विकास

यमुना बाढ़ क्षेत्र में फार्म हाउस मामला, कोर्ट ने सरकार व आवेदकों से मांगा स्पष्टीकरण

कोर्ट ने आवेदकों को अपनी सम्पत्तियों के बारे में जानकारी का खुलासा करने को भी कहा है, साथ ही इस निर्माण के लिए क्या सक्षम प्राधिकारी से मंजूरी ली है, इसकी जानकारी भी मांगी है

Susan Chacko, Lalit Maurya

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने उत्तर प्रदेश सरकार को निर्देश दिया है कि वो कथित तौर पर गौतमबुद्ध नगर के यमुना बाढ़ क्षेत्र में स्थित सभी 50 आवेदकों की संपत्तियों का विवरण दाखिल करे। मामला उत्तर प्रदेश में नोएडा के गौतमबुद्ध नगर का है।

इसके साथ ही 11 मार्च, 2024 को दिए अपने आदेश में कोर्ट ने आवेदकों को अपनी सम्पत्तियों के बारे में जानकारी का खुलासा करने को भी कहा है। उन्हें भूमि का क्षेत्र, उसपर कितना निर्माण किया गया है, उस निर्माण की प्रकृति क्या है? साथ ही इस निर्माण के लिए क्या सक्षम प्राधिकारी से मंजूरी ली है तो इस बारे में विस्तृत विवरण साझा करने को कहा है।

इस मामले में अगली सुनवाई 21 मई, 2024 को होनी है। ऐसे में उत्तर प्रदेश सरकार और आवेदकों दोनों को ही यह विवरण इस सुनवाई से एक सप्ताह पहले कोर्ट में प्रस्तुत करना होगा।

गौरतलब है कि मूल आवेदन में आवेदकों ने दलील दी थी कि उनकी संपत्तियां उत्तर प्रदेश के गौतमबुद्धनगर जिले के विभिन्न गांवों में स्थित हैं। इनमें दोषपुर मंगरौली खादर, चक मंगरौला, असदुल्लापुर, छपरौली खादर, नंगली नंगला, नगली बहरामपुर और किदावली गांव शामिल हैं। उनका आरोप है कि 12 से 15 जुलाई, 2023 के बीच यमुना में आई बाढ़ के दौरान सीवेज, जानलेवा केमिकल्स युक्त कचरा और बदबूदार कीचड़ युक्त पानी उनके गांवों में प्रवेश कर गया था।

उनका तर्क है कि यह कोई प्राकृतिक आपदा नहीं बल्कि मानव निर्मित आपदा थी। इसे देखते हुए, आवेदकों ने अधिकारियों से बाढ़ के कारण उनकी संपत्तियों को हुए नुकसान का आकलन करने और उसके अनुसार मुआवजे का निर्देश देने का अनुरोध किया था।

इस मामले में गौतमबुद्ध नगर के जिला मजिस्ट्रेट ने पांच जनवरी, 2024 को एक रिपोर्ट प्रस्तुत की थी। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि यह घटना मानव निर्मित न होकर एक प्राकृतिक आपदा थी। राज्य के वकील की यह भी दलील है कि आवेदकों के पास फार्महाउस हैं और वे ग्रामीण नहीं हैं। इसके अलावा, यह भी दावा किया गया है कि इन फार्महाउसों को अवैध रूप से नदी के बाढ़ क्षेत्र में बनाया गया है।

सिधवां नहर प्रदूषण: लुधियाना नगर निगम की रिपोर्ट पर आपत्ति दर्ज करने के लिए आवेदक ने मांगा समय

लुधियाना नगर निगम ने 11 मार्च को एनजीटी को जानकारी दी है कि उसने सिधवां नहर की सफाई कर दी है और उसमें से कचरा हटा दिया है। याचिकाकर्ताओं में से एक ने इस बयान का उल्लेख किया है और रिपोर्ट पर आपत्ति दर्ज करने के लिए कोर्ट से एक सप्ताह का समय मांगा है। बता दें कि आवेदक इस रिपोर्ट से संतुष्ट नहीं थे।

