विकास

भेदभाव और दकियानूसी सोच के चलते गणित में लड़कों से पिछड़ रही हैं लड़कियां

शिक्षक, अभिभावक और साथियों की यह नकारात्मक सोच कि लड़कियां जन्म से ही गणित को समझने में स्वाभाविक रूप से असमर्थ होती हैं, असमानता को बढ़ावा दे रहा है। इससे लड़कियों का आत्मविश्वास कम होता है

Lalit Maurya

दुनिया सीखने-पढ़ने के मामले में संकट के नए दौर का सामना कर रही है। शिक्षा की स्थिति यह है कि वैश्विक स्तर पर 10 वर्ष की उम्र के आधे से ज्यादा बच्चे अपना एक साधारण पाठ भी नहीं पढ़ सकते। ऊपर से कोविड-19 ने इस संकट को और गहरा दिया है।

बात जब बेटियों की आती है, तो उनके लिए संकट की यह खाई कुछ ज्यादा ही गहरी है। वहीं जब बात गणित विषय की आती है तो इस मामले में लड़कियां, लड़कों से पिछड़ रही हैं।

इस बारे में संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनिसेफ) द्वारा जारी नई रिपोर्ट “सॉल्विंग द इक्वेशन: हैल्पिंग गर्ल्स एंड बॉयज लर्न मैथामेटिक्स” से पता चला है कि इसके लिए लड़कियों के साथ किया जा रह भेदभाव और समाज की दकियानूसी सोच जिम्मेवार है, जिसकी वजह से यह अन्तर और बढ़ रहा है।

इस रिपोर्ट में दुनिया भर के 100 से भी ज्यादा देशों और क्षेत्रों के आंकड़ों और उनके विश्लेषण को शामिल किया गया है। रिपोर्ट में सामने आया है कि लड़कियों की तुलना में लड़कों में गणित के कौशल को प्राप्त करने की संभावना करीब 1.3 गुना ज्यादा है।

निम्न और मध्यम आय वाले 34 देशों के आंकड़ों के विश्लेषण से पता चला है कि इन देशों में लड़कियां, लड़कों से पीछे हैं। वहीं चौथी कक्षा पढ़ने वाले तीन-चौथाई स्कूली बच्चे बुनियादी संख्यात्मक कौशल को प्राप्त करने में असमर्थ हैं। वहीं मध्यम और उच्च-आय वाले 79 देशों के आंकड़ों के अनुसार, 15 वर्ष की उम्र के एक तिहाई से ज्यादा स्कूल जाने वाले बच्चों ने अभी तक गणित में न्यूनतम निपुणता हासिल नहीं की है।

पता चला है कि रूढ़ियां के साथ शिक्षकों, अभिभावकों और साथियों की यह नकारात्मक सोच कि लड़कियां गणित को समझने में जन्म से ही स्वाभाविक रूप से असमर्थ होती हैं, इस असमानता को और बढ़ावा दे रही हैं। इससे लड़कियों का आत्मविश्वास कम होता है, जोकि उन्हें असफलता की ओर धकेलता है। देखा जाए तो इस दृष्टिकोण में बदलाव हमें इस संकट से उबरने में मदद कर सकता है और शिक्षा को परिवर्तन की ओर ले जा सकता है।

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि इन्हीं सब को ध्यान में रखकर आज से शिक्षा में व्यापक बदलाव के लिए संयुक्त राष्ट्र की शिखर बैठक “ट्रांसफॉर्मिंग एजुकेशन समिट” शुरू हो रही है।

घरेलू परिस्थितियां भी रखती हैं मायने

रिपोर्ट के अनुसार चौथी कक्षा तक संपन्न परिवारों के बच्चों की संख्यात्मक कौशल हासिल करने की सम्भावना, निर्धन घरों के बच्चों की तुलना में 1.8 गुना अधिक होती है। वहीं जो बच्चे बचपन में शुरूआत से ही शिक्षा और देखभाल संबंधी कार्यक्रमों में भाग लेते हैं, उनके पास 15 वर्ष की आयु तक गणित में न्यूनतम दक्षता हासिल करने की सम्भावना उन बच्चों की तुलना में 2.8 गुना अधिक होती है जिनके पास ऐसे अवसरों की कमी है।

