विकास

सार्वजनिक स्थानों पर मूर्ति या संरचना के निर्माण की अनुमति नहीं दे सकती नगरपालिकाएं: उच्च न्यायालय

Susan Chacko, Lalit Maurya

आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय ने 30 अगस्त, 2022 को दिए अपने आदेश में स्पष्ट कर दिया है कि नगर निगम या नगरपालिकाएं सार्वजनिक सड़कों, फुटपाथों और अन्य सार्वजनिक स्थानों पर किसी भी मूर्ति की स्थापना या संरचना के निर्माण की अनुमति नहीं दे सकती हैं। यहां तक ​​कि अगर इस सन्दर्भ में कोई अनुमति पहले दी गई है, जिसके लिए अब कोई कानून बनाया जा रहा है, तो वो भी सुप्रीम कोर्ट द्वारा 18 फरवरी, 2013 को दिए आदेश की अवहेलना नहीं कर सकता।

गौरतलब है कि सर्वोच्च न्यायलय ने सभी राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों को निर्देश दिया था कि वे सार्वजनिक सड़कों, फुटपाथों और अन्य सार्वजनिक स्थानों पर किसी भी मूर्ति या अन्य संरचना के निर्माण की अनुमति न दें।

न्यायमूर्ति रवि नाथ तिलहरी द्वारा दिया गया यह निर्णय, 2022 में सबमिट एक रिट याचिका (संख्या 27036) के जवाब में था। अपनी इस याचिका में याचिकाकर्ता ने डॉ वाई एस राजशेखर रेड्डी की प्रतिमा की स्थापना की अनुमति देने के लिए नगर प्रशासन और शहरी विकास प्राधिकरण की ओर से की गई कार्रवाई पर सवाल उठाया था। गौरतलब है कि यह मूर्ति पलनाडु जिले के नरसरावपेट में स्थित है। इस क्षेत्र में इस तरह की अन्य दस संरचनाएं भी हैं।

इस मामले में आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय ने नगर प्रशासन और शहरी विकास विभाग के प्रमुख सचिव और पलनाडु के जिला कलेक्टर को मामले की तफ्तीश करने के साथ ही यह सुनिश्चित करने का भी निर्देश दिया है कि कार्रवाई में 18 जनवरी, 2013 को दिए सुप्रीम कोर्ट के आदेश का कोई उल्लंघन नहीं होना चाहिए।

निजी संस्थाओं को जमीन नीलामी कर सकती है सिडको: बॉम्बे हाईकोर्ट

बॉम्बे हाईकोर्ट ने अपने 30 अगस्त, 2022 को दिए आदेश में स्पष्ट कर दिया है कि सिटी एंड इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट कॉरपोरेशन ऑफ महाराष्ट्र (सिडको) के पास विकास के लिए किसी भी निजी जमीन की नीलाम करने की शक्ति है।

गौरतलब है कि उच्च न्यायालय का 127 पेजों का यह निर्णय दो जनहित याचिकाओं के जवाब में आया है। जिसमें नवी मुंबई नगर निगम (एनएमएमसी) द्वारा सार्वजनिक उद्देश्य के लिए भूमि के कुछ भूखंडों के आरक्षण का मुद्दा उठाया गया था। सिडको नवी मुंबई क्षेत्र के लिए गठित एक नया नगर विकास प्राधिकरण है। इस मामले में याचिकाकर्ताओं का तर्क था कि प्रस्तावित आरक्षण के मद्देनजर, इन भूमियों को आवासीय और वाणिज्यिक उद्देश्यों के लिए सिडको द्वारा आबंटित नहीं किया जा सकता है।

इस बारे में सिडको का कहना है कि जो भूमि नगर निगम द्वारा आरक्षित है, वास्तव में, उस भूमि का हक सिडको के पास निहित हैं। ऐसे में सिडको को महाराष्ट्र क्षेत्रीय और नगर नियोजन अधिनियम, 1966 के प्रावधानों के तहत इन जमीनों को विकसित और नीलाम करने के कानूनी अधिकार दिए गए है।

एनजीटी ने राजस्थान सरकार को दिए ओरण वन स्थिति पर रिपोर्ट दाखिल करने के निर्देश

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने अपने 30 अगस्त, 2022 को दिए आदेश में राजस्थान सरकार को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जारी आदेशों का कड़ाई से पालन करने के निर्देश दिए हैं। साथ ही न्यायलय ने सरकार को राजस्थान के भीतर ओरण वन की वर्तमान स्थिति पर भी रिपोर्ट दाखिल का निर्देश दिया है।

इस मामले में आवेदक (श्री देग्रे ओरण मंदिर और ओरण विकास संस्थान) ने 7 अक्टूबर, 2020 को एनजीटी के समक्ष दिए अपने आवेदन में डीम्ड वन भूमि के गैर-वानिकी सम्बन्धी अवैध उपयोग का मुद्दा उठाया था। यह पवित्र वन, जैसलमेर के सावंत और भीमसर गांव में है।

आरोप है कि वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 और जैविक विविधता अधिनियम, 2002 के साथ सर्वोच्च न्यायलय द्वारा दिए आदेश को ताक पर रख इस वन क्षेत्र में दो नई ट्रांसमिशन लाइनें और ग्रिड सबस्टेशन स्थापित किए जा रहे हैं। 

बंद करने के आदेश के बावजूद चल रही थी गुड़ इकाई, कोर्ट ने एमपीसीबी से मांगी रिपोर्ट

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल की पश्चिमी खंडपीठ ने महाराष्ट्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (एमपीसीबी) को गुड़ संयंत्र के संचालन पर एक रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है। मामला उस्मानाबाद जिले की कल्लम तालुका के मोहा गांव का है।

इस बारे में बाबासाहेब महादेव पाटिल द्वारा एनजीटी में मामला दायर किया गया था, जिसमें उन्होंने मेसर्स शिक्षण महर्षि ज्ञानदेव मोहेकर एग्रो इंडस्ट्रीज लिमिटेड पर एमपीसीबी द्वारा जारी दिशा-निर्देशों का पालन नहीं करने का आरोप लगाया था। उनका आरोप है कि इस संयंत्र के कारण भारी प्रदूषण हो रहा है।

अदालत को यह भी जानकारी दी गई है कि एमपीसीबी ने 19 जुलाई, 2022 को इसे बंद करने का आदेश दिया था, लेकिन इसके बावजूद इस इकाई को बंद नहीं किया गया है।