विकास

दुनिया में हर दूसरा सबसे गरीब इंसान है एक बच्चा

विश्व बैंक और यूनिसेफ द्वारा जारी नए आंकलन के अनुसार, भारत में करीब 5.2 करोड़ बच्चे अत्यंत गरीबी में जीवन बसर करने को मजबूर हैं

Richard Mahapatra

दुनिया में बेहद गरीबी यानी प्रतिदिन 2.15 डॉलर से भी कम पर अपना जीवन गुजारने वाली आबादी में बच्चों की संख्या तेजी से बढ़ रही है।

विश्व बैंक और यूनिसेफ द्वारा किए नए विश्लेषण से पता चला है कि दुनिया में अत्यंत गरीबी की मार झेल रहे लोगों में आधे से ज्यादा यानी 52.5 फीसदी बच्चे हैं। सीधे शब्दों में कहें तो अत्यधिक गरीबी में रहने वाला हर दूसरा इंसान, एक बच्चा है।

इतना ही नहीं आंकड़े दर्शाते हैं कि अत्यंत गरीबी में जीवन बसर करने वालों में बच्चों का अनुपात लगातर बढ़ रहा है। इस बारे में जारी रिपोर्ट के मुताबिक जहां 2013 में अत्यंत गरीबी में गुजरा करने वालों में बच्चों की आबादी 47.3 फीसदी थी वो 2022 में बढ़कर 52.5 फीसदी पर पहुंच गई है। इसका मतलब है कि समय के साथ गरीबी की मार झेल रहे लोगों में बच्चों की हिस्सेदारी तेजी से बढ़ रही है।

गौरतलब है कि यह इन एजेंसियों द्वारा किया गया तीसरा मूल्यांकन है। इससे पहले पिछले दो विश्लेषण 2016 और 2020 में प्रकाशित किए गए थे। वहीं सितंबर 2022 के मध्य में वैश्विक गरीबी के लिए एक नई सीमा पेश की गई थी। इसे नई वैश्विक गरीबी रेखा को अपनाते हुए वर्ल्ड बैंक ने भी अपने गरीबी और असमानता को मापने के लिए बनाए प्लेटफार्म पर भी आंकड़ों को अपडेट किया है। बच्चों में व्याप्त गरीबी का यह नवीनतम मूल्यांकन 2.15 डॉलर की इस नई गरीबी रेखा पर आधारित है।

जैसा कि आकलन कहता है वयस्कों की तुलना में गरीबी बच्चों को "अनुपातहीन रूप से" कहीं ज्यादा जकड़ रही है। वैश्विक स्तर पर 2022 में जहां बच्चों की 15.9 फीसदी ऐसे घरों में रह रही थी जो बेहद गरीबी का शिकार थे। वहीं वयस्कों में यह आंकड़ा केवल 6.6 फीसदी था।

रिपोर्ट की मानें तो “बच्चों के अत्यधिक गरीबी में रहने की आशंका वयस्कों की तुलना में दोगुनी से भी ज्यादा है। वे अत्यधिक गरीबी का सामना कर रहे आधे से ज्यादा लोगों में शामिल हैं, जबकि आबादी में उनकी हिस्सेदारी केवल 31 फीसदी ही है।

यदि भारत से जुड़े आंकड़ों को देखें तो देश में 11.5 फीसदी बच्चे बेहद गरीब घरों में रह रहे हैं। यदि कुल आंकड़े को देखें तो देश में गरीबी में जीवन व्यापन करने वाले बच्चों का कुल आंकड़ा करीब 5.2 करोड़ है।

हैरानी की बात है कि पांच वर्ष से छोटी उम्र के बच्चों में गरीबी की दर सबसे अधिक है। आंकड़ों के अनुसार अत्यधिक गरीबी की मार झेल रहे घरों में रहने वाले करीब 18.3 फीसदी यानी 9.9 करोड़ बच्चों की उम्र पांच साल या उससे कम थी।

