विकास

इंसानों के चलते 250 करोड़ एकड़ क्षेत्र में खारी हो रही जमीन, बिगड़ रहा 'नमक चक्र' का संतुलन

धरती पर बढ़ती नमक की मांग का खामियाजा हमें पर्यावरण और लोगों के स्वास्थ्य के रूप में भुगतना पड़ रहा है

Lalit Maurya

क्या आप जानते हैं कि जो नमक हमारे लिए बेहद जरूरी है उसकी जरूरत से ज्यादा मात्रा पर्यावरण और इंसानी स्वास्थ्य के लिए हानिकारक साबित हो रही है। विडम्बना देखिए कि जिस तरह से पर्यावरण में खारापन बढ़ रहा है उसके लिए हम इंसान ही जिम्मेवार हैं।

रिसर्च से पता चला है कि इंसानों के कारण दुनिया भर में बढ़ते लवणीकरण से 250 करोड़ एकड़ क्षेत्र में जमीन खारी हो रही है, जो मिट्टी की उर्वरता को प्रभावित कर रहा है। इसकी वजह से कृषि उत्पादन और खाद्य सुरक्षा पर संकट बढ़ सकता है। इस प्रभावित होती जमीन के आकार को देखें तो वो करीब-करीब अमेरिका के बराबर है।

इतना ही नहीं नमक के वैश्विक उपयोग और उत्पादन में वृद्धि के साथ, पिछले 50 वर्षों में नदियों और नालों के खारेपन में भी वृद्धि हुई है, जो बड़े खतरे की ओर इशारा करती है। मैरीलैंड विश्वविद्यालय के भूविज्ञान प्रोफेसर सुजय कौशल के नेतृत्व में अंतराष्ट्रीय शोधकर्ताओं द्वारा किए इस नए वैज्ञानिक अध्ययन में सामने आया है कि हम इंसानो की वजह से वैश्विक स्तर पर प्राकृतिक 'नमक चक्र' का संतुलन बिगड़ रहा है। मतलब कि धरती पर बढ़ती नमक की मांग का खामियाजा हमें पर्यावरण और लोगों के स्वास्थ्य के रूप में भुगतना पड़ रहा है।

जर्नल नेचर रिव्यूज अर्थ एंड एनवायरनमेंट में प्रकाशित इस रिसर्च में सामने आया है कि इंसानी गतिविधियां धरती की हवा, मिट्टी और मीठे पानी को खारा बना रही हैं। ऐसे में वैज्ञानिकों ने चेताया है कि यदि यह रुझान भविष्य में जारी रहते हैं तो वो “अस्तित्व के लिए खतरा” पैदा कर सकते हैं।

कौन है इस बढ़ते खारेपन के लिए जिम्मेवार

वैज्ञानिकों के मुताबिक भूगर्भिक और जल संचलन जैसी प्राकृतिक प्रक्रियाएं धीरे-धीरे नमक को पृथ्वी की सतह पर लाती हैं। हालांकि बढ़ते खनन और विकास जैसी इंसानी गतिविधियों ने इस ‘प्राकृतिक नमक चक्र’ को तेज कर दिया है। इसी तरह कृषि, निर्माण, जल और सड़क उपचार जैसी अन्य औद्योगिक गतिविधियां बढ़ते खारेपन की दर को तेज कर रही हैं। यह न केवल जैवविविधता का नुकसान पहुंचा रहा है। साथ ही इसकी वजह से पीने का साफ पानी भी पहले से कहीं ज्यादा असुरक्षित हो गया है।

इस बारे में अध्ययन और यूएमडी के अर्थ सिस्टम साइंस इंटरडिसिप्लिनरी सेंटर से जुड़े वैज्ञानिक प्रोफेसर सुजय कौशल का कहना है कि जिस तरह जरूरत से ज्यादा नमक शरीर के लिए हानिकारक है उसी तरह यदि इस ग्रह को भी जीवित जीव मानें तो अत्यधिक मात्रा में मौजूद नमक उसके महत्वपूर्ण अंगों यानी पारिस्थितिकी तंत्रों को बाधित कर सकता है।

उनके मुताबिक पानी से इस नमक को हटाने की प्रक्रिया न केवल महंगी बल्कि साथ ही ऊर्जा की बेहद खपत करने वाली भी है। इस प्रक्रिया में बनने वाला नमकीन उपोत्पाद समुद्री जल से भी अधिक खारा है, जिसका निपटान किसी चुनौती से कम नहीं।

शोधकर्ताओं ने इन गड़बड़ियों का वर्णन "इंसानों द्वारा बनाए नमक चक्र" के रूप में किया है। इसकी वजह से पहली बार यह साबित हो सका है कि हम इंसान वैश्विक रूप से नमक के स्तर और उसके चक्र को प्रभावित कर रहे हैं, जो पूरी तरह आपस में जुड़ा हुआ है।

