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क्या सच में अल्मोड़ा फाल्ट सक्रिय होने से भारत में बढ़ गए हैं भूकंप, विशेषज्ञों से जानें

केंद्रीय पृथ्वी विज्ञान मंत्री किरण रिजिजू ने संसद में जानकारी दी थी कि अल्मोड़ा फाल्ट की सक्रियता की वजह से देश में भूकंपों की संख्या बढ़ रही है

Raju Sajwan

साल 2023 में जनवरी से लेकर नवंबर के दौरान देश में भूकंप की संख्या पिछले सालों के मुकाबले बढ़ गई। आंकड़ों के आधार पर संसद में केंद्र सरकार की ओर से यह जानकारी दी गई, लेकिन भूकंप की संख्या बढ़ने के कारण क्या हैं, इसे लेकर सरकार द्वारा दी जानकारी पर विशेषज्ञ सवाल उठा रहे हैं। 

संसद में सरकार के लिखित जवाब में कहा गया है, “ डेटा, वर्ष 2023 में भूकंप गतिविधि में वृद्धि का संकेत देते हैं और इसका मुख्य कारण पश्चिमी नेपाल में अल्मोड़ा फाल्ट का सक्रिय होना है। इस सक्रियता के कारण 24 जनवरी 2023 को  (तीव्रता 5.8), तीन अक्टूबर 2023 (तीव्रता 6.2) और तीन नवंबर 2023 को (तीव्रता 6.4) बड़े भूकंप आए। इन मुख्य झटकों के साथ-साथ बाद के झटकों (ऑफ्टर शॉक) के कारण वर्ष 2023 में भूकंपों की आवृति में वृद्धि हुई है। हालांकि इस अवधि के दौरान पृष्ठभूमि अपरिवर्तित रही।"

सरकार ने अपने जवाब में आगे कहा है कि उत्तरी भारत और नेपाल में कभी-कभी मध्यम भूकंप और भूकंपीय गतिविधि में उतार-चढ़ाव होना आम बात है। हिमालय क्षेत्र के सक्रिय भ्रंशों के पास स्थित नेपाल और भारत के आसपास का उत्तरी भाग भूकंपीय दृष्टि से अत्यधिक सक्रिय क्षेत्र हैं, जहां टेक्टोनिक्स टकराव के कारण अकसर भूकंप आते रहते हैं, जहां भारतीय प्लेट यूरेशियन प्लेट के नीचे दब जाती है। 

सरकार के इस जवाब को ज्यादातर मीडिया में ‘अल्मोड़ा फाल्ट के सक्रिय होने’ के शीर्षक से प्रकाशित किया गया, लेकिन विशेषज्ञ इससे सहमत नहीं हैं। डाउन टू अर्थ ने तीन अलग-अलग भूगर्भ वैज्ञानिकों से इस बारे में बात की तो उन्होंने एकस्वर में अल्मोड़ा फाल्ट के सक्रिय होने की बात को सिरे से खारिज कर दिया। इन वैज्ञानिकों का कहना है कि हिमालयी क्षेत्र में भूकंप आने का एकमात्र कारण टेक्टोनिक्स टकराव ही हैं। 

नेशनल जियोफिजिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं नेशनल सेंटर फॉर सिस्मोलॉजी के पूर्व निदेशक विनीत गहलौत से डाउन टू अर्थ ने बात की। उन्होंने बताया कि हर साल कोई बड़ा भूकंप नहीं आता है और जिस साल आता है उसके बाद कई छोटे भूकंप आते हैं जिन्हें आफ्टर शॉक भूकंप कहा जाता है। साल 2023 दो बड़े भूकंप आए। पहला, जनवरी में और दूसरा, नवंबर में। इस वजह से इस साल भूकंप की संख्या बढ़ गई है। 

गहलौत कहते हैं कि उन्होंने सरकार द्वारा संसद में दिए गए जवाब को पढ़ा है। सरकार ने भी यही बात कही है। अगर आप आफ्टर शॉक वाले भूकंप की संख्या हटा देंगे तो आप देखेंगे कि हर साल आने वाले भूकंप को संख्या लगभग एक समान नहीं है। संख्या में बहुत ज्यादा परिवर्तन तब तक नहीं होता जब तक की कोई बड़ा भूकंप ना आए ना आए। 

गहलौत के मुताबिक  लेकिन अगर अल्मोड़ा फाल्ट के सक्रिय होने की बात की जाए तो वहां कहीं ना कहीं कम्युनिकेशन की दिक्कत नजर आती है। दरअसल साइंस कम्युनिकेशन, पब्लिक कम्युनिकेशन और राजनीतिक कम्युनिकेशन में काफी अंतर है। साइंस कम्युनिकेशन बिल्कुल तथ्यों पर आधारित होता है, लेकिन पब्लिक उसके मायने कुछ और निकल सकती है और राजनेता उसे कुछ और रूप दे देते हैं। दरअसल, जब भी कोई भूकंप आता है तो उसका नामकरण कर दिया जाता है। जैसे कि नेपाल में आए भूकंप को गोरखा भूकंप नाम दे दिया गया था, क्योंकि नेपाल में एक गोरखा जिला है। यहीं एक गोरखा फाल्ट भी है, जो कि पूरी तरह निष्क्रिय है। गोरखा जिले के नीचे मेन हिमालय थ्रस्ट में भूकंप आया था, लेकिन उसका नाम गोरखा भूकंप दे दिया गया। 

सरकार ने जो जवाब दिया है, उसमें कहा गया है कि अल्मोड़ा फाल्ट की सक्रियता के कारण भूकंप आए हैं। उत्तराखंड के कुमाऊं में दो थ्रस्ट हैं। एक साउथ अल्मोड़ा थ्रस्ट और दूसरा नॉर्थ अल्मोड़ा थ्रस्ट। यही अल्मोड़ा फाल्ट पश्चिमी नेपाल तक जाता है। ऐसे में हो सकता है कि नेपाल में भी इसे अल्मोड़ा फाल्ट ही कहा जाता हो। लेकिन यहां सवाल यह है कि क्या यह भूकंप अल्मोड़ा फाल्ट पर आया? 

