विकास

लुटता हिमालय: जोशीमठ ही नहीं, पूरे हिमालय को छलनी कर रही हैं 'विकास' की दरारें

जोशीमठ का संकट अविवेकी और अनियंत्रित विकास की बानगी भर है। इस संकट ने हिमालयी राज्यों में विकास को नए सिरे से परिभाषित करने के बुनियादी सवाल को बेहद मजबूती से उछाल दिया है

Raju Sajwan

उत्तराखंड के जोशीमठ में भूधंसाव की घटनाओं ने हिमालय के प्रति चिंता को बढ़ा दिया है। साथ ही, हिमालयी राज्यों में विकास के मॉडल को लेकर हमारी समझ पर सवाल खड़े किए है। मासिक पत्रिका डाउन टू अर्थ, हिंदी का फरवरी 2023 का विशेषांक इसी मुद्दे पर है। इस अंक की अलग-अलग स्टोरीज को वेब पर प्रकाशित किया जा रहा है। सबसे पहले आपने पढ़ा, जोशीमठ से उठते सवालों पर बात करता डाउन टू अर्थ की संपादक सुनीता नारायण का लेख। आज पढ़ें, जोशीमठ और उसके पास के कई गांवों की ग्राउंड रिपोर्ट-  

 “पति की मृत्यु के बाद मैंने अपने बच्चों को पढ़ाया-लिखाया, आंगनबाड़ी में काम किया, छोटे-मोटे काम किए, कभी खाली नहीं बैठी। पाई-पाई जोड़ कर यह घर बनाया और आज यह घर धंस रहा है। मन तो करता है कि इस घर के साथ ही मैं भी धरती में समा जाऊं”। यह कहते-कहते उत्तरा देवी की आंखें छलक आती हैं। उत्तरा देवी जोशीमठ के मनोहर बाग में रहती हैं, उनका नया घर कहां होगा, उन्हें नहीं पता। उत्तरा देवी का साथ लगता घर उनके जेठ चंद्र बल्लभ पांडे का है। वह राज्य के सिंचाई विभाग से सेवानिवृत्त हुए तो अपनी पेंशन का सारा पैसा यहां लगा दिया। सोचा था कि अपनी भाभी के साथ एक बड़े परिवार के रूप में रहेंगे। इसलिए नौ कमरे बना दिए, इसमें से पांच कमरे नीचे धंस रहे हैं, जबकि सभी कमरों की दीवारों में बड़ी-बड़ी दरारें आ रही हैं।


वह अकेले नहीं है, बल्कि 23 जनवरी 2023 तक जोशीमठ के 863 से अधिक मकानों में दरारें आ चुकी हैं और 181 घर असुरक्षित घोषित कर खाली कराए जा चुके हैं। दरार आने का सिलसिला अक्टूबर 2021 में आई भारी बारिश के बाद से शुरू हुआ था। तब शहर के छावनी बाजार और सुनील वार्ड में कुछ घरों में दरारें आई थीं। लेकिन दिसंबर 2022 में जोशीमठ के कई मोहल्लों में दीवारों-सड़कों-खेतों में दरारें दिखने लगीं। लोगों ने प्रशासन को एक के बाद एक ज्ञापन दिए, लेकिन अधिकारियों ने गंभीरता से नहीं लिया। हार कर लोगों ने जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति के बैनर तले धरने-प्रदर्शन किए। 24 दिसंबर 2022 को राष्ट्रीय राजमार्ग जाम किया गया। तब प्रशासन की नींद जागी, लेकिन तब तक देर हो चुकी थी।

समुद्र तल से लगभग 6,150 फीट की ऊंचाई पर बसा जोशीमठ से भारत-तिब्बत सीमा काफी नजदीक है। यहां बनी सेना की छावनी भारतीय सेना की महत्वपूर्ण छावनियों में से एक है। जोशीमठ में रह रहे ज्यादातर लोग आसपास के गांव छोड़ कर आए हैं। कोई रोजगार करने तो कोई बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलाने का सपना संजोए तो कोई किसी न किसी आपदा का शिकार होने के बाद जोशीमठ में दोबारा बसने आए, लेकिन एक बार फिर से उन्हें विस्थापन का सामना करना पड़ रहा है।

शहर के सुनील वार्ड निवासी दुर्गाप्रसाद सकलानी उनमें से एक हैं। उनका गांव सेमा जोशीमठ से लगभग तीन किलोमीटर दूर था। साल 1970 में आई बेलाकृची बाढ़ की वजह से उनका गांव तबाह हो गया था और उनका घर टूट गया था। किसी तरह उनके पिता ने जोशीमठ के वार्ड सुनील में अपना घर बनाया। दुर्गा प्रसाद और उनके दो भाई यहीं जवान हुए और अब उनके साथ उनके बच्चे भी हैं। उनके घरों में लगभग 14 माह पहले यानी अक्टूबर 2021 में दरार आई थी। प्रशासन को उन्होंने जानकारी भी दी, लेकिन प्रशासन ने नहीं सुना।