इस बारे में कनेक्टिकट विश्वविद्यालय में  पारिस्थितिकी विज्ञानी और अध्ययन से जुड़े शोधकर्ता जीन लिकेंस का कहना है कि, “बीस साल पहले हमारे पास इसके केवल कुछ विशिष्ट उदाहरण थे जब हम कह सकते थे कि  न्यूयॉर्क या बाल्टीमोर में जिन जगहों से पेयजल की आपूर्ति हो रही है वो खारे हो रहे हैं।“ लेकिन उनके मुताबिक अब हम कह सकते हैं कि यह एक पूरा चक्र है, जो पृथ्वी के गर्भ से वायुमंडल तक इंसानी गतिविधियों से प्रभावित हो रहा है।

इस नए अध्ययन में शोधकर्ताओं ने नमक के विभिन्न आयनों पर विचार किया है जो भूमिगत और सतही जल में पाए जाते हैं। नमक ऐसे यौगिक हैं जो सकारात्मक रूप से चार्ज किए गए धनायनों और नकारात्मक रूप से चार्ज किए गए आयनों से बने होते हैं, जिनमें कुछ सामान्य प्रकार के कैल्शियम, मैग्नीशियम, पोटेशियम और सल्फेट आयन शामिल होते हैं। रिसर्च से पता चला है कि बड़ी मात्रा में विस्थापित होने पर, ये आयन पर्यावरणीय समस्याएं पैदा कर सकते हैं।

इस बारे में प्रोफेसर कौशल का कहना है कि हालांकि लोग अक्सर नमक को सोडियम क्लोराइड के साथ जोड़ते हैं, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में किए हमारे शोध से पता चला है कि हमने चूना पत्थर, जिप्सम और कैल्शियम सल्फेट से सम्बंधित अन्य प्रकार के लवणों में भी गड़बड़ी की है।

सिर्फ पानी ही नहीं हवा में भी घुसपैठ कर चुका है नमक

रिसर्च में यह भी खुलासा किया गया है कि नमक ने हवा में भी घुसपैठ कर ली है। कुछ क्षेत्रों में झीलों के सूखने से खारी धूल के गुबार हवा में फैल रहे हैं। वहीं बर्फीले क्षेत्रों में, सड़क पर छिड़का गया नमक सोडियम और क्लोराइड युक्त वायुजनित कणों में बदल सकता है। इस बहते लवणीकरण के गंभीर परिणाम उत्पन्न होते हैं। उदाहरण के लिए खारी धूल बर्फ के पिघलने में तेजी ला सकती है जो स्थानीय लोगों को प्रभावित कर सकता है। विशेष तौर पर पश्चिमी अमेरिका में जो अपनी जलापूर्ति के लिए बर्फ पर निर्भर हैं।

इसी तरह अपनी संरचना के कारण लवण के यह आयन मिट्टी में दूषित पदार्थों से जुड़ सकते हैं, इससे हानिकारक रसायनों का मेल हो सकता है जो पर्यावरण के लिए घातक सिद्ध हो सकता है। यदि अमेरिका को देखें तो वहां सड़क पर बर्फ को पिघलने के लिए बड़े पैमाने पर नमक का उपयोग किया जाता है। अमेरिका हर साल करीब 4400 करोड़ पाउंड डीसिंग एजेंट का उत्पादन करता है।

यदि  2013 से 2017 के बीच आंकड़ों को देखें तो अमेरिका में नमक की वार्षिक खपत में सड़कों पर डाले जा रहे इस नमक का हिस्सा करीब 44 फीसदी है। जो नदियों में मौजूद कुल कुल घुलनशील ठोस पदार्थों का 13.9 फीसदी है। इससे जल में नमक की मात्रा बढ़ रही है। शोधकर्ताओं के मुताबिक इस बढ़ती समस्या पर ध्यान देना जरूरी है, क्योंकि यह स्वास्थ्य के साथ-साथ पानी की गुणवत्ता में भी गिरावट की वजह बन रहा है।

ऐसे में शोधकर्ताओं ने अध्ययन में नमक के सुरक्षित और सतत उपयोग के लिए ग्रहीय सीमा के निर्धारण का भी आह्वान किया है। ठीक वैसे है जैसे कि जलवायु परिवर्तन को सीमित करने के लिए वैश्विक स्तर पर कार्बन डाइऑक्साइड की सीमा निर्धारित की है।

प्रोफेसर कौशल के मुताबिक सैद्धांतिक रूप से संभव होते हुए भी नमक के स्तर को विनियमित और नियंत्रित करना अनूठी चुनौतियों से जुड़ा है। वहीं कई पर्यावरणीय मुद्दों की तरह लिकेन्स इस बात पर जोर देते हैं कि अब कार्रवाई का समय आ गया है।