रिपोर्ट में यह भी आगाह किया गया है कि कोविड-19 के प्रभावों ने बच्चों की गणित संबंधी क्षमता को और भी ज्यादा बिगाड़ दिया है। गौरतलब है कि इस रिपोर्ट में केवल उन बच्चों पर ध्यान केन्द्रित किया गया है जो फिलहाल स्कूल में हैं। पता चला है कि जिन देशों में लड़कों की तुलना में लड़कियों के स्कूल से बाहर होने की सम्भावना ज्यादा होती है, वहां गणित के विषय में व्याप्त असमानता के और भी ज्यादा व्यापक होने की आशंका है।

वहीं इसके विपरीत हाल ही में संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक तथा सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) द्वारा जारी “2022 जेंडर रिपोर्ट: डीपनिंग द डिबेट ऑन दोस स्टिल लेफ्ट बिहाइंड” में सामने आया था कि स्कूल में लड़कियां, गणित में लड़कों की तरह ही बेहतर प्रदर्शन कर रही हैं। संयुक्त राष्ट्र संगठन द्वारा जारी यह रिपोर्ट 120 देशों में प्राइमरी और सैकण्डरी शिक्षा क्षेत्र में कराए गए एक विश्लेषण के आधार पर तैयार की गई है।

रिपोर्ट के मुताबिक हालांकि शिक्षा के शुरुआती वर्षों में गणित के मामले में लड़के, लड़कियों की तुलना में ज्यादा बेहतर प्रदर्शन कर रहे हैं, लेकिन लैंगिक असमानता की यह खाई सैकण्डरी स्तर पर जाकर खत्म हो जाती है। यहां तक की दुनिया के सबसे कमजोर और पिछड़े देशों में भी लड़कियों ने इस मामले में बेहतर प्रदर्शन किया है।

इस बारे में यूनिसेफ की कार्यकारी निदेशक कैथरीन रसैल का कहना है कि “लड़कियों में लड़कों के समान ही गणित को सीखने की योग्यता होती है, मगर उनके पास इसमें कौशल प्राप्त करने के लिए समान अवसरों की कमी है।“ उनका कहना है कि हमें इन लैंगिक रूढ़ियों और दकियानूसी सोच को दूर करने की आवश्यकता है जो लड़कियों को पीछे रखती हैं। साथ ही हमें हर बच्चे को बुनियादी कुशलता हासिल करने में मदद करने के लिए अतिरिक्त प्रयास करने होंगे ताकि वो स्कूल और जीवन में सफल हो सकें।

रिपोर्ट के अनुसार गणित सीखने से बच्चों की स्मृति, समझ और विश्लेषण क्षमता मजबूत होती है। साथ ही इससे बच्चों की रचनात्मक योग्यता में भी सुधार आता है। इतना ही नहीं रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि जो बच्चे बुनियादी जोड़-घटा और अन्य मूलभूत विषयों में महारथ हासिल नहीं करते हैं, उन्हें समस्या समाधान और तार्किक क्षमता जैसे महत्वपूर्ण बौद्धिक विकास के मामले में संघर्ष करना पड़ता है।

ऐसे में शिक्षा की स्थिति में सुधार के लिए नए प्रयासों और निवेश की जरूरत है, जिससे बच्चे दोबारा स्कूल जा सके और उनकी उपस्थिति बरकरार रहे। कमियों को दूर करने के लिए अभिभावकों और शिक्षकों का समर्थन भी जरूरी है।

साथ ही उनको जरूरी उपकरण उपलब्ध कराना भी आवश्यक है। इसके अलावा यह भी सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि स्कूलों में बच्चों को एक सुरक्षित और मददगार वातावरण दिया जाए, जिससे सभी बच्चों को सीखने के लिए अनुकूल माहौल और पूरा मौका मिल सके।