वह कहते हैं कि हिमालय के टेक्टोनिक्स की समझ रखने वाले हम लोग (भूगर्भ वैज्ञानिक) यह जानते हैं कि हिमालय में जितने भी भूकंप आते हैं, वो हिमालय के 15 से 20 किलोमीटर नीचे एक फाल्ट है, जिसे हम मेन हिमालयन थ्रस्ट, वहां ये सारे भूकंप आते हैं। 

ये जो दोनों बड़े भूकंप आए थे, वो मेन हिमालयन थ्रस्ट पर आए थे। अब चूंकि सरफेस पर एक फाल्ट को मैप किया हुआ है, जिसको अल्मोड़ा थ्रस्ट कहा जाता हैं, तो यह कह दिया गया होगा कि यह भूकंप अल्मोड़ा फाल्ट पर आया था। लेकिन यह कहना ठीक नहीं होगा। हम इसे सही नहीं मानते, आम लोगों के लिए यह बात चल सकती है। अगर वैज्ञानिक शब्दावली का इस्तेमाल किया जाता है तो कहा जाएगा कि ये भूकंप मेन हिमालय थ्रस्ट पर आया था। 

ऐसे में संसद में दिए गए अपने जवाब में सरकार को स्पष्ट करने की जरूरत दिखती है। गहलौत ने कहा, “सरकार के जवाब में दो जगह स्पष्टता की जरूरत है। हालांकि रिपोर्ट में कोई गलत बात नहीं कही गई है, लेकिन साइंस कम्युनिकेशन को सही तरीके से लोगों के बीच रखना चुनौतीपूर्ण होता है और आम लोग उसका गलत मतलब भी निकाल लेते हैं।”

क्या अल्मोड़ा फाल्ट सक्रिय है? के जवाब में गहलौत बताते हैं कि अल्मोड़ा फाल्ट के सक्रिय होने की बात कहना सही नहीं है। फाल्ट का सक्रिय होना एक बड़ी घटना है। यह बहुत साफ है कि हिमालय में जितने भी फाल्ट हैं, चाहे वो एमबीटी (मेन बाउंड्री थ्रस्ट) हो, नार्थ अल्मोड़ा थ्रस्ट, साउथ अल्मोड़ा थ्रस्ट हो, जितने भी थ्रस्ट हैं, वो सक्रिय (एक्टिव) नहीं हैं। इसे स्पष्ट किया जाना जरूरी है, क्योंकि इससे लोगों में गलत संदेश जाता है। लोगों को लग सकता है कि कोई फाल्ट सक्रिय हो गया है तो बड़ा भूकंप आ सकता है, जबकि यह सही नहीं है। 

उत्तराखंड स्पेस एप्लीकेशन सेंटर (यूसेक) के निदेशक रह चुके भूवैज्ञानिक एमपीएस बिष्ट कहते हैं कि अल्मोड़ा थ्रस्ट गहरा नहीं है और ना ही यह मेंटल में जाने वाला है। यह ऊपरी फाल्ट है। यह थ्रस्ट है, कोई इसे फाल्ट भी कहते हैं। लेकिन इसमें भूकंप आने की आशंका न के बराबर है। 

बिष्ट धरती के भीतर की सरंचना के बारे में बताते हैं कि सबसे ऊपर क्रस्ट यानी परतदार चट्टानें होता है, उसके बाद मेंटल में भी सेमी मोल्टन फॉर्म (अर्ध पिघली) में चट़टान होती है। वहां उच्च तापमान का दबाव होता है, वहां गतिविधियां चलती रहती हैं। इससे जो हलचल होती है, उसकी वजह से ऊपर क्रस्ट में गतिविधियां होती हैं। यह गतिविधि एक सीमा तक जाती है, जहां यह सीमा समाप्त होती है, वहां एक प्लेट दूसरे प्लेट की सीमा से टकराती है।

बिष्ट कहते हैं कि मेंटल एरिया में जितनी भी एनर्जी हिमालयन बेल्ट में आज तक रिलीज हुई है। उनका एपिक सेंटर एमसीटी के आसपास ही रहता है। ऐसे में अगर सरकार ने नॉर्थ या साउथ अल्मोड़ा थ्रस्ट की बात की है तो मैं इससे बिल्कुल भी सहमत नहीं हूं। मेरी अब तक की जानकारी के अनुसार इसमें आज तक कभी भी भूकंप नहीं आया या यहां कोई एनर्जी रिलीज प्वाइंट नहीं है। 

वहीं भूवैज्ञानिक एवं वीर चंद्र सिंह गढ़वाली उत्तराखंड यूनिवर्सिटी ऑफ हार्टिकल्चर एंड फॉरेस्ट्री के डिपार्टमेंट ऑफ बेसिक साइंस के एसोसिएट प्रोफेसर एसपी सती भी कहते हैं कि साउथ व नॉर्थ अल्मोड़ा थ्रस्ट को लेकर वैज्ञानिक पूरी तरह से मानते हैं कि ये थ्रस्ट सक्रिय नहीं हैं। काफी समय पहले आए श्रीनगर भूकंप के बारे में कहा जाता था कि यह अल्मोड़ा थ्रस्ट पर आया था, लेकिन बाद में वैज्ञानिकों ने साफ किया कि श्रीनगर भूकंप इस थ्रस्ट पर नहीं आया था।