विकास

गांवों में विकास परियोजनाओं के लिए ग्राम सभा की अनुमति होगी जरूरी

आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय ने केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय की उस अधिसूचना को रद्द कर दिया है, जिसमें कहा गया था कि लीनियर प्रोजेक्ट में ग्राम सभा के मंजूरी की जरूरत नहीं होगी।

Vivek Mishra

करीब छह साल बाद ग्राम सभा को अपनी खोई हुई ताकत वापस मिल गई है। गांव में आर्थिक और सामाजिक विकास वाली योजना और परियोजनाओं को जमीन पर उतारने के लिए पहले ग्राम सभा की मंजूरी लेनी होगी। आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय ने केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय की ओर से जारी की गई उस अधिसूचना को रद्द कर दिया है, जिसमें ग्राम सभा की भूमिका को कम करते हुए विकास परियोजनाओं और कार्यक्रमों के लिए जमीन अधिग्रहण व लैंड यूज में बदलाव जैसी गतिविधि में ग्राम सभा से मंजूरी लेने की शर्त को खत्म कर दिया गया था। यह अधिसूचना 5 फरवरी, 2013 को जारी की गई थी।

आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय के कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश सी प्रवीन कुमार और जस्टिस एम सत्यनारायण मूर्ति ने अपने आदेश में कहा है कि पंचायतों के प्रावधान (अनुसूचित क्षेत्रों पर विस्तार) अधिनियम, 1996 (पेसा अधिनियम, 1996) की धारा 4 (सी) ग्राम सभा को यह शक्ति देता है कि वह गरीबी उन्मूलन के लाभार्थियों की पहचान करे साथ ही विकास की योजनाओं और परियोजनाओं को मंजूर करे। धारा 4 के होते हुए संविधान के नौवें भाग में अन्य कोई कानून नहीं हो सकता। न ही राज्य और केंद्र इस संबंध में कोई नया कानून बना सकते हैं। पेसा कानून, 1996 न सिर्फ राज्यों को इस संबंध में कानून बनाने से रोकता है बल्कि यह धारा 4 के ए से ओ तक में वर्णित आदिवासियों के लिए विशेष सुविधाओं के साथ असंगत भी है।

पीठ ने कहा कि पर्यावरण मंत्रालय की ओर से ग्राम सभा की शक्ति छीनने वाले सर्कुलर को भले ही इस शर्त के साथ जारी किया गया हो कि वह आदिवासियों या समुदाय के संस्कृति को प्रभाव को जांचेगी तब भी पेसा कानून की धारा 4 के साथ यह उचित नहीं है। इसके अलावा केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय और आदिवासी कल्याण विभाग ने भी यह स्वीकार किया है कि संबंधित सर्कुलर पेसा कानून के अनुकूल नहीं है। ऐसे में 5 फरवरी, 2013 को जारी संबंधित सर्कुलर को रद्द किया जाता है। 

गैर सरकारी संस्था समथा के निदेशक रवि रब्बा प्रगडा और डॉ ईएएस शर्मा की ओर से केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय की 5 फरवरी, 2013 को जारी की संबंधित अधिसूचना को आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय में चुनौती दी गई थी। याचिका में कहा गया था कि लीनियर प्रोजेक्ट्स में ग्राम सभा की मंजूरी और अन्य भूमिका को कम करना और उसकी शक्ति को क्षीण करना संविधान अनुरूप नहीं है। वहीं, सर्कुलर के आधार आदिवासी वन क्षेत्रों में परियोजनाओं को शुरु किया जा रहा है जो असंवैधानिक और गलत हैं।

गैर सरकारी संस्था समथा के निदेशक रवि रब्बा प्रगडा ने डाउन टू अर्थ से कहा कि आंध्र प्रदेश का यह फैसला बेहद अहम है। खासतौर से लीनियर प्रोजेक्ट्स यानी सड़क, तार, नहरें, पाइपलाइन, ऑप्टिकल फाइबर, ट्रांसमिशन लाइन बिछाने वाली परियोजनाओं में ग्राम सभा की मंजूरी खत्म किए जाने से वन और गैर वन भूमि में जमीनों का मनमाने तरीके से अधिग्रहण किया जा रहा था और उनमें परियोजनाएं भी संचालित की जा रही थीं।

आंध्र प्रदेश सरकार का यह फैसला तब आया है जब केंद्रीय मंत्रालय ने देशभर में पाइपलाइन बिछाकर हर घर जल पहुंचाने की योजना बनाई है। इसके अलावा रेलवे और हाईवे जैसे लीनियर प्रोजेक्ट्स में केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने 800 हेक्टेयर भूमि में 13 लंबित रेलवे परियोजाओं को भी मजूरी भी दी है।