नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने छह फरवरी, 2024 को हिमाचल प्रदेश में हिमालय की शिवालिक रेंज में चल रही निर्माण गतिविधियों के आरोपों की जांच के लिए एक संयुक्त समिति गठित करने का निर्देश दिया है। यह निर्माण परियोजना सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय की है।
आवेदक का आरोप है कि यह परियोजना हिमालय की पारिस्थितिकी को नुकसान पहुंचा रही है। इस समिति में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी), पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, हिमाचल प्रदेश राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के साथ-साथ सिरमौर और शिमला उपायुक्त के प्रतिनिधि शामिल होंगें।
कोर्ट के आदेशानुसार यह समिति इस साइट का निरीक्षण करने के साथ-साथ आवेदक द्वारा लगाए आरोपों की जांच भी करेगी। साथ ही कोर्ट ने समिति को अगली सुनवाई से कम से कम एक पहले की गई कार्रवाई के साथ एक तथ्यात्मक रिपोर्ट प्रस्तुत करने को कहा है।
इस मामले में अगली सुनवाई 15 अप्रैल, 2024 को होगी। गौरतलब है कि इस आवेदन में राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 707 पर मौजूदा सिंगल-लेन पांवटा साहिब - गुमा खंड को पत्थरों का उपयोग करके दो-लेन सड़क में अपग्रेड करने के लिए किए गए निर्माण के बारे में शिकायत दर्ज कराई गई है। इस सड़क को अपग्रेड करने का काम सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय के आधीन है।
आवेदक का आरोप है कि ठेकेदार इस सड़क को अपग्रेड करने के दौरान हिमालयी पारिस्थितिकी और प्राकृतिक वनस्पति को नुकसान पहुंचा रहे हैं। उनका दावा है कि ठेकेदार सड़क के एक तरफ की पहाड़ियों को तोड़ रहें है और उससे पैदा हुआ बोल्डर, पत्थर और धूल सहित अन्य मलबा दूसरी ओर घाटी में डाल रहे हैं।
आरोप है कि पहाड़ी इलाके में ढलान पर 97 किलोमीटर लंबे हिस्से को बड़े पैमाने पर नुकसान पहुंचाया जा रहा है। इसकी वजह से वहां मौजूद प्राकृतिक वनस्पति, नदी नालों, बस्तियों और वन्य जीवन को पर असर पड़ रहा है।
यह भी दावा किया गया है कि वहां चीड़, देवदार सहित करोड़ों पेड़ नष्ट हो गए हैं, और हजारों छोटी-बड़ी नदी धाराएं मलबे के नीचे दब गई हैं या उन्होंने अपना रास्ता बदल लिया है।
आवेदक की ओर से पेश वकील ने दलील दी है कि इस परियोजना में एनएच 707 को छोटे खंडों में विभाजित करके ईआईए अधिसूचना 2006 के भाग सात (एफ) का लाभ उठाया है। इसकी मदद से उन्होंने इस परियोजना को 100 किलोमीटर से कम दिखाया है, जबकि वास्तव में यह परियोजना 103.55 किलोमीटर लम्बी है। इसके सबूत के तौर पर आवेदक के वकील ने सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय द्वारा 18 जुलाई, 2022 को जारी एक संचार का भी हवाला दिया है।
आवेदक ने विदेशी मांगुर के पालन, प्रजनन, परिवहन और आयात संबंधित प्रतिबंध पर मांगा स्पष्टीकरण
ओडिशा की एक सहकारी समिति, मां दुर्गा प्राइमरी फिशरमैन को-ऑपरेटिव सोसाइटी लिमिटेड ने एनजीटी का दरवाजा खटखटाया है। उन्होंने विदेशी मांगुर (क्लारियस गैरीपिनस) और देशी मांगुर प्रजातियों की पहचान में भ्रम को रोकने के लिए मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय से स्पष्ट दिशानिर्देशों तैयार करने का अनुरोध किया है।
गौरतलब है कि आवेदक ने इस मामले में विदेशी मांगुर और हाइब्रिड मांगुर के पालन, प्रजनन, परिवहन और आयात से संबंधित प्रतिबंध पर स्पष्टीकरण मांगा है।
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने छह फरवरी 2024 को सहकारी समिति (मां दुर्गा प्राइमरी फिशरमैन कंपनी को-ऑपरेटिव सोसाइटी) से आवश्यक प्रासंगिक दस्तावेज दाखिल करने का निर्देश दिया है।
इस मामले में अगली सुनवाई एक अप्रैल, 2024 को होगी।
तमिलनाडु वन विभाग ने संरक्षित क्षेत्रों के ऊपर से गुजरने वाली उड़ानों पर जताई आपत्ति, एनजीटी ने अधिकारियों से मांगी रिपोर्ट
टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी एक खबर में राज्य के संरक्षित क्षेत्रों के ऊपर से गुजरने वाली उड़ानों पर तमिलनाडु वन विभाग द्वारा आपत्ति जताए जाने के मामले को उजागर किया गया था। इस मामले में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने सात फरवरी 2024 को सुनवाई की।
खबर है कि एक चार्टर्ड हेलीकॉप्टर ने मुदुमलाई टाइगर रिजर्व (एमटीआर) और नीलगिरी में मुकुर्थी नेशनल पार्क के संरक्षित क्षेत्र के ऊपर से उड़ान भरी थी। इस खबर में हेलीकॉप्टरों और विमानों के लिए उड़ान मार्गों की योजना बनाते समय तमिलनाडु के जंगलों और संरक्षित क्षेत्रों से बचने के वन विभाग के रुख का भी उल्लेख किया गया था।
अपने आदेश में एनजीटी ने तमिलनाडु वन विभाग के प्रधान मुख्य वन संरक्षक, तमिलनाडु के मुख्य वन्यजीव वार्डन और नागरिक उड्डयन महानिदेशालय को नोटिस भेजने का निर्देश दिया है।
वहीं तमिलनाडु के प्रधान मुख्य वन संरक्षक और मुख्य वन्यजीव वार्डन द्वारा प्रस्तुत स्थिति रिपोर्ट में कहा गया है कि हेलीकॉप्टर ने आरक्षित वन क्षेत्र की सीमाओं के बाहर से उड़ान भरी थी।
इस मामले में रिपोर्ट के साथ तमिलनाडु वन विभाग के एक संचार को भी कोर्ट में सबमिट किया गया, जिसमें उच्च न्यायालय के एक आदेश का हवाला दिया गया है। यह आदेश राष्ट्रीय उद्यानों, बाघ अभयारण्यों के कोर और पक्षी अभयारण्यों के बफर जोन जैसे क्षेत्रों में उड़ानों को प्रतिबंधित करने वाले सर्वोच्च न्यायालय के दिशानिर्देशों को संदर्भित करता है।
अधिकारियों ने विस्तृत रिपोर्ट तैयार करने के लिए कोर्ट से अतिरिक्त समय की मांग की है।