौंकाने वाले थे। उदाहरण के लिए कांद्रा में उर्मिला उरांव के परिवार के छह बैंक खाते हैं, लेकिन सब के सब फ्रीज हैं। इसी तरह कांद्रा के ही भोला उरांव और बसंत उरांव के खाते सालों से फ्रीज हैं, क्योंकि उनके आधार कार्ड पर उनके नाम "भौला उरांव" और "बासंत उरांव" की स्पेलिंग सही नहीं है।

वहीं कई लोग ऐसे भी थे जिन्होंने केवाईसी के लिए बार-बार आवेदन किया, लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली। ऐसे में कुछ ने तो थक कर हार मान ली और अब वो नए खाते खोल रहे हैं। इसी तरह धनमुंजी के सोरा उरांव को 27 दिसंबर, 2024 को केवाईसी अपॉइंटमेंट के लिए "टोकन" पाने के लिए पूरे दिन कतार में खड़ा रहना पड़ा!

ऐसा ही एक मामला लातेहार के कुटमु का है, जहां रहने वाली संगीता देवी मुश्किल से गुजारा कर पा रही हैं। उनके पति की आंखों की रौशनी नहीं है, दो बच्चे हैं, जिनका बैंक खाता केवाईसी संबंधी समस्याओं के कारण फ्रीज कर दिया गया है। सीएससी संचालक को रिश्वत देने के लिए पैसे न होने के कारण उनके बच्चों के लिए आधार कार्ड बनवाना मुश्किल हो गया है। वह अपने आधार कार्ड में हुई गलती को ठीक करवाने के लिए पहले ही हजार रुपए की रिश्वत दे चुकी हैं।

लोहरदगा के कंदरा में रहने वाले भोला राम भी मुश्किल में हैं। पासबुक में उनका नाम सही लिखा है, लेकिन उनके आधार कार्ड में “भौला राम” गलत छप गया है। उन्हें उनके शाखा प्रबंधक ने बताया कि केवाईसी के लिए उनके पासबुक का नाम आधार में लिए नाम से मेल खाना चाहिए। वे अब तक इस समस्या को हल नहीं कर पाए हैं क्योंकि पहचान के कोई भी दस्तावेज एक दूसरे से मेल नहीं खाते हैं।

ऐसा ही एक मामला लोहरदगा के कांड्रा में रहने वाले बसंत उरांव का है। उनकी पासबुक में तो उनका नाम सही लिखा है, लेकिन आधार कार्ड में गलत है। इस वजह से वे अपना केवाईसी नहीं करवा पाए हैं। ऐसे में दुर्भाग्य से उन्हें सरकार से कोई मदद नहीं मिल पा रही है।

लातेहार के साधवाडीह में रहने वाले सोमवती देवी केवाईसी से जुड़ी समस्याओं के बारे में बताती हैं। उनका कहना है कि वो जब भी बैंक जाती थीं, तो वहां इतनी भीड़ होती थी कि अक्सर लोग वापस लौट जाते थे। उन्हें अपना केवाईसी करवाने में 15 दिन लग गए। हालांकि, उनके पति निर्मल सफल नहीं हुए और उन्होंने लातेहार के पंजाब नेशनल बैंक में नया खाता खुलवा लिया है।

अशोक परहैया के तीन बच्चों को तब से छात्रवृत्ति मिलना बंद हो गई, जब से उनके बैंक खाते फ्रीज किए गए हैं, क्योंकि केवाईसी लगा हुआ है। अशोक ने सीएससी संचालक से मदद ली और केवाईसी करवाने के लिए प्रति बच्चे 150 रुपए दिए, लेकिन कुछ नहीं हुआ। उन्होंने बच्चों के आधार और पासबुक की प्रतियां संचालक को दे दी हैं, लेकिन वे बस इंतजार कर रहे हैं। उन्हें हमेशा बैंक से जांच करने के लिए कहा जाता है। फिलहाल, अशोक ने हार मान ली है।

यह संकट दर्शाता है कि भारतीय रिजर्व बैंक के दबाव के चलते बैंक समय-समय पर केवाईसी की मांग कर रहे हैं। एक स्थानीय बैंक मैनेजर ने शोधकर्ताओं को जानकारी दी है उसके पास 1,500 केवाईसी आवेदनों का बैकलॉग है, लेकिन वे प्रतिदिन केवल 30 आवेदनों का ही निपटारा कर सकता है।

गरीबों के पास आमतौर पर आधार से जुड़ा खाता होता है, इनमें अधिकतम जमा राशि एक लाख रुपए तक हो सकती है। ऐसे में सवाल यह है कि हर कुछ वर्षों में इतनी सख्त केवाईसी की क्या जरूरत है? ऐसे में शोधकर्ताओं ने इस पूरी प्रक्रिया की तत्काल समीक्षा की मांग की है।