दुर्गाप्रसाद कहते हैं, “अगर प्रशासन हमारी शिकायत को गंभीरता से लेता और समय रहते कदम उठाए जाते तो हो सकता है कि पूरे जोशीमठ को इतनी बड़ी आपदा का सामना नहीं करना पड़ता”। जिला आपदा प्रबंधन प्राधिकरण, चमोली की ओर से जारी बुलेटिन के मुताबिक, जोशीमठ के गांधीनगर, पाइका-मारवाड़ी, लोअर बाजार, सिंहधार, मनोहर बाग, अपर बाजार, सुनील, परसारी एवं रवि ग्राम नगर पालिका वार्ड में दरारें देखी जा रही हैं। सबसे अधिक प्रभावित वार्डों में सिंहधार, मनोहर बाग, रवि ग्राम, गांधी नगर शामिल हैं।

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दिसंबर के अंतिम सप्ताह में जोशीमठ में दरारों में तेजी आने की लोगों की बात की तस्दीक भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के नेशनल रिमोट सेंसिंग सेंटर ने की थी। नेशनल रिमोट सेंसिंग सेंटर द्वारा 13 जनवरी 2023 को सैटेलाइट तस्वीरों के आधार पर जानकारी दी गई कि 27 दिसंबर 2022 से 8 जनवरी 2023 (केवल 12 दिन) के बीच जोशीमठ 5.4 सेंटीमीटर नीचे धंस गया, जबकि अप्रैल-नवंबर 2022 के बीच सात महीने में 9 सेमी भूधंसाव हुआ था।

हालांकि शाम होते-होते राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के हस्तक्षेप के बाद इसरो ने यह रिपोर्ट अपनी वेबसाइट से हटा दी। स्थानीय लोग साफ तौर यह बताते हैं कि उनके घर-आंगन-खेतों में दरारें चौड़ी होने की घटना दिसंबर के अंतिम सप्ताह में बहुत तेजी से घटी। 2-3 जनवरी की रात को लोगों ने हलचल भी महसूस की।

शहर के मारवाड़ी इलाके में एक होटल में काम करने वाले युवक प्रकाश सती ने डाउन टू अर्थ को बताया कि 2-3 जनवरी की रात एक से दो बजे सोते हुए उसे महसूस हुआ कि भूकम्प आ रहा है। झटकों से घबराकर वह उठ गया। उसे जमीन हिलती हुई महसूस हुई। लेकिन बाद में भ्रम समझकर सो गया, परन्तु सुबह उसने देखा कि होटल से कुछ दूरी पर जेपी हाइड्रो कम्पनी की आवासीय कॉलोनी के गेट के पास दीवार से पानी फूट कर बाहर निकल रहा था।

मनोहर बाग के सूरज कपरवान ने बताया कि दिसंबर के अंतिम सप्ताह में उन्होंने अपने खेतों में हल्की-हल्की दरारें देखी थीं, जिसे सामान्य मानकर उन्होंने दरारों को भर दिया, लेकिन 3 जनवरी की सुबह न केवल दरारें गहरी हो गईं, बल्कि जमीन धंस भी गई थी। उन्होंने लगभग 35 लाख रुपए का लॉन्ड्री प्लांट लगाया था, उसके पिलर भी धंस गए थे और पूरा प्लांट एक ओर झुक गया था।

जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति के संयोजक अतुल सती कहते हैं कि नेशनल थर्मल पावर कारपोरेशन (एनटीपीसी) लगातार यह दावा कर रहा है कि तपोवन-विष्णुगाड़ जल विद्युत परियोजना के लिए विस्फोट नहीं किए जा रहे हैं, जबकि हकीकत यह है कि फंसी हुई टनल बोरिंग मशीन (टीबीएम) को आगे बढ़ाने के लिए लगातार विस्फोट किए जा रहे हैं। इन विस्फोटों की तादाद दिसम्बर में बढ़ाई गई, लेकिन 2-3 जनवरी की रात इतने तेज विस्फोट हुए कि स्थानीय लोगों ने भी कंपन महसूस किया। इन विस्फोटों से सुबह न केवल बढ़ी हुई दरारें देखी गईं, बल्कि कई जगह जमीन धंस गई।

स्थानीय निवासी एनटीपीसी की इस परियोजना को त्रासदी की मूल वजह मानते हैं। साल 2006 में 520 मेगावाट क्षमता की इस परियोजना को मंजूरी दी गई थी। 2007-08 में इसका निर्माण शुरू किया गया। परियोजना के मुताबिक, तपोवन में बांध बनाने का काम शुरू किया गया, जबकि गांव सेलंग और हेलंग के बीच में पन बिजली घर बनाने का काम शुरू हुआ। तपोवन से हेलंग से 12.1 किलोमीटर लंबी सुरंग (हेड रेस टनल, एचआरटी) बिछाई जा रही है। इसमें से 8.6 किमी सुरंग बिछाने का काम टनल बोरिंग मशीन से किया जा रहा है, जबकि शेष काम ड्रिल एवं विस्फोट से किया जा रहा है।

