हाउसिंग एंड लैंड राइट्स नेटवर्क (एचएलआरएन) की ताजा रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 2017-19 के दौरान करीब 5,68,000 लोग बलपूर्वक विस्थापित किए गए हैं। मंगलवार 18 अगस्त 2020 को जारी रिपोर्ट “वर्ष 2019 में भारत में जबरन बेदखली: एक राष्ट्रीय संकट” में बताया गया है कि पिछले तीन वर्षों के दौरान 1,17,770 से अधिक आवासों को उजाड़ा गया। इस दौरान औसतन 108 मकानों को प्रतिदिन उजाड़ा गया। दूसरे शब्दों में कहें तो रोज करीब 519 लोगों ने अपना घर खोया और हर घंटे 22 लोग जबरन बेदखल किए गए। वर्ष 2019 में कम से कम 22,250 घरों को उजाड़ा गया जिससे 1,07,600 से अधिक लोग विस्थापित हुए।
रिपोर्ट बताती है कि वर्तमान में लगभग डेढ़ करोड़ लोग बेदखली और विस्थापन के खतरे के बीच रह रहे हैं। एचएलआरएन के अनुसार, यह एक न्यूनतम अनुमान है और वास्तविक स्थिति का एक हिस्सा भर प्रदर्शित करते हैं। भारत में बेदखल और विस्थापित लोगों की कुल संख्या के साथ-साथ विस्थापन के खतरे में रहने वाले लोगों की संख्या लिखित आंकड़ों से अधिक होने की संभावना है। रिपोर्ट के अनुसार, जबरल बेदखली के लगभग सभी मामलों में राज्य के अधिकारियों ने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार मानकों द्वारा स्थापित उचित प्रक्रिया का पालन नहीं किया।
बेदखली के बहाने
सर्वाधिक विस्थापन या बेदखली (46 प्रतिशत) का कारण झुग्गी बस्ती को हटाना, अतिक्रमण हटाना और सौंदर्यीकरण अभियान को बताया गया। 27 प्रतिशत मामलों में विस्थापन का कारण बुनियादी ढांचा और अस्थायी विकास परियोजनाएं रहीं। 17 प्रतिशत मामलों में पर्यावरणीय परियोजनाओं, वन संरक्षण और वन्यजीव संरक्षण का हवाला दिया गया। सात प्रतिशत विस्थापन की वजह आपदा प्रबंधन के प्रयास और तीन प्रतिशत विस्थापन की वजह अन्य कारण (जैसे राजनीतिक रैली) बताए गए।
पुनर्वास केवल 26 प्रतिशत
एचएलआरएन के अनुसार, 2019 में बेदखली के दस्तावेजीकृत मामलों में केवल 26 प्रतिशत मामलों में पुनर्वास किया गया। अधिकांश मामलों में पुनर्वास के अभाव में प्रभावित व्यक्तियों को अपने वैकल्पिक आवास की व्यवस्था खुद करनी पड़ी अथवा उन्हें बेघर ही रहना पड़ा। जिन लोगों का राज्य सरकारों द्वारा किसी प्रकार का पुनर्वास प्राप्त हुआ, उनका पुनर्वास दूरदराज के इलाकों में किया गया। ये इलाके आवश्यक नागरिक व बुनियादी सामाजिक सुविधाओं से वंचित थे। बेदखली के कारण बच्चों, महिलाओं, विक्लांग व्यक्तियों, बुजुर्गों, दलितों, अनुसूचित जनजातियों और हाशिए पर रहने वाले समूहों को सबसे अधिक नुकसान उठाना पड़ा। रिपोर्ट के अनुसार, 2019 में उच्च न्यायालयों, स्टेट कोर्ट और नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के आदेश से 20,500 से अधिक लोग विस्थापित हो गए।