नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के न्यायमूर्ति आदर्श कुमार गोयल और न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल की पीठ का कहना है कि हिमाचल प्रदेश विकास योजना का मसौदा अवैध है और राज्य के पास न्यायाधिकरण के आदेश को रद्द करने या अनदेखा करने का कोई अधिकार नहीं है। यह आदेश एनजीटी की प्रधान पीठ ने 14 अक्टूबर 2022 को पारित किया है।
गौरतलब है कि इस मामले में योगेंद्र मोहन सेनगुप्ता ने एनजीटी के समक्ष 20 अप्रैल, 2022 को आवेदन दायर किया था। अपने आवेदन में उन्होंने हिमाचल प्रदेश नगर एवं ग्राम नियोजन विभाग द्वारा तैयार विकास योजना, 2041 के मसौदे को इस आधार पर चुनौती दी थी कि ऐसी योजना सतत विकास के सिद्धांतों के विपरीत है। यह योजना पर्यावरण के लिए विनाशकारी है और सार्वजनिक सुरक्षा के हित में नहीं है।
इस बारे में एनजीटी ने 12 मई, 2022 को कहा था कि पहली दृष्टि में विकास योजना का यह मसौदा, न्यायाधिकरण के आदेशों का उल्लंघन करता है। इस मामले में हिमाचल सरकार को नोटिस भी जारी किया गया था और मसौदा योजना के अनुसरण में आगे कदम उठाने के खिलाफ एक अंतरिम निषेधाज्ञा दी गई थी।
इस बारे में हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा 20 जुलाई, 2022 को दायर अपने जवाबी हलफनामे में कहा था कि एनजीटी के आदेशों को राज्य अपनी विधायी शक्ति के प्रयोग में अनदेखा कर सकता है। इस पर एनजीटी ने 14 अक्टूबर, 2022 को दिए अपने आदेश में कहा है कि राज्य के रुख को बरकरार नहीं रखा जा सकता और एक बार ट्रिब्यूनल ने मामले पर फैसला सुना दिया है, तो उसे अनदेखा नहीं कर सकते।
पश्चिमी घाट पर्यावरण संवेदनशील क्षेत्र पर अपनी रिपोर्ट के लिए समिति ने एनजीटी से मांगा और समय
पश्चिमी घाट इको-सेंसिटिव जोन पर अपनी रिपोर्ट सबमिट करने के लिए पर्यावरण मंत्रालय द्वारा गठित समिति ने एनजीटी से और समय मांगा है। इस बारे में 14 अक्टूबर, 2022 को एनजीटी में दायर रिपोर्ट में कहा गया है कि पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने पश्चिमी घाट क्षेत्र में सम्बंधित राज्य सरकारों को इस क्षेत्र को इको-सेंसिटिव जोन घोषित करने पर एकमत करने के लिए सभी प्रयास किए हैं।
गौरतलब है कि इस मामले में 18 अप्रैल, 2022 को पूर्व-महानिदेशक वन और विशेष सचिव की अध्यक्षता में एक समिति गठित की थी, जो जल्द से जल्द अपनी अंतिम सिफारिशें कोर्ट में सबमिट करेगी।
यह मामला पश्चिमी घाट इको-सेंसिटिव जोन से जुड़ा है, जिसके संरक्षण और बहाली के लिए इसे इको-सेंसिटिव जोन घोषित किया जाना है। इस मामले में 18 अप्रैल को एक समिति गठित की गई थी। इस समिति का मुख्य काम छह राज्य सरकारों (गुजरात, महाराष्ट्र, गोवा, कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु) द्वारा इस बारे में दिए सुझावों की जांच करना था।
गौरतलब है कि इस समिति को 30 मई, 2022 तक अपनी रिपोर्ट जमा करनी थी। हालांकि समिति समय सीमा के भीतर रिपोर्ट सबमिट नहीं कर पाई है। ऐसे में समिति ने अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए और समय मांगा है। मंत्रालय ने इस समिति का कार्यकाल 30 जून, 2023 तक के लिए बढ़ा दिया है।
समिति ने इस बारे में प्रत्यक्ष तौर पर जानकारी एकत्र करने के लिए मई 2022 के दौरान कर्नाटक और गोवा के पश्चिमी घाट क्षेत्रों में साइट का दौरा किया था। साथ ही समिति ने इस बारे में मुख्य सचिवों और संबंधित प्रधान सचिवों, केरल और महाराष्ट्र राज्य सरकारों के अन्य विभागीय प्रमुखों के साथ भी चर्चा की है।
प्रकाशम और कडप्पा में अवैध रेत खनन मामले का हुआ निपटारा
एनजीटी का कहना है कि अधिकारियों द्वारा दायर रिपोर्ट से पता चलता है कि कडप्पा जिले में बंदापल्ली और हसनपुरम की पहाड़ियों पर चलते अवैध उत्खनन और बजरी परिवहन को रोकने के लिए उपाय किए गए हैं।
इसमें पहाड़ी से किसी भी रूप में अवैध उत्खनन और परिवहन के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की चेतावनी देने के साथ चेतावनी बोर्ड लगाना शामिल था, क्योंकि वे सरकारी भूमि हैं। ट्रिब्यूनल ने आवेदन का निपटारा कर दिया है और कहा है इस मामले में आगे कार्रवाई की जरूरत नहीं है, सिवाय इसके कि अधिकारी इस मामले में नियमित निगरानी करें।
हापुड़ में प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों पर लगाया 52.6 लाख रुपए का जुर्माना, बंद करने के दिए आदेश
उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा कोर्ट में दायर रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रदूषण फैलाने वाली अवैध इकाइयों पर 52.6 लाख रुपए का जुर्माना लगाया गया है और इन उद्योगों के बिजली कनेक्शन काट दिए गए हैं। मामला उत्तर प्रदेश के हापुड़ में मसूरी गुलावती रोड का है। गौरतलब है कि एनजीटी के 4 फरवरी, 2022 को दिए आदेश पर उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा यह रिपोर्ट कोर्ट में दायर की गई है।
इस मामले में सलमान मिया ने एनजीटी के समक्ष दायर अपने आवेदन में आरोप लगाया कि हापुड़ के गांव चिवरा के क्षेत्र में अवैध तेजाब और रासायनिक कारखाने बिना लाइसेंस के चल रहे हैं जो खुले में ई-कचरा भी जला रहे हैं।