अक्टूबर 2008 से हेलंग की तरफ से टीबीएम ने अपना काम शुरू किया, लेकिन दिसंबर 2009 में यह काम रुक गया और टीबीएम फंस गई, जिससे चट्टान के अंदर बना जल स्रोत फट गया और वहां से 700 लीटर प्रति मिनट की दर से पानी बहने लगा। लगभग 10 महीने बाद काम शुरू हुआ और उसके बाद से लेकर अब तक दो बार और टीबीएम फंस चुकी है। अतुल सती कहते हैं कि टीबीएम को आगे बढ़ाने के लिए विस्फोटों का सहारा लिया जा रहा है, जिस वजह से जोशीमठ में भूधंसाव का सिलसिला शुरू हुआ।

वह कहते हैं कि प्रशासन यह बताने को तैयार नहीं है कि मारवाड़ी के पास निकल रहा पानी कहां से आ रहा है? सम्भव है कि तपोवन में बंद सुरंग से पानी आ रहा हो, क्योंकि यह पानी काफी मटमैला है। तपोवन वही जगह है, जहां इस परियोजना का बांध बन रहा है। 7 फरवरी 2021 को ऋषिगंगा में आई बाढ़ की वजह से 140 से अधिक लोगों की मौत हो गई थी और परियोजना को भारी नुकसान पहुंचा था।

डाउन टू अर्थ की टीम जेपी कॉलोनी से नीचे बह रही अलकनंदा नदी तक पहुंची तो देखा कि लगभग हर मोड़ पर पानी का रिसाव हो रहा था और नदी में मिल रहा था। अलकनंदा नदी पर बने पुल के किनारे चाय की दुकान चलाने वाले ईश्वर सिंह पंवार बताते हैं कि पहाड़ के उसी हिस्से से पानी फटकर बाहर बह रहा है, जो ऊपर (जेपी कम्पनी) से लेकर नीचे तक एक सीध में है और इसी के आसपास के इलाके सबसे ज्यादा प्रभावित हैं।

चट्टान की दरारों से पानी बहने और घरों में बड़ी-बड़ी दरारें आने के बाद जिला मजिस्ट्रेट ने एनटीपीसी को पावर प्रोजेक्ट व सुरंग का काम रोकने और सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) को हेलंग बाईपास का काम रोकने को कहा गया और युद्ध स्तर पर राहत कार्य शुरू हुआ। नगर पालिका सभासद रह चुके प्रकाश नेगी कहते हैं कि तब तक बहुत देर हो चुकी थी, यदि यह काम 14 माह पहले रोक दिया जाता तो जोशीमठ की यह हालत नहीं होती।

हालांकि जोशीमठ के धंसने की बात नई नहीं है, अध्ययन बताते हैं कि जोशीमठ लगातार धंस रहा है। देहरादून के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ रिमोट सेंसिंग (आईआईआरएस) ने जुलाई 2020 से मार्च 2022 के बीच एकत्रित उपग्रह चित्रों का उपयोग से पता लगाया कि जोशीमठ और आसपास के क्षेत्र हर साल 2.5 इंच या 6.5 सेमी की गति से धंस रहे हैं। इसके अलावा द फ्रेंच नेशनल सेंटर फॉर साइंटिफिक रिसर्च (सीएनआरएस) ने भी एक रिपोर्ट जारी की, जिसमें कहा गया कि 2018 से 2022 के बीच उत्तराखंड के जोशीमठ शहर का पूर्वी हिस्सा हर साल लगभग 10 सेंटीमीटर की औसत के साथ धंस रहा था।

यहां यह उल्लेखनीय है कि सरकार भी भूधंसाव के कारणों की जांच अलग-अलग एजेंसियों से करवा रही है, लेकिन इन सभी एजेंसियों को निर्देश हैं कि वे अपनी रिपोर्ट को सार्वजनिक न करें। राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान (एनआईएच) रुड़की की टीम जेपी कॉलोनी के नीचे से निकल रहे पानी के स्रोत की हाईड्रोलॉजिकल जांच कर चुकी है। इस पानी का मिलान करने के लिए एनआईएच ने एनटीपीसी की सुरंग सहित 13 स्थानों से पानी के नमूने लिए थे।

इन नमूनों की जांच लैब में कराई गई और प्रारंभिक रिपोर्ट राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (यूएसडीएमए) को सौंप दी, लेकिन इस रिपोर्ट में क्या है, किसी को बताया नहीं जा रहा है, बल्कि एक बार फिर से जांच की जा रही है। प्रशासन ने यह जरूर बताया है कि जेपी कॉलोनी में रिस कर निकल रहे पानी के बहाव में कमी आई है। 6 जनवरी को पानी का बहाव 540 एलपीएम (लीटर प्रति मिनट) था, जो 23 जनवरी 2023 को 182 एलपीएम पर पहुंच गया।

