विकास

सतत विकास के लक्ष्यों पर कैसा है भारत का रिपोर्ट कार्ड, रिपोर्ट में हुआ खुलासा

आज देश के हर घर तक बिजली पहुंच चुकी है। इसी तरह जहां 2015 में देश की 30.4 फीसदी आबादी खुले में शौच के लिए मजबूर थी अब 2022 में यह आंकड़ा घटकर 11 फीसदी रह गया है

Lalit Maurya

संयुक्त राष्ट्र आर्थिक और सामाजिक आयोग (यूएनईएससीएपी) ने गुरूवार को 'एशिया एंड द पैसिफिक एसडीजी प्रोग्रेस रिपोर्ट 2024' नामक एक नई रिपोर्ट जारी की है। इस रिपोर्ट में भारत में सतत विकास के लक्ष्यों की दिशा में हो रही प्रगति पर प्रकाश डाला है। रिपोर्ट के मुताबिक भारत में एसडीजी के 17 लक्ष्यों से जुड़े 85 मापदंडों पर भारत का प्रदर्शन बेहतर हुआ है, जबकि 27 में प्रगति करीब करीब रुक सी गई है।

वहीं 36 मामलों में प्रगति खराब हुई है। रिपोर्ट में आंकड़ों की कमी को उजागर करते हुए कहा गया है कि अभी भी 99 संकेतक ऐसे हैं, जिनकी प्रगति को मापने के लिए हमारे पास पर्याप्त जानकारी नहीं है।

आंकड़ों के अनुसार भारत ने सतत विकास के 85 मापदंडों पर बेहतर प्रदर्शन किया है। उदाहरण के लिए 2015 से 2019 के बीच देश में प्रदूषण के महीन कणों (पीएम 2.5) में गिरावट दर्ज की गई। जहां 2015 में देश में औसत पीएम 2.5 का स्तर 58.6 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर रिकॉर्ड किया गया था, वो 2019 में 53 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर रह गया।

यदि आपदाओं को देखें तो जहां 2015 के दौरान देश में आपदाओं से सीधे तौर पर प्रभावित होने वालों का आंकड़ा प्रति लाख लोगों पर 14,202 था, जो 2021 में घटकर महज 1,003 रह गया। इसी तरह जहां 2015 में आपदाओं की वजह से प्रति लाख लोगों पर 0.55 लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा था। 2021 में यह आंकड़ा घटकर 0.16 रह गया है। भारत ने गरीबी उन्मूलन की दिशा में बेहतर प्रदर्शन किया है। आंकड़े दर्शाते हैं कि जहां 2015 में देश की 18.7 फीसदी आबादी 1.9 डॉलर प्रतिदिन से कम पर गुजारा कर रही थी, वहीं 2019 में यह आंकड़ा 10 फीसदी रह गया था।

इसी तरह जहां 2016 में 22 फीसदी आबादी को किसी न किसी रूप में सामाजिक सुरक्षा के रूप में दी जा रही मदद का फायदा मिला था। वहीं 2020 में यह बढ़कर 24.4 फीसदी पर पहुंच गई। इसी तरह 2016 में 25.2 फीसदी योग्य आबादी को पेंशन का फायदा मिला था, वहीं पेंशन का लाभ लेने वालों का यह आंकड़ा 2020 में 42.5 फीसदी पर पहुंच गया।

देश में बुनियादी पेयजल सेवाओं का उपयोग करने वाली आबादी में भी इजाफा दर्ज किया गया है। 2015 में जहां 89.2 फीसदी आबादी पानी के लिए बुनियादी सेवाओं का उपयोग कर रही है वहीं 2022 में यह आंकड़ा बढ़कर 93.3 फीसदी दर्ज किया गया।

आज देश की शत-प्रतिशत आबादी तक बिजली पहुंच चुकी है। बता दें कि जहां 2015 में देश की 30.4 फीसदी आबादी खुले में शौच जाती थी अब 2022 में यह आंकड़ा घटकर 11 फीसदी रह गया है। ऐसे ही जहां 2015 में 61.8 फीसदी लोगों के घर पर हाथ धोने की बुनियादी सुविधा उपलब्ध थी अब 2022 में यह आंकड़ा बढ़कर 76.3 फीसदी पर पहुंच गया है।

आंकड़ों की मानें तो देश ने स्वास्थ्य क्षेत्र में भी प्रगति की है। इसका उदाहरण है कि जहां 2015 में देश के 37.9 फीसदी पांच या उससे कम वर्ष के बच्चे अपनी उम्र के लिहाज से ठिगने थे। वहीं 2020 में यह आंकड़ा घटकर 35.5 फीसदी रह गया है। इसी तरह जहां 2015 में इसी आयु वर्ग के 20.8 फीसदी बच्चे वेस्टिंग का शिकार थे वहीं 2020 में पतले बच्चों का यह आंकड़ा 18.7 फीसदी रह गया।

