विकास

एनजीटी ने उप्पल चड्ढा हाइटेक डेवलपर्स पर लगाया 113.25 करोड़ रुपए का जुर्माना

Susan Chacko, Lalit Maurya

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने मैसर्स उप्पल चड्ढा हाई टेक डेवलपर्स प्राइवेट लिमिटेड को पर्यावरण नियमों की अनदेखी करने पर 113.25 करोड़ रुपए का जुर्माना लगाया है। मामला उत्तर प्रदेश में गौतम बुद्ध नगर की वेव सिटी का है, जहां निर्माण कार्यों में पर्यावरण नियमों की अनदेखी की गई थी।

ऐसे में कोर्ट ने 7 फरवरी, 2023 को दिए आदेश में डेवलपर को तीन महीने के भीतर जुर्माने की राशि उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (यूपीपीसीबी) के पास जमा करने का निर्देश दिया है। गौरतलब है कि इस राशि का उपयोग यूपीपीसीबी, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और गाजियाबाद जिला मजिस्ट्रेट की एक संयुक्त समिति की सिफारिश पर संबंधित क्षेत्र में पर्यावरण के कायाकल्प और बहाली के लिए किया जाएगा।

यह समिति तीन महीने के भीतर एक सुधारात्मक योजना तैयार करेगी और परियोजना प्रस्तावक द्वारा पर्यावरण मुआवजा जमा करने की तिथि से अगले छह महीने के भीतर इसपर काम पूरा करेगी। इस मामले में न्यायमूर्ति आदर्श कुमार गोयल और सुधीर अग्रवाल की पीठ ने अपने 180 पेजों के फैसले में कहा है कि यूपीपीसीबी इस उद्देश्य के लिए नोडल अथॉरिटी होगी।

इस मामले में गांव दुजाना परगना के महकार सिंह ने एनजीटी को दी अपनी शिकायत में कहा है कि मैसर्स उप्पल चड्ढा हाई टेक डेवलपर्स प्राइवेट लिमिटेड जिसने  वेव सिटी/हाई टेक सिटी विकसित की है वो ग्रामीणों और अन्य संबंधित अधिकारियों को बिना कोई सूचना दिए पेड़ों को काट रहा था, जिससे स्थानीय निवासियों को भारी नुकसान पहुंचा है।

पेड़ों को काटने के अलावा परियोजना प्रस्तावक पर बिना अनुमति के भू-जल दोहन और बिना किसी पर्यावरण मंजूरी और अनापत्ति प्रमाण पत्र के वाणिज्यिक और आवासीय टावरों के निर्माण का भी आरोप लगा है।

सांभर झील प्रबंधन मामले में संयुक्त समिति ने एनजीटी में सबमिट की रिपोर्ट

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) द्वारा 7 दिसंबर, 2022 को दिए आदेश पर गठित संयुक्त समिति ने सिफारिश की है कि सांभर झील प्रबंधन एजेंसी को केंद्रीय भूजल प्राधिकरण (सीजीडब्ल्यूए) के साथ मिलकर क्षेत्र में हो रहे भूजल दोहन का विस्तृत सर्वेक्षण करने के साथ पर्यावरण को हो रहे नुकसान के लिए भारी जुर्माना लगाना चाहिए।

साथ ही समिति ने सिफारिश की है कि सीजीडब्ल्यूए की एनओसी के बिना भूजल दोहन कर रही नमक रिफाइनरियों पर भी पर्यावरणीय जुर्माने का आकलन किया जाना चाहिए। गौरतलब है कि कोर्ट ने समिति को सांभर झील क्षेत्र में होते अतिक्रमण और बड़ी संख्या में अनधिकृत रूप से बोरवेल के उपयोग के मामले की जांच के निर्देश दिए थे।

अपनी रिपोर्ट में समिति ने सिफारिश की है कि पर्यावरण विभाग को स्टेट रिमोट सेंसिंग एप्लीकेशन सेंटर (एसआरएसएसी), जोधपुर द्वारा 1990 में सर्वे ऑफ इंडिया के साथ मिलकर तैयार किए मानचित्र में सुधार और उसकी वैधता की जांच करनी चाहिए।

इसके साथ ही राजस्व विभाग को सांभर साल्ट्स लिमिटेड के साथ मिलकर सांभर झील की सीमाओं को डिजिटाइज कर उसका मैप तैयार करना चाहिए जिससे भूमि संबंधी विवादों के निपटान में तेजी लाइ जा सके। समिति ने पर्यावरण विभाग और सांभर वेटलैंड एजेंसी को प्रतिबंधित गतिविधियों से निपटने वाले वेटलैंड्स नियम 2017 के प्रावधानों को लागू करने की भी बात कही है।

रिपोर्ट में राजस्थान राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को रिफाइनरियों द्वारा पैदा हो रहे कचरे के निपटान को ट्रैक करने के लिए एक प्रणाली स्थापित करने के विकल्प तलाशने के लिए भी कहा गया है।

समिति द्वारा दी गई एक अन्य सिफारिश में सांभर झील के आसपास लोगों को वैकल्पिक और अधिक आकर्षक कार्य देकर उनके पुनर्वास की योजना के संबंध में थी। यह रिपोर्ट 7 फरवरी, 2023 को एनजीटी की वेबसाइट पर अपलोड की गई है।

पर्यावरण के प्रति संवेदनशील दून घाटी क्षेत्र में नदी किनारे नहीं चलाया जा सकता स्टोन क्रशर, एनजीटी ने किया स्पष्ट

पर्यावरण के दृष्टिकोण से संवेदनशील दून घाटी क्षेत्र में खनन के लिए दी गई अनुमति हैरान करने वाली है। सुप्रीम कोर्ट में पर्यावरण मंत्रालय का स्पष्ट पक्ष दिया जा चुका है कि स्टोन क्रशर और खनन जैसी गतिविधियों को अनुमति नहीं दी जा सकती। सुप्रीम कोर्ट ने यह तर्क स्वीकार करते हुए इस संबंध में आदेश जारी किए हैं। आदेश के तहत खनन की तरह पर्यावरण संवेदी क्षेत्र में स्टोन क्रशर लगाने की अनुमति देना खतरनाक है। यह संबंधित क्षेत्र में अवैध खनन की आशंका को बढाता है।"

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने यह टिप्पणी उत्तराखंड के देहरादून जिले में विकासनगर तहसील के बालूवाला गांव में शीतला नदी किनारे मैसर्स बालाजी स्टोन क्रशर को दी गई पर्यावरण मंजूरी (ईसी) को रद्द करते हुए की है। साथ ही एनजीटी ने इस मामले में राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (पीसीबी) और देहरादून के जिलाधिकारी को आगे कार्रवाई करने का आदेश दिया है। 

एनजीटी ने संगरूर में भूजल प्रदूषण के दिए जांच के आदेश

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने समिति को संगरूर के आलोरख में भूजल प्रदूषण की जांच के आदेश दिए हैं। इस जांच के लिए केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, संगरूर के जिला मजिस्ट्रेट, लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग, पंजाब के मुख्य अभियंता और पंजाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सदस्य सचिव की एक संयुक्त समिति का गठन किया है। मामला पंजाब के संगरूर जिले में भिवानीगढ़ ब्लॉक के आलोरख का है।

कोर्ट ने कहा है कि दूषित क्षेत्र के उपचार और क्षेत्र में पीने योग्य पानी की आपूर्ति के मुद्दे पर विचार करने की आवश्यकता है। साथ ही यह सत्यापित करने की भी जरूरत है कि वहां कितने नलकूप दूषित हुए हैं।