जोशीमठ भूधंसाव को लेकर वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी, नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हाइड्रोलॉजी, आईआईटी रुड़की, जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया, इंडियन इंस्टीट्यट ऑफ रिमोट सेंसिंग (आईआईआरएस) समेत देश के कई नामीगिरामी संस्थानों के वैज्ञानिकों की टीम दिन-रात अध्ययन कर रही है। 17 जनवरी 2023 को राज्य के सचिव आपदा प्रबंधन रंजीत कुमार सिन्हा ने प्रेस को जारी एक बयान में बताया कि केन्द्र सरकार के तकनीकी संस्थानों को जोशीमठ के अंतर्गत आपदाग्रस्त क्षेत्र की अध्ययन रिपोर्ट उपलब्ध कराए जाने हेतु टाइमलाइन दी गई है।

सेंट्रल बिल्डिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट (सीबीआरआई) रुड़की के 10 वैज्ञानिकों की टीम को तीन सप्ताह, नेशनल जियो फिजिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट (एनजीआरआई) हैदराबाद के 10 वैज्ञानिकों की टीम को प्रारम्भिक रिपोर्ट दो सप्ताह तथा अन्तिम रिपोर्ट तीन सप्ताह, वाडिया संस्थान के सात वैज्ञानिकों की टीम को प्रारम्भिक रिपोर्ट दो सप्ताह तथा अन्तिम रिपोर्ट दो माह, जीएसआई के सात वैज्ञानिकों की टीम को प्रारम्भिक रिपोर्ट दो सप्ताह तथा अन्तिम रिपोर्ट दो माह, सीजीडब्ल्यूबी के चार वैज्ञानिकों की टीम को प्रारम्भिक रिपोर्ट एक सप्ताह तथा अन्तिम रिपोर्ट तीन सप्ताह तथा आईआईआरएस को एक सप्ताह में प्रारम्भिक रिपोर्ट तथा तीन माह में अन्तिम रिपोर्ट उपलब्ध कराने के निर्देश दिए गए हैं।

नए शहर की तलाश

हालात ऐसे बन गए हैं कि जोशीमठ के एक बड़े हिस्से का धंसना अब तय माना जा रहा है। राज्य के मुख्यमंत्री पुष्कर धामी ने एक बयान में कहा कि जोशीमठ का लगभग 30 प्रतिशत हिस्सा प्रभावित है। उधर, जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति नए जोशीमठ की मांग करने लगी है। समिति के संयोजक अतुल सती कहते हैं कि सरकार नया जोशीमठ बसाए, लेकिन इससे पहले विशेषज्ञों का एक पैनल बनाए जो उस जगह की तलाश करे, जहां लोगों को एक साथ बसाया जा सके। नया जोशीमठ ऐसी जगह पर हो, जो कम से कम इतना सुरक्षित हो कि 100 साल तक उसे कोई नुकसान न हो। साथ ही, नए शहर की धारण क्षमता का भी विस्तृत अध्ययन हो।

निर्माण कार्यों के लिए सख्त कानून और उनकी अनुपालना हो। वहां किसी तरह के भारी निर्माण की इजाजत न दी जाए। साथ ही, लोगों के रोजगार का भी विशेष इंतजाम हो। समिति शहर के लोगों को मुआवजे की भी मांग कर रही है। सती के मुताबिक, एनटीपीसी पर 20 हजार करोड़ रुपए का जुर्माना लगाया जाए और यह पैसा लोगों को दिलाया जाए, जो प्रति व्यक्ति लगभग एक करोड़ रुपए होगा। जोशीमठ के भविष्य पर भूगर्भ विज्ञानी भी यही आशंका जता रहे हैं।

भू वैज्ञानिक और वीर चंद्र सिंह गढ़वाली उत्तराखंड यूनिवर्सिटी ऑफ हॉर्टीकल्चर एंड फॉरेस्ट्री के कॉलेज ऑफ फॉरेस्ट्री के बेसिक एवं सोशल साइंस के विभागाध्यक्ष एसपी सती कहते हैं कि जोशीमठ जिन हालातों में पहुंच चुका है, उसके बाद उस जगह को बचाना बहुत ही मुश्किल है। ऐसे में सरकार को पूरा ध्यान लोगों को बचाने में लगाना चाहिए और उन्हें अन्यत्र बसाने की तैयारी करनी चाहिए। सती कहते हैं कि जोशीमठ को बचाने की कवायद में काफी देर हो चुकी है।

चमोली जिला प्रशासन ने भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (जीएसआई) की ओर से भूमि सर्वेक्षण जांच के बाद समुद्रतल से 1260 मीटर की ऊंचाई पर स्थित पीपलकोटी में स्थायी विस्थापन के लिए भूमि चयनित की है। अब केंद्रीय भवन अनुसंधान संस्थान (सीबीआरआई) की ओर से भूमि का विकास और भवनों के लेआउट बनाने का काम किया जा रहा है। जोशीमठ शहर से करीब 36 किमी की दूरी पर स्थित पीपलकोटी में करीब दो हेक्टेयर में 125 से 130 परिवारों को बसाया जाएगा।

