देश की हर ग्राम पंचायत तक इंटरनेट की पहुंच बनाने के लिए शुरू की गई भारतनेट परियोजना के पूरे होने की तारीख एक बार फिर बढ़ा दी गई है। अब सरकार का कहना है कि देश के 2.5 लाख ग्राम पंचायतों तक अगस्त 2021 तक बॉडबैंड कनेक्शन पहुंचा दिया जाएगा, लेकिन इस स्कीम की कहानी बेहद दिलचस्प है।
सरकार हर साल बजट में इसके लिए अच्छी खासी रकम का प्रावधान करती है, लेकिन ण्क साल को छोड़ दें तो कभी भी खर्च पूरा नहीं किया गया। इस बार बजट में 2020-21 में भारतनेट परियोजना पर 6000 करोड़ रुपए के खर्च की घोषणा की गई है, जबकि पिछले साल के बजट में भी 6000 करोड़ रुपए की घोषणा की गई थी, लेकिन बाद में इसे रिवाइज करते हुए 2000 करोड़ रुपए कर दिया गया था। इसके अलावा बजट में लक्ष्य रखा गया है कि 2020-21 में 2 लाख ग्राम पंचायतों को ऑप्टिकल फाइबर, रेडिया, सेटेलाइट के जरिए इंटरनेट से जोड़ा जाएगा। इसके लिए 5.50 लाख किलोमीटर लम्बी ओएफसी बिछाई जाएगी। साथ ही, 500 टीबी बैंडविथ के उपयोग के अलावा 20,000 डार्क फाइबर का उपयोग, एक लाख ग्राम पंचायतों में वाईफाई की सुविधा और 2.50 लाख एफटीटीएच कनेक्शन का लक्ष्य रखा गया है।
कब-कितना किया खर्च
अब बात करते हैं कि 2015-16 से लेकर 2019-20 के दौरान भारतनेट परियोजना पर खर्च कितना किया गया। 10 दिसंबर 2019 को संसद में पेश की गई सूचना एवं प्रौद्योगिकी की स्थायी समित की रिपोर्ट में बताया गया है कि 2015-16 में इस परियोजना के लिए 9334.71 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया था, लेकिन खर्च किया गया 2415.10 करोड़ रुपया। 2016-17 में 5000 करोड़ रुपए खर्च करने का प्रावधान किया गया, लेकिन खर्च किया गया 5600 करोड़ रुपया। 2017-18 में 10402.51 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया और खर्च 6000 करोड़ रुपए किया गया। 2018-19 में 8000 करोड़ रुपए में से खर्च किया गया 4145.54 करोड़ रुपया। और 2019-20 में जब सरकार राजस्व की कमी का सामना कर रही है तो 6000 करोड़ रुपए में से 30 अक्टूबर 2019 तक केवल 457.74 करोड़ रुपया ही खर्च किया जा सका। अब देखना यह है कि 2020-21 में कितना खर्च किया जाएगा।
बार-बार बढ़ाया लक्ष्य
भारत नेट परियोजना, जिसे पहले राष्ट्रीय ऑप्टिकल फाइबर नेटवर्क (एनओएफएम) कहा जाता था, ने 2011 में कैबिनेट की मंजूरी प्राप्त की थी और दो साल के भीतर पहले चरण में 1 लाख ग्राम पंचायत में ब्रॉडबैंड कनेक्शन पहुंचाने का लक्ष्य रखा गया था। लेकिन अड़चनों के चलते यह योजना अधर में लटक गई और यूपीए सरकार ने सितंबर 2015 तक स्थगित कर दिया था। साल 2014 में सरकार बदली और एनडीए सरकार ने परियोजना की स्थिति की फिर से जांच की और इसे भारतनेट के नाम से शुरू करने का फैसला लिया गया। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 19 जुलाई 2017 को इस पूरी परियोजना के लिए 42068 करोड़ रुपए की मंजूरी दी थी। उस समय यह दावा किया गया था कि यह परियोजना 31 मार्च 2019 तक पूरी जाएगी। लेकिन 27 जून 2019 को दूरसंचार मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि मार्च 2020 तक देश की सभी पंचायतों को हाईस्पीड ब्रॉडबैंड कनेक्शन दे दिया जाएग। लेकिन 5 फरवरी 2020 को संसद में पूछे गए एक सवाल में कहा गया कि अगस्त 2021 तक सभी 2.5 लाख ग्राम पंचायतों में ब्रॉडबैंड कनेक्टिविटी उपलब्ध कराने का लक्ष्य रखा गया है। यानी कि, एक बार फिर से परियोजना के पूरा होने का लक्ष्य बढ़ा दिया गया है।
जहां तक अब तक का लक्ष्य हासिल करने की बात है तो 5 फरवरी को दिए गए जवाब के मुताबिक, 1,46,717 ग्राम पंचायतों तक ओएफसी केबल बिछा दी गई है, इनमें से 45,769 ग्राम पंचायतों में वाईफाई हॉटस्पॉट लगा दिए गए हैं, लेकिन मात्र 18041 ग्राम पंचायतों में ही वाईफाई हॉटस्पॉट चल रहे हैं। पंजाब, तमिलनाडु, तेलंगाना, सिक्किम, नागालैंड, आंधप्रदेश आदि राज्यों में एक भी गांव में वाईफाई काम नहीं कर रहा है।
राज्यों को ही ठहराया दोषी
परियोजना में हो रही देरी के लिए केंद्र ने राज्यों को दोषी ठहरा दिया है। केंद्रीय दूरसंचार मंत्री रविशंकर प्रसाद ने 5 फरवरी को संसद को बताया कि 8 राज्यों के लगभग 65 हजार ग्राम पंचायतों में राज्य आधारित मॉडल के तहत काम कराया जा रहा है और उनके कार्यान्वयन में विलंब हो रहा है। इसके अलावा मार्गधिकार में आ रही दिक्कतों की वजह से भी परियोजना में देरी हुई।