विकास

2018 में हर रोज तोड़े गए 114 घर, 2 लाख लोग हुए बेघर : रिपोर्ट

हाउसिंग एंड लैंड राइट्स नेटवर्क की स्टडी रिपोर्ट में कहा गया है कि स्मार्ट सिटी, हाईवे जैसी परियोजनाओं की वजह से तोड़फोड़ की गई

Raju Sajwan

नई दिल्ली. अलग-अलग परियोजनाओं को पूरा करने के लिए साल 2018 में 41730 घर तोड़े गए और 202233 लोग बेघर हो गए। हाउसिंग एंड लैंड राइट्स नेटवर्क (एचएलआरएन) की एक रिपोर्ट में यह दावा किया गया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि ये वो आंकड़े हैं, जिनके बारे में उन्हें पता चला है, वर्ना बेघर होने वाले लोगों की संख्या इससे अधिक हो सकती है।

मंगलवार को दिल्ली में जारी रिपोर्ट में बताया गया कि 47 फीसदी लोगों को अतिक्रमण या शहर के सौंदर्यीकरण के नाम पर हटाया गया, जबकि लगभग 26 फीसदी लोगों को शहर के बुनियादी ढांचे (इंफ्रास्ट्रक्चर) में सुधार पर हटाया गया। लगभग 20 फीसदी लोगों को पर्यावरण, वन एवं वन्य संरक्षण संबंधी परियोजनाओं को हटाया गया। इसके अलावा 8 फीसदी लोगों को यह कहकर हटाया गया कि उस क्षेत्र में विपदा संबंधी प्रबंधन करने हैं।

रिपोर्ट के मुताबिक, 2018 में भारत में जो भी विस्थापन हुए, वे असाधारण या विषम परिस्थितियों के कारण नहीं किए गए, जैसा कि संयुक्त राष्ट्र द्वारा तय किया गया है। संयुक्त राष्ट्र ने कहा है कि विकास पर आधारित विस्थापन कुछ विशेष परिस्थितियों में ही किया जाए।

2018 में विस्थापन का एक बड़ा कारण एनडीए सरकार की बहुचर्चित योजना स्मार्ट सिटी मिशन रहा। रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकार देश में 100 स्मार्ट सिटी बनाने की योजना पर काम कर रही है, लेकिन इसमें 34 शहरों में घरों को तोड़ा गया, इससे कितने लोग प्रभावित हुए इसका सही आंकलन नहीं किया जा सके, लेकिन जो मामले रिपोर्ट हुए हैं, उनके मुताबिक स्मार्ट सिटी परियोजनाओं की वजह से 17700 लोग बेघर हो गए।

रिपोर्ट में कहा गया है कि ज्यादातर मामलों में प्रशासन ने तोड़फोड़ से पहले कोई सूचना नहीं दी गई। चैन्नई में तोड़फोड़ के 70 फीसदी मामले बच्चों की परीक्षा शुरू होने से पहले किए गए, जिससे उनकी पढ़ाई प्रभावित हुई। इस तरह के मामले दूसरे शहरों के भी हैं।

एचएलआरएन ने कहा कि ज्यादातर मामलों में पुनर्वास की व्यवस्था नहीं की गई और तोड़फोड़ के बाद लोग इधर-उधर भटकते रहे। संस्था के विश्लेषण के मुताबिक केवल 53 मामलों में पुनर्वास की व्यवस्था की गई और केवल 2 फीसदी मामलों में मुआवजा दिया गया। चैन्नई, दिल्ली व मुंबई में हुए विस्थापन के मामलों में प्रशासन की ओर से कोई सहयोग नहीं किया गया। आवास के लिए पात्रता व वैधता की कड़ी शर्तों के कारण विस्थापित लोगों को घर नहीं मल पाया।

रिपोर्ट में दावा किया गया है कि देश में लगभग 1.13 करोड़ लोगों पर बेघर होने का खतरा मंडरा रहा है। इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं, वन एवं वन्य जीव संरक्षण, नदी नालों के संरक्षण आदि की वजह से यह स्थिति पैदा हुई है। एचएलआरएन ने कहा कि अध्ययन के दौरान पाया गया कि लगभग 27 मामले ऐसे हैं, जिसमें अदालत की वजह से घर तोड़े गए, लेकिन प्रशासन की ओर से जरूरी सावधानी नहीं बरती गई।