इसके अलावा स्थायी विस्थापन के लिए तीन अन्य जगहों का भी चयन किया जाएगा। लेकिन स्थानीय लोगों का कहना है कि पूरे शहर की अर्थव्यवस्था चार धाम यात्रा, फूलों की घाटी और औली आने वाले यात्रियों पर टिकी है, ऐसे में यदि उन्हें कहीं दूर ले जाया जाता है तो उनके सामने रोजगार की बड़ी समस्या खड़ी हो जाएगी। स्थानीय लोगों की यह मांग प्रशासन व सरकार के लिए एक बड़ी समस्या बन सकती है। हालांकि यहां यह भी उल्लेखनीय है कि राज्य के 484 गांवों को असुरक्षित घोषित किया जा चुका है और उन गांवों का विस्थापन भी सरकार के लिए समस्या बना हुआ है।

विस्थापन और पुनर्वास के मामले में जोशीमठ के लोग फूंक फूंक कर कदम रख रहे हैं। उनके सामने चाई गांव का उदाहरण है। चाई गांव के ठीक नीचे विष्णुगाड़-हेलंग पन विद्युत परियोजना की सुरंगें गुजर रही हैं। इसके चलते चाई गांव के आधे से ज्यादा मकानों में दरारें आ गई। सरकार ने गांव को परियोजना प्रभावित मानने से इनकार करते हुए प्राकृतिक आपदा से प्रभावित बताया। चाई गांव के ईश्वर सिंह कहते हैं कि मुआवजे के नाम पर केवल 20 टीन की चद्दरें मिलीं। बाकी कुछ नहीं मिला, जबकि उनका घर क्षतिग्रस्त हो गया। गांव के केवल 18 लोगों को जोशीमठ के मारवाड़ी इलाके में बसाया गया, जहां अब ये परिवार भी आसपास हो रहे भूधंसाव की वजह से डरे हुए हैं।

विष्णुप्रयाग पनबिजली परियोजना का निर्माण जेपी हाइड्रो कंपनी ने किया था। उस समय कहा गया था कि गांव के सब लोग प्रोजेक्ट में काम दिया जाएगा, लेकिन गांव के किसी भी व्यक्ति को स्थायी नौकरी नहीं मिली। सब ठेकेदारों के पास मजदूरी करते हैं, जिन्हें काम खत्म होने के बाद निकाल दिया गया।

जोशीमठ का इतिहास

दरअसल जोशीमठ का पहाड़ पुराने और प्राकृतिक भूस्खलन के मलबे पर स्थित है जो सैकड़ों वर्षों में स्थिर हो गया है। कई सौ से एक हजार मीटर गहरी विशाल, मोटी परत है जो कुछ चट्टानों पर टिकी हुई है। पर्यावरणविद एवं चारधाम मार्ग की जांच के लिए बनाई गई हाईपावर कमेटी के अध्यक्ष रहे रवि चोपड़ा कहते हैं कि जोशीमठ मेन सेंट्रल थ्रस्ट (एमसीटी) के क्षेत्र में स्थित है। इसलिए इस परत को सहारा देने वाली अंदर की चट्टानें कमजोर हो गई हैं क्योंकि उन्हें ऊपर धकेल दिया गया है। ये टूट चुकी हैं और टूट चुकी सामग्री बहुत मजबूत नहीं हैं। साथ ही, पूरा जोशीमठ ढलान वाले क्षेत्र में बसा हुआ है जिसे संवेदनशील ढलान के रूप में जाना जाता है।

1976 में सरकार द्वारा नियुक्त एमसी मिश्रा समिति ने पहले ही चेतावनी दी थी कि निर्माण कार्य से बचा जाना चाहिए, विशेष रूप से इसकी संवेदनशीलता के कारण पहाड़ी के ढलाव पर निर्माण नहीं होना चाहिए। एसपी सती बताते हैं कि आरनोल्ड हेम और ऑगस्ट गैनसर ने 1939 में अपनी किताब सेंट्रल हिमालय में कहा था कि जोशीमठ भूस्खलन के मलबे पर बसा है। यह भूस्खलन कब हुआ, इस बारे में कोई ठोस जानकारी उपलब्ध नहीं है, लेकिन इतिहासकार शिव प्रसाद डबराल की किताब में कहा गया है कि कत्यूर राजवंश की जोशीमठ में राजधानी हुआ करती थी, लेकिन लगभग 1,000 साल पहले हुए एक भूस्खलन की वजह से कत्यूर राजाओं ने यहां से अपनी राजधानी हटा दी थी।

दूसरे इलाकों में भी दरारें

जिन दिनों जोशीमठ में दरारें आ रही थी, ठीक उन्हीं दिनों कुछ और इलाकों में भी दरारें आईं। हालांकि सरकार और प्रशासन का पूरा ध्यान जोशीमठ पर ही रहा। डाउन टू अर्थ ने जोशीमठ के अलावा इन इलाकों का भी देखा। दिलचस्प बात यह है कि डाउन टू अर्थ की टीम जोशीमठ के अलावा वहां से लगभग 17 किलोमीटर ऊपर (सड़क मार्ग से) सुभाई गांव के अलावा जोशीमठ से नीचे की ओर लगभग 215 किलोमीटर दूरी पर स्थित गांव अटाली गई। इन दोनों गांवों में भी दिसंबर के आखिरी सप्ताह में दरारें देखी गई। सुभाई गांव के लोग दरार आने का कारण नहीं बता पा रहे हैं, लेकिन अटाली गांव के लोगों का कहना है कि उनके गांव के ठीक नीचे रेलवे द्वारा बनाई जा रही ऋषिगंगा-कर्णप्रयाग रेल लाइन की सुरंग के कारण उनके घरों और खेतों में दरारें आ रही हैं।