विश्लेषण में यह भी सामने आया है कि 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को 2.15 डॉलर की गरीबी रेखा में रहने पर वयस्कों की तुलना में गरीबी में बड़े अंतर का सामना करना पड़ता है। विशेष रूप से, बच्चों के लिए अंतर 5.1 फीसदी है, जबकि वयस्कों के लिए यह केवल 1.9 फीसदी दर्ज किया गया है। आसान शब्दों में कहें तो  वयस्कों की तुलना में बच्चे गरीबी से बचने से अधिक दूर हैं। वे अधिक बेहद गरीबी का सामना करते हैं। वहीं सबसे कम उम्र के बच्चों के लिए परिस्थितियों सबसे ज्यादा बदतर होने की आशंका है।

पिछले आकलन की तरह ही गरीबी की मार झेल रहे अधिकांश बच्चे, दो क्षेत्रों उप-सहारा अफ्रीका और दक्षिण एशिया में केंद्रित हैं। जहां उप-सहारा अफ्रीका में गरीबी की मार झेल रहे बच्चों की दर दुनिया में सबसे अधिक 40 फीसदी है। वहीं दक्षिण एशिया में, यह दर 9.7 फीसदी है। कुल मिलाकर कहें तो ये दोनों क्षेत्र दुनिया के 90 फीसदी बेहद गरीब बच्चों का घर हैं।

यह सही है कि बाल गरीबी में कमी आ रही थी, लेकिन कोविड-19 महामारी ने सुधार की इस गति पर ब्रेक लगा दिया है। 2013 से 2022 के बीच, दुनिया के करीब सभी हिस्सों में गरीबी की मार झेल रहे बच्चों में कमी आई है। विशेष रूप से पूर्वी एशिया और प्रशांत क्षेत्र के साथ-साथ दक्षिण एशिया में इसमें महत्वपूर्ण कमी दर्ज की गई है। आंकड़ों की मानें तो 2013 से 2019 के बीच करीब 6.33 करोड़ बच्चों को गरीबी के भंवर से निकालने में सफलता मिली है।

आकलन से पता चलता है कि 2020 में, जब महामारी की शुरूआत शुरू हुई, तो बच्चों में गरीबी की दर भी बढ़ गई थी, जिससे इसमें लगातार आती कमी का सिलसिला खत्म हो गया। हालांकि 2021 में, एक बार फिर से बाल गरीबी में कमी आने लगी, लेकिन यह कमी उतनी तेज नहीं थी, जितनी महामारी से पहले दर्ज की गई थी।

रिपोर्ट का कहना है कि, यदि कोविड-19 न होता तो 2013 से 2020 के बीच अत्यधिक गरीबी की मार झेल रहे बच्चों की संख्या में 6.84 करोड़ की कमी आने की उम्मीद थी, लेकिन वास्तव में महामारी के चलते केवल 2.92 करोड़ बच्चों को ही गरीबी के दलदल से बाहर निकाला जा सका।  

इस बारे में यूनिसेफ की कार्यकारी निदेशक कैथरीन रसेल का कहना है कि, "बाल गरीबी का बने रहना अत्यंत गरीबी उन्मूलन के वैश्विक लक्ष्य को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित करता है। सात साल पहले, दुनिया ने 2030 तक एसडीजी के तहत बच्चों में व्याप्त इस गरीबी को समाप्त करने का वादा किया था। हमने प्रगति की है, यह दिखाता है कि सही निवेश और दृढ़ संकल्प के साथ, लाखों बच्चों को गरीबी के दुष्चक्र से बाहर निकालना संभव है।"

वर्ल्ड बैंक में गरीबी और समानता के मामलों के वैश्विक निदेशक लुइस-फेलिप लोपेज-काल्वा, यह सुनिश्चित करने की तात्कालिकता पर बल देते हैं कि प्रत्येक बच्चे के पास गरीबी से बाहर निकलने का एक विश्वसनीय रास्ता हो, जिसे उन्हें गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, उचित पोषण, स्वास्थ्य देखभाल, सामाजिक सहायता, सुरक्षा और समान अवसर देकर पूरा किया जा सके।