केरल उच्च न्यायालय ने अपने 6 अक्टूबर, 2022 को दिए निर्देश में कहा है कि सुरक्षा मानकों का उल्लंघन करने वाले वाली टूरिस्ट बसों और वाहनों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए। ऐसे वाहन चालकों का ड्राइविंग लाइसेंस रद्द कर दिया जाना चाहिए। साथ ही कोर्ट का कहना है कि ऐसे वाहनों को दिए गए फिटनेस प्रमाण पत्र को भी सक्षम प्राधिकारी द्वारा रद्द कर दिया जाना चाहिए।
मामला केरल में वाली टूरिस्ट बसों और वाहनों के हादसों में शामिल होने का है। इन हादसों में यात्रियों और सड़क पर चल रहे लोगों को गंभीर चोटें आई थी। चूंकि सार्वजनिक स्थानों पर ऐसी टूरिस्ट बसों और वाहनों के उपयोग से यात्रियों और अन्य लोगों की सुरक्षा को खतरा पैदा हो सकता है, इसलिए भारत के सहायक सॉलिसिटर जनरल को सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय की ओर से तर्कों को संबोधित करने के लिए कहा गया था।
इस मामले में उच्च न्यायालय को सार्वजनिक स्थानों पर अनधिकृत एलईडी/लेजर/नियॉन लाइटों से सुसज्जित टूरिस्ट बसों और वाहनों की दुर्घटना के कुछ वीडियो क्लिप दिखाए गए थे। इस बारे में केरल उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति अनिल के नरेंद्रन और न्यायमूर्ति पी जी अजितकुमार का कहना है कि कोर्ट द्वारा 10 जनवरी, 2022 को दिए आदेश के बावजूद प्रवर्तन और राज्य पुलिस अधिकारी इस मामले को गंभीरता से नहीं ले रहे हैं और उन्होंने इसपर सख्त कदम उठाने के लिए कोई प्रयास नहीं किए हैं।
वहीं वरिष्ठ सरकारी वकील ने राज्य पुलिस प्रमुख से निर्देश प्राप्त करने के लिए कोर्ट से समय मांगा है। साथ ही उन्होंने परिवहन आयुक्त से त्रिशूर जिले के अंचुमूर्ति मंगलम में हुई दुर्घटना पर निर्देश प्राप्त करने के लिए भी और समय मांगा है।
वहीं भारत के उप सॉलिसिटर जनरल ने भी सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय सचिव से निर्देश प्राप्त करने के लिए कोर्ट से और समय देने की गुजारिश की है। जिससे व्लॉगर्स और अन्य लोगों के खिलाफ कार्रवाई की जा सके, जो यूट्यूब और अन्य ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर वीडियो अपलोड कर रहे हैं।
वहीं भारत के उप सॉलिसिटर जनरल ने भी सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय सचिव से निर्देश प्राप्त करने के लिए कोर्ट से और समय देने की गुजारिश की है। जिससे व्लॉगर्स और अन्य लोगों के खिलाफ कार्रवाई की जा सके, जो यूट्यूब और अन्य ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर इन वाहनों के वीडियो अपलोड कर रहे हैं।
जो सार्वजनिक स्थानों पर मोटर वाहनों के उपयोग को बढ़ावा दे रहा है जिससे सुरक्षा मानकों के उल्लंघन के साथ-साथ यात्रियों और सड़क उपयोग करने वाले अन्य लोगों की सुरक्षा के लिए खतरा पैदा कर सकता है।
सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से बुजुर्गों के कल्याण के चलाई जा रही योजनाओं पर मांगी जानकारी
सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से बुजुर्गों के कल्याण के लिए चलाई जा रही अपनी मौजूदा योजनाओं जैसे बुजुर्गों के लिए पेंशन, प्रत्येक जिले में वृद्धाश्रम और वृद्धावस्था देखभाल के संबंध में जानकारी देने का निर्देश दिया है।
यह जानकारी भारत के एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड को प्रस्तुत की जानी है। दो महीनों के भीतर सभी संबंधित राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से जानकारी एकत्र करने के बाद, केंद्र सरकार एक महीने में इसपर एक संशोधित स्थिति रिपोर्ट कोर्ट में दायर करेगी।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि राज्यों की इस संशोधित रिपोर्ट में माता-पिता और बुजुर्गों की देखभाल और कल्याण अधिनियम के कार्यान्वयन के संबंध में वर्तमान स्थिति का भी खुलासा होना चाहिए।
कोच्चि जल मेट्रो परियोजना पर एनजीटी में सबमिट की गई रिपोर्ट
कोच्चि जल मेट्रो परियोजना कोच्चि के आसपास के द्वीपीय समुदायों के लिए परिवहन का एक जरूरी साधन है। खासकर बाढ़ के दौरान जब परिवहन के अन्य साधन नहीं होते हैं, तो इनका ही सहारा होता है। यह बात कोच्चि मेट्रो रेल लिमिटेड के जल परिवहन महाप्रबंधक द्वारा एनजीटी के समक्ष दायर रिपोर्ट में कही गई है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि कोच्चि मेट्रो रेल लिमिटेड को केरल सरकार की ओर से 'कोच्चि वाटर मेट्रो प्रोजेक्ट' नाम की एक शहरी जल परिवहन परियोजना को शुरू करने का काम सौंपा गया था। कोच्चि जल मेट्रो परियोजना के तहत 38 जेटी को जोड़ने और 78 किलोमीटर में जेटी, बस टर्मिनल और मेट्रो नेटवर्क के बीच इंटर-मॉडल कनेक्टिविटी प्रदान करने के लिए है।
रिपोर्ट में कहा गया है, "परियोजना जलमार्ग से जुड़े क्षेत्रों के समग्र विकास के साथ-साथ लोगों को जोड़ने पर ध्यान देने के साथ शहर की संपूर्ण सार्वजनिक परिवहन प्रणाली के हिस्से के रूप में जलमार्ग प्रणाली को एकीकृत करने की कल्पना करती है।"
कोच्चि जल मेट्रो परियोजना के उच्च न्यायालय और मट्टनचेरी टर्मिनलों सहित नाव के टर्मिनलों के निर्माण के लिए आवश्यक मंजूरी को कोच्चि नगर निगम, केरल राज्य आर्द्रभूमि प्राधिकरण और केरल तटीय क्षेत्र प्रबंधन प्राधिकरण से प्राप्त हो गई है। इसी के साथ पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने 1 अक्टूबर, 2019 को इस परियोजना के लिए अपनी अंतिम मंजूरी दे दी है।