इस मामले में अगली सुनवाई 14 मई 2024 को होनी है।

गौरतलब है कि आवेदक ने अपनी शिकायत में सिधवां नहर में होते प्रदूषण को लेकर चिंता जताई थी। आवेदक का कहना है कि लुधियाना में प्लास्टिक की थैलियों, पॉलिएस्टर से बने कपड़ों और अन्य गैर-बायोडिग्रेडेबल सामग्री की डंपिंग की वजह प्रदूषण हो रहा है। साथ ही उन्होंने इस नहर पर होते अतिक्रमण का भी मुद्दा उठाया था।

वहीं ट्रिब्यूनल द्वारा गठित संयुक्त समिति ने अपनी रिपोर्ट में जानकारी दी है कि उसे नहर के पानी में ठोस कचरा डाले जाने के सबूत मिले हैं। हालांकि लुधियाना नगर निगम ने अपनी इस रिपोर्ट में कोई संतोषजनक प्रतिक्रिया नहीं दी है और न ही इस समस्या के समाधान के लिए किसी प्रभावी कदम का खुलासा किया है।

नेत्रवती वाटरफ्रंट प्रोमेनेड परियोजना ने पर्यावरण सम्बन्धी नियमों का किया उल्लंघन, जांच के लिए समिति गठित

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने मंगलुरु में नेत्रावती वाटरफ्रंट प्रोमेनेड प्रोजेक्ट के खिलाफ लगाए आरोपों की जांच के लिए एक संयुक्त समिति के गठन का निर्देश दिया है। मामला कर्नाटक के मंगलुरु का है।

इस संयुक्त समिति में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी), मैंगलोर में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय का क्षेत्रीय कार्यालय, दक्षिण कन्नड़ मैंगलोर के जिला मजिस्ट्रेट और राष्ट्रीय तटीय अनुसंधान केंद्र (एनसीसीआर) के प्रतिनिधि शामिल होंगे।

यह समिति वास्तविक स्थिति की समीक्षा करने और क्या परियोजना के दौरान पर्यावरण से जुड़े किसी नियम का उल्लंघन हुआ है इसका आंकलन करने के लिए साइट का दौरा करेगी। इसके बाद समिति चेन्नई में एनजीटी की दक्षिणी बेंच के सामने अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करेगी।

गौरतलब है कि इस मामले में मूल आवेदन 26 जनवरी, 2024 को मंगलोरियन में प्रकाशित एक खबर और राष्ट्रीय पर्यावरण देखभाल महासंघ (एनईसीएफ) द्वारा भेजे गए पत्र के आधार पर स्वत: संज्ञान लेते हुए कोर्ट ने पंजीकृत किया है। यह पत्र 13 दिसंबर, 2023 को संबंधित सरकारी विभाग को भेजा गया था, जिसमें इस परियोजना के कार्यान्वयन के संबंध में पर्यावरण संबंधी नियमों के उल्लंघन पर प्रकाश डाला गया था।

इस खबर और पत्र दोनों में दावा किया गया कि नेत्रवती वाटरफ्रंट प्रोमेनेड परियोजना के कार्यान्वयन के दौरान पर्यावरण सम्बन्धी नियमों को ताक पर रखा गया था। कथित तौर पर, नेत्रावती के पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील नदी तटों के भीतर बुलडोजर का इस्तेमाल किया गया था। बता दें कि यह क्षेत्र अपने मैंग्रोव और अन्य पेड़ों के लिए जाना जाता है।

यह भी आरोप है कि मैंगलोर स्मार्ट सिटी लिमिटेड (एमएससीएल) ने साइकिल ट्रैक और पैदल पथ के लिए नौ मीटर जगह बनाने के लिए इंटरटाइडल जोन में पेड़ों को हटाने और मिट्टी डंप करने की कथित योजना बनाई थी। यह वो कुछ आरोप हैं जो नेत्रावती वॉटरफ्रंट प्रोमेनेड प्रोजेक्ट पर लगाए गए थे।