नए साल की शुरुआती सप्ताह में नीति आयोग ने सतत विकास लक्ष्य की प्रगति रिपोर्ट जारी की है। इससे पता चलता है कि भारत अभी गरीबी को दूर करने का लक्ष्य हासिल करने में काफी दूर है। भारत आखिर गरीब क्यों है, डाउन टू अर्थ ने इसकी व्यापक पड़ताल की है। इसकी पहली कड़ी में आपने पढ़ा, गरीबी दूर करने के अपने लक्ष्य से पिछड़ रहे हैं 22 राज्य । पढ़ें, दूसरी कड़ी में आपने पढ़ा, नई पीढ़ी को धर्म-जाति के साथ उत्तराधिकार में मिल रही है गरीबी । पढ़ें, तीसरी कड़ी में आपने पढ़ा, समृद्ध प्राकृतिक संसाधनों के बीच रहने वाले ही गरीब । पढ़ें, चौथी कड़ी-
वैसे तो भारत की गरीबी को लेकर कई सर्वेक्षण हो चुके हैं, जिनकी चर्चा नहीं की गई या सार्वजनिक मंचों पर बहस नहीं की गई। ये इस बात का इशारा करते हैं कि भारत में गरीबों की एक बड़ी संख्या गरीबी के जाल से बाहर नहीं निकल पा रही है और इनमें से अधिकांश गरीब अनुसूचित जाति-जनजाति या सामाजिक तौर पर वंचित समुदायों से हैं। “1970 और 1980 के दशक में गरीबी की स्थिति पर किए गए अध्ययनों ने बताया कि गरीबी उन्मूलन के प्रयासों के बावजूद लगभग 50 प्रतिशत लोग गरीब ही रह गए। क्रोनिक पॉवरिटी पर काम कर रहे मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ डेवलपमेंट स्टडीज के निदेशक शशांक भिडे कहते हैं, "गरीबी का एकमात्र कारण आर्थिक विकास नहीं है, बल्कि सामाजिक और परिस्थितयों की वजह से भी लोग गरीब रहते हैं।"
नेशनल काउंसिल ऑफ एप्लाइड इकोनॉमिक रिसर्च द्वारा किए गए ह्यूमन डेवलपमेंट सर्वे के अनुसार, 2005-2012 के दौरान भारत की कुल आबादी में 41.3 प्रतिशत (ग्रामीण और शहरी दोनों) लोग गरीब थे। हाल ही में, विश्व बैंक ने यह भी बताया कि 2005-2011 के दौरान भारत में लगभग 40 प्रतिशत गरीब लोग गरीब ही रहे। भारत में 26.9 करोड़ गरीब हैं और यह अनुमान सरकार ने खुद स्वीकार किया है। तो इस अनुमान के अनुसार, घोर गरीब लोगों की संख्या 11.1 करोड़ है। इंडियन इंस्टीट्यूशन ऑफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन की अर्थशास्त्री आशा कपूर मेहता कहती हैं, "हमारा 30 से अधिक स्टडी पेपर बताते हैं कि घोर गरीबी में रह रहे लोगों को इस जाल से निकलना बहुत मुश्किल होता है।"
अगली पीढ़ी तक पहुंच रही है गरीबी
सीपीआरसी ने भारत के ग्रामीण इलाकों में गरीब परिवारों को तीन दशक तक ट्रेक करने का दावा किया है और कहा है कि जो परिवार घोर गरीबी में बसर कर रहे हैं, उनकी अगली पीढ़ी भी गरीबी से बाहर नहीं निकल पाती। इतना ही नहीं, वन क्षेत्रों में रहने वाले लोगों और आदिवासी इसलिए गरीब ही रह जाते हैं, क्योंकि उनके इलाकों में हिंसक झड़पें होती रहती हैं। भारत के ज्यादातर जंगल वाले इलाकों में माओवादियों का कब्जा है।
सीपीआरसी ने अपने सर्वेक्षण में "दो इंडिया" के बारे में बताया है। भारत में सीपीआरसी का नेतृत्व करने वाले मेहता कहते हैं कि सर्वेक्षण का मकसद दो सवालों के जवाब जानना था। “कुछ लोग अधिक समय तक गरीब क्यों रहते हैं? गरीब क्षेत्र हमेशा के लिए गरीब क्यों बने रहते हैं?
सर्वेक्षण के दौरान 3000 परिवारों को 30 वर्ष तक लगातार नजर रखी गई। इसमें तीन बातें सामने आई। एक- गरीबी क्यों होती है, गरीबी क्यों बनी रहती है और गरीबी से बाहर निकलने का रास्ता क्या है?
सीपीआरसी ने भारत में गरीबी के विभिन्न पहलुओं को समझाते हुए 32 शोध पत्र प्रकाशित किए हैं। इन शोध पत्रों के विश्लेषण से पता चलता है कि भारत के कम से कम 50 प्रतिशत गरीब ही गरीब रह जाते हैं। सर्वेक्षण में छह राज्यों - ओडिशा, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, बिहार और तेलंगाना में फैले 15 क्षेत्रों की पहचान की गई है, जो गरीब केंद्रीत हैं और वहां घोर गरीबी है।
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