सुभाई वह गांव है, जहां पहले 7 फरवरी 2021 को ग्लेशियर के टूटने से आई भारी बाढ़ और फिर 17 जून 2021 को हुई अप्रत्याशित भारी बारिश के कारण प्रभावित रैणी गांव के परिवारों को बसाया जाना था। लेकिन अब सुभाई गांव में ही दरारें आने लगी हैं। हालांकि सुभाई गांव के लोगों ने पहले ही रैणी गांव के परिवारों को अपने यहां बसाने से इनकार कर दिया था और रैणी गांव के प्रभावित परिवार अभी भी अपने उन्हीं घरों में रह रहे हैं, जिन्हें असुरक्षित घोषित कर दिया गया था।

रैणी गांव की सौंणा देवी बताती हैं कि जब हमारे यहां आपदा आई थी तो सरकारी अधिकारी व मंत्री आ रहे थे। उन्होंने पुनर्वास का आश्वासन दिया था, लेकिन अधिकारियों के जाने के बाद कोई पूछने नहीं आया कि हम किस हाल में हैं। हमने अपनी घरों की मरम्मत कर ली है और फिर किसी आपदा का इंतजार कर रहे हैं। सौंणा देवी अपनी बोली में कहती हैं कि एक दिन हम भी नदी में बह जाएंगे। 7 फरवरी 2021 में इस गांव के ठीक नीचे बने ऋषिगंगा पन बिजली परियोजना पूरी तरह तहस-नहस हो गई थी। इस बाढ़ में रैणी गांव के चार लोगों की मौत हो गई थी। रैणी गौरा देवी का गांव है, जो जंगल-पर्यावरण बचाने के लिए किए गए चिपको आंदोलन की नायिका रही हैं।



सुभाई गांव समुद्र तल से लगभग 2,600 मीटर ऊपर है। यहां से भविष्य बद्री के लिए पैदल का रास्ता लगभग तीन किलोमीटर है। भविष्य ब्रदी मंदिर वह स्थान है, जिसके बारे में कहा जाता है कि एक समय के बाद विष्णुप्रयाग के पास पतमिला में जय और विजय के पहाड़ एक हो जाएंगे, जिस कारण बद्रीनाथ धाम में जाने का मार्ग बहुत ही दुर्गम हो जाएगा जिसके परिणामस्वरूप भविष्य बद्री में बद्रीनाथ की पूजा की जाएगी। सुभाई गांव के सुरेंद्र सिंह रावत कहते हैं कि लगभग एक सप्ताह पहले वह दिन में अपने परिवार के साथ खाना खा रहे थे कि उनके घर के किचन की दीवार अचानक गिर गई। वह कुछ समझ नहीं पाए। उस समय भूकंप जैसा भी कुछ महसूस नहीं किया गया, बल्कि अचानक ही यह हुआ।

सुरेंद्र कहते हैं कि 7 फरवरी 2021 को जब ऋषिगंगा में बाढ़ आई थी तो उसके झटके उनके गांवों में भी महसूस किए गए थे, इसके बाद जून 2021 में हुई भारी बारिश के बाद उनके गांव के कुछ मकानों की दीवारों में दरारें आई थी, लेकिन उन्हें ठीक करा दिया गया था, परंतु अब दिसंबर 2022 के आखिरी सप्ताह में उनके गांव के अधिकांश घरों में दरारें देखी जा रही हैं। रैणी निवासी प्रेम सिंह रावत कहते हैं कि उन्होंने दो साल पहले ही अपना मकान बनाया था, लेकिन अब उसमें भी दरारें आ रही हैं। उनके मकान में आठ-दस दिन पहले से ही दरारें दिखनी शुरू हुई हैं।

120 परिवारों वाले सुभाई में लगभग 75 प्रतिशत घरों में दरारें देखी जा रही हैं, जबकि चार-पांच घरों में काफी क्षतिग्रस्त हुए हैं। हालात यह थे कि लोगों में डाउन टू अर्थ टीम को अपने घर की दरारें दिखाने की होड़ सी लग गई। लक्ष्मण सिंह रावत, रूप सिंह फरस्वाण, नंदन सिंह रावत, हीरा सिंह राणा, भंगुली देवी, जवाहर सिंह फरस्वाण, गब्बर सिंह रावत आदि ने बताया कि उनके घरों में दिसंबर के आखिरी सप्ताह के बाद से दरारें दिख रही हैं। इसकी सूचना प्रशासन को भिजवाई गई है, लेकिन अब तक प्रशासन ने सर्वे तक नहीं करवाया है। ये लोग बहुत स्पष्ट नहीं हैं कि उनके घरों में दरारों का कारण क्या हो सकता है, लेकिन प्रेम सिंह रावत कहते हैं कि हो सकता है कि तपोवन में बन रहे एनटीपीसी के बांध की वजह से कुछ हलचल हो रही हो। प्रशासन को इसकी जांच करानी चाहिए।