इसी तरह देश में मातृ मृत्यु दर जो 2015 में प्रति लाख जीवित जन्म पर 127.7 थी वो 2020 में घटकर 102.7 रह गई है। इसी तरह शिशु मृत्यु दर प्रति हजार जीवित  बच्चों पर 2015 में 35 से घटकर 2021 में 25.5 रह गई है।

आज 89.4 फीसदी बच्चों का जन्म कुशल स्वास्थ्य कर्मियों द्वारा कराया जा रहा है। देश में एचआईवी संक्रमण में भी गिरावट दर्ज की गई है। जहां 2015 में प्रति लाख लोगो पर एचआईवी के 6.5 नए मामले सामने आए थे। वहीं 2021 में यह संख्या घटकर 4.7 रह गई है। इसी तरह टीबी और मलेरिया जैसी बीमारी के मामलों में भी कमी दर्ज की गई है। देश में हृदय रोग, कैंसर, मधुमेह, या सांस संबंधी बीमारियों के कारण होने वाली मौतों की दर में भी कमी आई है।

जहां 2015 में देश में 69 फीसदी लोगों को चेचक के टीके लगे थे, वहीं अब 2021 में टीका पाने वालों का आंकड़ा बढ़कर 82 फीसदी हो गया है। आंकड़ों के अनुसार देश में न केवल डॉक्टरों, बल्कि फार्मा कर्मियों की संख्या में इजाफा हुआ है। गौरतलब है कि जहां 2018 में प्रति देश हजार लोगों पर 6.78 चिकित्सक थे वहीं 2020 में इनकी संख्या बढ़कर 7.27 पर पहुंच गई है। इसी तरह देश के स्कूलों में मौजूद बुनियादी सुविधाओं का स्तर पहले से बेहतर हुआ है।

देश में अक्षय ऊर्जा उत्पादन क्षमता में भी इजाफा हुआ है। आंकड़ों के मुताबिक जहां 2015 में देश की अक्षय ऊर्जा उत्पादन क्षमता 59.4 वाट्स प्रति व्यक्ति थी वो 2021 में बढ़कर 104.5 पर पहुंच गई। देश में जहां शोधकर्ताओं की संख्या 2015 में प्रति दस लाख लोगों पर 216 थी वो 2018 में बढ़कर 253 पर पहुंच गई है। देश अपने जलवायु लक्ष्यों को लेकर भी सजग है। बता दें कि जहां देश जीवाश्म-ईंधन की सब्सिडी पर अपने जीडीपी का 0.6 फीसदी खर्च कर रहा था वहीं 2021 में यह घटकर 0.15 फीसदी रह गई है।

जीडीपी की जो विकास दर 2015 में आठ फीसदी थी वो 2021 में 0.7 फीसदी बढ़कर 8.7 फीसदी पर पहुंच गई है। आज हर 100 में से दो लोगों के पास फिक्स्ड-ब्रॉडबैंड सब्सक्रिप्शन है। संसद में महिलाओं की हिस्सेदारी में भी मामली वृद्धि हुई है। इसी तरह भ्रष्टाचार की दर 2016 में 69 से घटकर 2020 में 39 रह गई है।

किन मुद्दों पर प्रगति की है दरकार

संयुक्त राष्ट्र आर्थिक और सामाजिक आयोग के मुताबिक भारत में सतत विकास से जुड़े 36 संकेतक ऐसे हैं, जिनकी दिशा में हो रही प्रगति पहले से पिछड़ी है। उदाहरण के लिए देश में कुपोषण की स्थिति पहले से बदतर हुई है। जहां 2015 में देश की 14 फीसदी आबादी अल्पपोषण का शिकार थी, वहीं 2021 में यह आंकड़ा बढ़कर 16.6 फीसदी पर पहुंच गया।

संयुक्त राष्ट्र के अनुसार जहां 2015 में पांच वर्ष या उससे कम उम्र के 2.2 फीसदी बच्चे बढ़ते वजन से परेशान थे। वहीं 2022 में यह आंकड़ा बढ़कर 2.8 फीसदी पर पहुंच गया। इसी तरह देश में महिलाएं में खून की कमी की समस्या करीब-करीब पहले जितनी ही है। आंकड़ों के अनुसार जहां 2015 में देश में 15 से 49 वर्ष की 52.7 फीसदी महिलाएं एनीमिया का शिकार थी। वहीं 2019 में यह आंकड़ा बढ़कर 53 फीसदी पर पहुंच गया था।

इसी तरह देश में आत्महत्या करने वालों का आंकड़ा भी बढ़ा है। वहीं घरों से निकलने वाले अपशिष्ट जल के मामले में भी प्रगति पिछड़ी है। बता दें कि जहां 2020 में घरों से निकलने वाला 26.6 फीसदी दूषित जल साफ किया जा रहा था। वहीं 2022 में यह आंकड़ा घटकर 20 फीसदी रह गया है।

