प्रतीकात्मक तस्वीर: आईस्टॉक 
विकास

गेवरा-पेंड्रा रेलवे प्रोजेक्ट: पर्यावरण पर न्यूनतम प्रभाव के साथ किया जा रहा विकास –दावा

रिपोर्ट के मुताबिक परियोजना को इस तरह से आगे बढ़ाया जा रहा है कि निर्माण कार्य तेज और प्रभावी हो, साथ ही पर्यावरण को भी कम से कम नुकसान पहुंचे

Susan Chacko, Lalit Maurya

छत्तीसगढ़ के पेंड्रा से गेवरा रोड तक बन रही नई रेलवे लाइन का निर्माण तय समयसीमा के अनुरूप तेजी से आगे बढ़ रहा है। जनवरी 2025 तक परियोजना का 90 फीसदी से अधिक मिट्टी की भराई और संरचनात्मक कार्य पूरा हो चुका है या अंतिम चरण में है।

यह जानकारी छत्तीसगढ़ ईस्ट-वेस्ट रेलवे लिमिटेड और इरकॉन इंटरनेशनल लिमिटेड द्वारा 15 अप्रैल 2025 को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) में दाखिल रिपोर्ट में दी गई है।

रिपोर्ट के अनुसार परियोजना को इस तरह से आगे बढ़ाया जा रहा है कि निर्माण कार्य तेज और प्रभावी हो, साथ ही पर्यावरण को भी कम से कम नुकसान पहुंचे। इससे कोरबा क्षेत्र से कोयले का परिवहन सुचारु और बिना बाधा के किया जा सकेगा।

इस परियोजना का उद्देश्य उत्तरी छत्तीसगढ़ में बेहतर परिवहन व्यवस्था उपलब्ध कराना और कोरबा क्षेत्र से कोयले के परिवहन को सुगम बनाना है। रिपोर्ट के अनुसार, गेवरा रोड–चांपा ब्रांच लाइन पहले ही दबाव का सामना कर रही है और बढ़ती मांग के मद्देनजर यह अब पर्याप्त नहीं रह गई है, खासकर उत्तर-पश्चिम और मध्य भारत के पावर प्लांट्स के लिए कोयले की मांग बढ़ रही है।

दिसंबर 2025 तक पूरी हो जाएगी परियोजना

रिपोर्ट में कहा गया कि भूमि अधिग्रहण, पर्यावरणीय मंजूरी और नियमों से जुड़ी चुनौतियों के बावजूद, परियोजना अपने तय लक्ष्य के अनुसार दिसंबर 2025 तक पूरी हो जाएगी। अब तक इस परियोजना पर 4,304.72 करोड़ रुपए खर्च हो चुके हैं, जबकि परियोजना की प्रारंभिक लागत 4,970.11 करोड़ रुपए से बढ़कर 7,448.52 करोड़ रुपए तक पहुंच गई है। लागत में यह बढ़ोतरी मुख्य रूप से वन्यजीव संरक्षण और अन्य नियामकीय जरूरतों के चलते हुई है।

रिपोर्ट में यह भी स्पष्ट किया गया कि मौजूदा मार्ग के स्थान पर किसी वैकल्पिक मार्ग का चयन व्यावहारिक नहीं है। चंपा-बिलासपुर मार्ग का गहन मूल्यांकन किया गया है, लेकिन बिलासपुर यार्ड में भारी भीड़भाड़ के चलते यह व्यवहारिक नहीं है। यह यार्ड एक महत्वपूर्ण रेलवे जंक्शन है जो पहले ही झारसुगुड़ा, रायगढ़ और कोरबा जैसे औद्योगिक केंद्रों से आने वाले भारी ट्रैफिक को संभाल रहा है।

इसी तरह बिलासपुर–अनूपपुर मार्ग भी लगातार ट्रैफिक के दबाव में रहने के कारण अनुपयुक्त बना हुआ है। 

रिपोर्ट में कहा गया कि यह परियोजना छत्तीसगढ़ सरकार, इरकॉन और साउथ ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड (एसईसीएल) द्वारा संचालित है और बैंक फंडेड है। अब परियोजना की दिशा या मार्ग में कोई भी बदलाव न केवल लागत को और बढ़ाएगा, बल्कि इसके समय पर पूरा होने में भी बड़ी बाधा बनेगा। साथ ही, नए मार्ग के लिए फिर से पर्यावरणीय मंजूरी लेनी होगी, जिससे देरी और कानूनी अड़चनें और बढ़ जाएंगी।

रिपोर्ट के मुताबिक मौजूदा मार्ग का चयन सभी संभावनाओं पर विचार करने के बाद किया गया है, क्योंकि इससे वन भूमि पर न्यूनतम असर पड़ेगा और पर्यावरणीय जोखिम भी कम हैं। इसलिए इसे सबसे व्यवहार्य विकल्प के रूप में चुना गया है।