दिसंबर के आखिरी सप्ताह में सेलंग गांव में भी दरारें देखी गई। सेलंग वह गांव है, जहां एनटीपीसी का हाइड्रो पावर प्लांट है। एनटीपीसी ने साल 2006 में गांव की जमीन का अधिग्रहण भी किया। लोगों का कहना है कि उनके गांव के ठीक नीचे चट्टान के भीतर पूरा पावर प्लांट बना हुआ है। गांव के नरेंद्र बिष्ट इस प्लांट में काम कर चुके हैं, वह कहते हैं कि पहाड़ को अंदर से खोखला करके एनटीपीसी ने वहां सात मंजिला बिल्डिंग बना दी है। अंदर रेल लाइन बिछाई गई है, जिस पर लोको ट्रेन चलती है। उनके गांव से मात्र 100 मीटर की दूरी पर एनटीपीसी का सर्ज साफ्ट है जो बाहर से भी दिखता है।

वह बताते हैं कि 2007 में काम चालू हुआ था, तब इतने ज्यादा विस्फोट होते थे कि उनके गांव के लगभग सभी घर क्षतिग्रस्त हो गए। कुछ मकानों को एनटीपीसी ने रिपेयर भी किया था। बाकी लोगों ने मुआवजा के पैसों से नए मकान बनवा लिए, परंतु अब इन मकानों में भी दरारें आ गई हैं। गजेंद्र सिंह बताते हैं कि उन्होंने मुआवजे की राशि से 2006-07 में अपना घर बनाया था, लेकिन 10-15 दिन पहले उन्होंने अपने घर में दरारें देखी। सेलंग में लगभग 150 घर हैं। लगभग हर घर में दरारें देखी जा रही हैं, हालांकि कई घरों में बहुत कम हैं, लेकिन जोशीमठ में घट रही घटनाओं को देखते हुए लोग डरे हुए हैं। नरेंद्र बिष्ट कहते हैं कि एक सप्ताह पहले सब लोग इकट्टा होकर जोशीमठ गए थे और एसडीएम को ज्ञापन दिया था, लेकिन पूरे प्रशासन का ध्यान जोशीमठ पर ही है, जिस कारण प्रशासन का कोई भी अधिकारी कर्मचारी उनके यहां नहीं आया।

नरेंद्र बताते हैं कि यह सही है कि सुरंग (हेड रेस टनल अथवा एचआरटी) का काम टनल बोरिंग मशीन (टीबीएम) से किया जा रहा है, लेकिन इसके अलावा भी टनल बनाई जाती हैं, जिसका काम ब्लास्ट से ही किया जाता है। दिन में कम से कम दो बार ब्लास्ट होता है, जिसका असर उनके घरों तक में होता है।

महिला मंगल दल, सेलंग की प्रधान भवानी देवी कहती हैं कि उन्होंने स्वयं सहायता समूह से कर्ज लेकर नया मकान बनाया था, क्योंकि दरारों के कारण पुराने मकान में रहना संभव नहीं था, लेकिन अब इस घर में भी दरारें आने लगी हैं। वह कहती हैं कि जब विस्फोट होता है कि उनके घरों के शीशों तक में आवाज आती है।

सेलंग निवासी श्रीकांत बिष्ट बताते हैं कि उनके पिता की मौत के बाद उनके व उनके भाइयों के ऊपर परिवार की जिम्मेवारी आ गई थी। 2016 में उन्होंने पूरे परिवार के लिए मकान बनाया था, क्योंकि उनका पुराना मकान टूट रहा था, लेकिन अब इसमें भी दरारें आ रही हैं। मकान में उन्होंने मुआवजे का पैसा लगाया था। नरेंद्र बिष्ट बताते हैं कि मुआवजे के तौर पर एनटीपीसी ने वनटाइम सेटेलमेंट किया था, जिसमें एक परिवार को 1 लाख रुपए दिए गए थे, तब नौकरी भी देने का वायदा किया गया था, लेकिन यह नौकरी ठेका कंपनियों के माध्यम से दी गई, जिनका काम पूरा होने के बाद उन्हें काम से निकाल दिया गया।