इसी तरह देश में संसाधनों पर दबाव बढ़ा है, जहां 2015 में भारत का प्रति व्यक्ति मैटेरियल फुटप्रिंट 4.8 टन था, वो 2019 में बढ़कर 5.2 टन पर पहुंच गया। देश में बेरोजगारी दर 2018 में 7.7 फीसदी से बढ़कर 2020 में 7.9 पर पहुंच गई। सतत पर्यटन के मुद्दे पर भी प्रगति में गिरावट हुई है। देश में शरणार्थियों का जो आंकड़ा 2015 में प्रति लाख पर 0.8 था वो 2022 में बढ़कर एक हो गया है। वहीं अनुसंधान और विकास पर होने वाले व्यय में भी कोई वृद्धि नहीं दर्ज की गई है।

आंकड़ों के मुताबिक 2015 से 2019 के बीच कृषि क्षेत्र से होने वाले उत्सर्जन में भी वृद्धि दर्ज की गई। जहां 2015 में कृषि क्षेत्र से होने वाला उत्सर्जन 73.9 करोड़ टन दर्ज किया गया था, जो 2019 में बढ़कर 75.6 करोड़ टन पर पहुंच गया। वहीं जलवायु परिवर्तन संबंधी नीतियों, के बारे में पर्याप्त आंकड़े मौजूद नहीं हैं। आंकड़ों के मुताबिक समुद्री प्रदूषण और समुद्री संसाधनों के सतत उपयोग के मामले में भी प्रगति आगे जाने की जगह पिछड़ी है।

आंकड़े यह भी दर्शाते हैं कि जहां 2015 में देश की 4.4 फीसदी जमीन गुणवत्ता में आती गिरावट से जूझ रही थी। वहीं 2019 में यह आंकड़ा बढ़कर 9.5 फीसदी पर पहुंच गया था। पहाड़ों के लिए जारी किए जाने वाले ग्रीन कवर इंडेक्स में भी स्थिति जस की तस बनी हुई है। ऐसे ही जहां 2015 में 0.69 फीसदी पर्वतीय भूमि गुणवत्ता में गिरावट का सामना कर रही थी। वहीं 2018 में यह आंकड़ा बढ़कर 0.8 फीसदी पर पहुंच गया। संकट ग्रस्त प्रजातियों के लिए जारी की जाने वाले रेड लिस्ट इंडेक्स में भी भारत की स्थिति में कोई बदलाव नहीं आया है।

आंकड़ों के मुतबिक देश में जैवविविधता को बढ़ावा देने के लिए जो सरकारी सहायता दी जा रही थी, उसमें कमी आई है। जहां 2015 में इसके लिए 24.9 करोड़ डॉलर की सहायता दी गई जो 2021 में महज 5.26 करोड़ डॉलर रह गई।

देश में सतत विकास से जुड़े कई मुद्दे ऐसे हैं जिनकी प्रगति की रफ्तार थम सी गई है। इनमें महिलाओं में खून की कमी, कुल वन क्षेत्र, स्लम में रहने वाले लोगों की आबादी, सड़क हादसों में होने वाली मौतें माओं और नवजातों को मिलने वाला नकद फायदा जैसे संकेतक शामिल हैं।

वहीं रिपोर्ट में आंकड़ों की कमी को भी उजागर किया गया है। भारत में सतत विकास से जुड़े 99 संकेतक ऐसे हैं जिनके बारे में पर्याप्त आंकड़े ही उपलब्ध नहीं हैं। ऐसे में उन क्षेत्रों में हो रही प्रगति को कैसे मापा जाए यह अपने आप में एक बड़ा सवाल है।

बता दें कि सतत विकास के इन लक्ष्यों (एसडीजी) को हासिल करने के लिए 2030 की समय सीमा तय की गई थी। एक बेहतर दुनिया की आस में साल 2015 में दुनिया भर के नेताओं द्वारा सतत विकास के इन 17 लक्ष्यों को अपनाया था।

गौरतलब है कि इन लक्ष्यों का उद्देश्य दुनिया से भुखमरी, गरीबी, जैसी समस्याओं को दूर करना और सबके लिए साफ पानी, स्वच्छता, बेहतर स्वास्थ्य, लैंगिक समानता, आर्थिक विकास, बेहतर काम, सस्ती, सुलभ और स्वच्छ ऊर्जा के साथ-साथ बेहतर शिक्षा मुहैया कराना था। इसके साथ ही जैवविवधता, इनोवेशन और बुनियादी ढांचे को मजबूत करने के साथ असमानताओं को कम करना जैसे मुद्दों को हल करना है।

भले ही देश में इन लक्ष्यों की दिशा में प्रगति हुई है लेकिन यह नहीं भूलना चाहिए कि आज भी भारत इन लक्ष्यों से काफी पीछे है और ऐसे में यदि इन लक्ष्यों के करीब पहुंचना है तो हमें अपने प्रयासों में तेजी लाने की जरूरत है।