विकास

समुद्री तटों को तेजी से लील रहा कंक्रीट, पर्यावरण के नजरिए से कितना है खतरनाक

तटों पर बढ़ते कंक्रीट के चलते न केवल वहां के स्थानीय पारिस्थितिक तंत्र पर असर पड़ रहा है साथ ही यह आक्रामक प्रजातियों के खतरे को भी बढ़ा रहा है

Lalit Maurya

दुनिया भर में जिस तेजी से शहरीकरण अपने पैर पसार रहा है उसका असर तटों पर भी स्पष्ट रूप से दिखने लगा है। नतीजन रेत के प्राकृतिक आवास, रीफ, मैंग्रोव, मडफ्लैट की जगह अब सख्त कंक्रीट, प्लास्टिक और स्टील की सतह ने ले ली है। जिसके कारण उथले पानी के पारिस्थितिक तंत्र पर व्यापक असर पड़ रहा है। शोधकर्ताओं का अनुमान है कि यह प्रक्रिया आने वाले दशकों में जारी रह सकती है।

दुनिया भर में किस तरह शहरीकरण के चलते तटों का स्वरुप बदल रहा है, इसकी भविष्यवाणी करने के लिए न्यूजीलैंड और ऑस्ट्रेलिया के कई संस्थानों से जुड़े शोधकर्ताओं की एक टीम ने एक नया मॉडल बनाया है। इससे जुड़ा शोध अंतराष्ट्रीय जर्नल नेचर सस्टेनेबिलिटी में प्रकाशित हुआ है। इस मॉडल के निर्माण के लिए शोधकर्ताओं ने उपग्रह से प्राप्त आंकड़ों को एकत्र और विश्लेषित किया है। 

जो स्थान कभी रेत से ढके थे उसे सख्त बनाने के लिए इंसान तेजी से समुद्र के किनारे निर्माण करने में लगा हुआ है। वो इन तटों पर होटल, कैसीनो बना रहा है, जो वहां के स्थानीय पारिस्थितिक तंत्र को प्रभावित कर रहा है। 

शोधकर्ताओं की मानें तो जब तटों की नर्म प्राकृतिक तटरेखा को सख्त कंक्रीट में बदल दिया जाता है तो उससे न केवल वहां रहने वाले जीवों और पारिस्थितिक समुदाय में बदलाव आता है, जिससे आक्रामक प्रजातियों का खतरा भी बढ़ जाता है, क्योंकि यह बदलता वातावरण उनके लिए ज्यादा मददगार हो सकता है। यही नहीं समुद्र के किनारे इस तरह की संरचनाओं के निर्माण के चलते वहां आसपास रहने वाले जीवों की संख्या भी कम हो जाती है। 

कंक्रीट में बदल चुके हैं अध्ययन किए गए आधे से ज्यादा तटवर्ती क्षेत्र

शोधकर्ताओं के अनुसार समुद्र किनारे बसे दुनिया के कई प्रमुख शहरों जैसे न्यूयॉर्क में विविधता में कमी दर्ज की गई है। इससे पहले किए गए शोधों से पता चला है कि पर्यटन या शिपिंग ऐसे सामान्य कारक है जिन्होंने तटवर्ती इलाकों में कंक्रीट को बढ़ावा दिया है। यही नहीं शिपिंग हब के रूप में काम करने वाले शहरों में आक्रामक प्रजातियों का खतरा सबसे ज्यादा होता है। 

तटों पर कंक्रीट का जंगल कितना फैल चुका है इसे जानने के लिए शोधकर्ताओं ने दुनिया भर 30 शहरों के उपग्रह से प्राप्त चित्रों का विश्लेषण किया है। जिसमें पता चला है कि इन क्षेत्रों में समुद्र के 52.9 फीसदी से ज्यादा हिस्से सख्त कंक्रीट के हो चुके हैं। उन्होंने इन शहरों के  शिपिंग, जनसंख्या और आर्थिक आंकड़ों को एकत्र किया है, जिसका उपयोग उन्होंने एआई मॉडल बनाने के लिए किया है जिससे भविष्य में इन तटीय क्षेत्रों में बढ़ते कंक्रीट का अनुमान लगाया जा सके। 

2018 में जारी अनुमान के अनुसार दुनिया भर में करीब 32,000 वर्ग किलोमीटर का तटवर्ती मानव निर्माण के कारण कंक्रीट में बदल चुका है। इसमें तटों में किया गया बदलाव, बंदरगाह, ऊर्जा के लिए किया गया बदलाव और दूरसंचार के लिए बिछाए गए तार शामिल हैं। हालांकि यह जो अनुमान है वो पूरी सटीक नहीं है। अनुमान है कि तटों पर किया बदलाव इससे कहीं ज्यादा हो सकता है। 

शोधकर्ताओं के अनुसार इस मॉडल का उपयोग निर्धारित अवधि के दौरान किसी क्षेत्र विशेष में तटों पर बढ़ते कंक्रीट का अध्ययन करने के लिए किया जा सकता है। अपने इस शोध में शोधकर्ताओं ने इस मॉडल एक उपयोग यह जानने के लिए किया है कि अगले 25 वर्षों के दौरान न्यूजीलैंड के तटों में कंक्रीट का विस्तार कितना होगा। पता चला है कि वहां शहरी इलाकों के पास करीब 243 से 368 किलोमीटर की तट रेखा आने वाले वक्त में सख्त भूमि में बदल जाएगी।