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खाली पड़े हैं उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड में 40 फीसदी पद: एनजीटी ने जारी किया नोटिस

Susan Chacko, Lalit Maurya

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (यूपीपीसीबी) में अधिकारियों के पद खाली होने के आरोप पर कार्रवाई करते हुए राज्य सरकार और उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (यूपीपीसीबी) को नोटिस जारी करने का निर्देश दिया है।

अपने आदेश में एनजीटी ने कहा कि, "यूपीपीसीबी के प्रदर्शन का पर्यावरण कानूनों को लागू करने पर सीधा प्रभाव पड़ता है।" कोर्ट ने इस मामले में अगली सुनवाई के लिए 14 दिसंबर, 2023 की तारीख दी है।

गौरतलब है कि इस मामले में आवेदक वरुण गुलाटी ने यूपीपीसीबी में अधिकारियों के खाली पदों का मुद्दा एनजीटी में उठाया था। उन्होंने उल्लेख किया है कि 732 स्वीकृत पदों में से 293 वर्तमान में खाली हैं, जिसका अर्थ है कि 40 फीसदी पद रिक्त पड़े हैं। उनके मुताबिक अधिकारियों की यह कमी यूपीपीसीबी के कामकाज को प्रभावित कर रही है।

क्या साफ करने के बाद पानी का उपयोग कर रहा है एक्मे फॉर्मूलेशन, एनजीटी ने मांगा स्पष्टीकरण

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने हिमाचल प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (एचपीपीसीबी) से इस बारे में स्पष्टीकरण मांगा है कि एक्मे फॉर्मूलेशन साफ करने के बाद अपशिष्ट जल का निपटान कैसे करता है। मामला हिमाचल प्रदेश में सोलन के नालागढ़ का है।

गौरतलब है कि इस मामले में प्रारंभिक शिकायत एक्मे फॉर्मूलेशन लिमिटेड द्वारा औद्योगिक कचरे को खुले में डालने और नालागढ़ के चौकीवाला में विस्तार से संबंधित थी, जो पर्यावरण नियमों का उल्लंघन है।

इस मामले में ट्रिब्यूनल ने 16 मार्च, 2023 को एक संयुक्त समिति का गठन किया था और उसे की गई कार्रवाइयों पर एक रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया। आठ जून 2023 को समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि इस यूनिट के आस-पास के क्षेत्रों में अपशिष्ट जल का कोई निर्वहन नहीं देखा गया।

हालांकि एक नवंबर, 2022 को इसके संचालन के लिए दी गई सहमति और 23 सितंबर, 2022 को स्थापना (विस्तार) की सहमति में इस बात का उल्लेख किया गया है, कि साफ किए पानी का उपयोग सिंचाई और बागवानी के लिए किया जाएगा।

एनजीटी ने 25 सितंबर 2023 को, संयुक्त समिति की रिपोर्ट पर विचार करते हुए हिमाचल प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (एचपीपीसीबी) के पर्यावरण अभियंता को 15 दिसंबर, 2023 को होने वाली अगली सुनवाई में व्यक्तिगत रूप से पेश होने का आदेश दिया है।

एनजीटी ने संयुक्त समिति को दिया दून विधानसभा में अवैध खनन की जांच का निर्देश

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने दून विधानसभा क्षेत्र में चल रहे अवैध खनन के आरोपों की जांच के लिए एक संयुक्त समिति का गठित करने का निर्देश दिया है। इस समिति में उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सदस्य सचिव के साथ-साथ केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सचिव, और देहरादून के जिलाधिकारी शामिल होंगें। जांच में देहरादून के जिलाधिकारी एक नोडल एजेंसी के रूप में कार्य करेंगे।

कोर्ट ने समिति साइट का दौरा करने के साथ पर्यावरण सम्बन्धी कानूनों के उल्लंघन की जांच का निर्देश दिया है। साथ ही यह समिति अगले आठ सप्ताह में इसकी बहाली के उपायों से सम्बंधित कार्रवाई रिपोर्ट कोर्ट में प्रस्तुत करेगी। 

गौरतलब है कि कोर्ट द्वारा यह मामला दून विधानसभा क्षेत्र में अवैध खनन के बारे में छपी दैनिक ट्रिब्यून की एक समाचार रिपोर्ट के आधार पर स्वतः दायर किया था। दावा है कि इस अवैध खनन ने हांडाकुंडी गांव में सड़कों और बिजली के बुनियादी ढांचे को गंभीर नुकसान पहुंचाया है, जो दून विधानसभा क्षेत्र में सुनेर पंचायत का हिस्सा है।

यह गांव सिरसा नदी के किनारे स्थित है जो कथित तौर पर अवैध खनन का केंद्र बन गया है। इससे ग्रामीण प्रभावित हो रहे हैं, साथ ही पानी के पाइप और बिजली के खंभे भी क्षतिग्रस्त हो गए हैं। इतना ही नहीं इसकी वजह से सड़कों को भी नुकसान पहुंचा है।

उक्त गतिविधि पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 के तहत एक फरवरी, 1989 को जारी दून घाटी अधिसूचना में निर्धारित नियमों का उल्लंघन कर रही है। अधिसूचना दून घाटी में उद्योगों, खनन कार्यों और अन्य विकास संबंधी गतिविधियों के स्थान को प्रतिबंधित करती है। उक्त अधिसूचना के अनुसार, किसी भी खनन गतिविधि को शुरू करने से पहले पर्यावरण और वन मंत्रालय (एमओईएफ) से मंजूरी लेना आवश्यक है।

अदालत ने उजागर किया है यह मुद्दे पर्यावरण और पर्यावरण कानूनों, विशेष रूप से एक फरवरी, 1989 की दून वैली अधिसूचना के उल्लंघन के बारे में महत्वपूर्ण चिंताएं पैदा करती हैं।