नए हाइड्रो प्रोजेक्ट से विस्थापन

जोशीमठ के विस्थापित लोगों को जिस जगह यानी पीपलकोटी में बसाए जाने का प्रस्ताव है, वहां भी एक हाइड्रो परियोजना पर काम शुरू हो चुका है। यहां 444 मेगावाट क्षमता का पनबिजली परियोजना का काम चल रहा है। इस परियोजना को विश्व बैंक ने 2011 में फंड की मंजूरी दी थी और 2013 में काम शुरू हो गया था। टिहरी हाइड्रो डेवलपमेंट कारपोरेशन (टीएचडीसी) की वेबसाइट में दी गई जानकारी के मुताबिक, यह परियोजना मई 2025 में पूरी की जानी है। अलकनंदा पर बनने वाली इस परियोजना का बांध हेलंग गांव के नीचे बनना है, जबकि पावर प्लांट हाट गांव में बनना है। इसके लिए हाट गांव के लोगों को विस्थापित कर अगथला में बसाया गया।

अगथला निवासी राजेंद्र सिंह राणा ने डाउन टू अर्थ को बताया कि यहां अकसर विस्फोट किए जाते हैं, जिसके चलते उनके गांवों में लगभग सभी घरों में दरारें हैं, जिसकी शिकायत भी की गई, लेकिन हमारी शिकायतों की ओर ध्यान नहीं दिया गया। वह शिकायत करते हैं, जब से परियोजना का काम शुरू हुआ, तब से ही उनके गांव के जल स्रोत भी सूख गए और वे लोग खेती भी नहीं कर पा रहे हैं।

रेल लाइन से बिगड़े हालात

एक ओर जहां पनबिजली परियोजनाओं और चार धाम राजमार्ग परियोजना की वजह से उत्तराखंड में विस्थापन बढ़ रहा है। वहीं, ऋषिकेश से कर्ण प्रयाग तक बिछाई रेल लाइन ने भी लोगों की मुसीबतें बढ़ा दी हैं। टिहरी गढ़वाल जिले के ब्यासी से सटे अटाली गांव में इसका असर साफ-साफ दिख रहा है।

गांव के जय सिंह पुंडीर ने डाउन टू अर्थ को बताया कि उनके खेतों, आंगन और मकान की दीवारों पर आई हुई हैं। इसकी सूचना उन्होंने रेलवे विकास निगम लिमिटेड के अधिकारियों व प्रशासनिक अधिकारियों को दी। अधिकारियों ने आंगन में एक सीमेंटेड टेप लगाई और कहा कि अगर इसमें भी दरारें आ जाएं तो उन्हें सूचित कर दें। एक दिन बाद उसमें भी दरारें आ गईं, इसकी सूचना रेलवे विभाग को दे दी गई है।

दरअसल अटाली गांव के नीचे रेलवे की सुरंग और स्टेशन बन रहा है। पुंडीर का कहना है कि इस टनल के लिए अकसर विस्फोट किया जाता है, जिसकी वजह से उनके गांव के कई घरों में भी दरारें आ रही हैं। साथ ही खेतों में भी दरारें आ रही हैं। यहां रेलवे ने 2020 से काम शुरू किया था।

यहां से गुजर रही रेल लाइन ऋषिकेश कर्णप्रयाण रेल प्रोजेक्ट का हिस्सा है। वह बताते हैं कि रेलवे ने उनकी खेतों की जो जमीन अधिग्रहण की थी, उसका मुआवजा दे दिया। उस मुआवजे से उन्होंने घर बनाया, लेकिन अब इसी घर में दरारें आने लगी हैं।

गांव के लिए पानी के तीन स्रोत थे, इनमें से एक पूरी तरह सूख गया। जबकि दो में पानी का बहाव बहुत कम रह गया है। जल संस्थान ने पीने के पानी के लिए पांच किलोमीटर दूर से पाइप लाइन बिछाई है, लेकिन वहां भी पानी सूख रहा है। जहां पहले एक घंटा पानी आता था, वहीं अब 15 मिनट पानी आता है।

वह कहते हैं कि आने वाले दिनों में पानी के संकट की वजह से उनका गांव में रहना दूभर हो जाएगा। खेतों की दरारें इतनी चौड़ी हो गई हैं कि रेलवे ने प्लास्टिक लगाकर ढक दिया है, ताकि बारिश का पानी उन दरारों में न भर जाए, क्योंकि ऐसा हुआ तो गांव के नीचे से गुजर रही सुरंग पर भी खतरा मंडरा सकता है।

गांव के गोविंद सिंह चौहान, प्रेम सिंह चौहान, बसंती देवी आदि ने भी अपने घरों की दीवारों पर दरारों की शिकायत की। जून 2021 में डाउन टू अर्थ ने लगभग एक साल पहले की अपनी रिपोर्ट बताया था कि रेलवे प्रोजेक्ट के लिए बन रही सुरंगों के कारण डोगी पट्टी के गांवों में पानी के स्रोत सूख रहे हैं और लोग खेती नहीं कर पा रहे हैं।

पहाड़ों में बन रही जल विद्युत परियोजना हो, सड़कों का चौड़ीकरण हो या रेल लाइनें, विकास के नाम पर बन रही ये परियोजनाएं स्थानीय लोगों को "दरारें" दे रही हैं। इन गहराती दरारों में आने वाले दिनों में पहाड़ों पर रहने लोगों को जीवन ही नहीं, बल्कि उनका अस्तित्व तक समा सकता है।