विकास

डाउन टू अर्थ पड़ताल: कहां अटकी है गांव-गांव तक इंटरनेट पहुंचाने वाली योजना

देश के छह लाख गांवों को हाई स्पीड इंटरनेट से जोड़ने वाली भारतनेट योजना लगातार पिछड़ रही है

Vivek Mishra, Raju Sajwan

छत्तीसगढ़ के बेमेतरा जिले में बाबा मोहतारा गांव के सरकारी स्कूल में 10वीं कक्षा में पढ़ने वाली नेहा वर्मा दो साल से ढंग से पढ़ाई नहीं कर पाई है। मार्च 2020 से शुरू हुए देशव्यापी बंद के बाद जब स्कूल बंद हुए तो वह आठवीं में थी। बिना परीक्षा दिए उसने आठवीं पास की और फिर नौंवी की ऑनलाइन पढ़ाई शुरू हो गई, लेकिन उसके परिवार के पास स्मार्टफोन नहीं था। लगभग यही स्थिति उसके गांव के सभी बच्चों की थी। आखिरकार कुछ महीने बाद गांव की सभी बच्चियां पड़ोस के गांव जाने लगी, जहां कुछ परिवारों के पास फोन भी था और जियो मोबाइल सर्विस का इंटरनेट कनेक्शन भी। हालांकि कई बार मोबाइल नेटवर्क नहीं आता तो वे बिना पढ़े घर लौट जाते थे।

“जब से स्कूल खुले हैं, तब से ढंग से पढ़ाई शुरू हो पाई है। भगवान करे, अब दोबारा वो दिन न देखना पड़े, वर्ना हम तो कभी पढ़-लिख कर आगे नहीं बढ़ पाएंगे।” जब नेहा यह बात कहती है तो उसकी आंखों में अपने भविष्य को लेकर डर साफ दिखता है। नेहा या उसके गांव की बच्चियां ही ऐसी नहीं हैं, जो लॉकडाउन के दौरान देश में डिजिटल असमानता की शिकार हुई।

मार्च 2021 में जारी संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनिसेफ) की सर्वे रिपोर्ट में कहा गया कि कोविड-19 लॉकडाउन के चलते 2020 में देश भर के स्कूल बंद रहे और इससे प्राथमिक और माध्यमिक स्कूलों के 24.7 करोड़ बच्चे प्रभावित हुए। रिपोर्ट के मुताबिक भारत में चार में से एक बच्चे के पास ही डिजिकल उपकरण और इंटरनेट की सुविधा उपलब्ध है। इसलिए भारत में ऑनलाइन शिक्षा को सभी तक पहुंचा पाना संभव नहीं है। इस रिपोर्ट में कहा गया कि कोविड से पहले देश भर में करीब 24 फीसदी घरों में ही इंटरनेट की पहुंच थी। कोविड-19 की वैक्सीन वितरण को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने भी डिजिटल असामनता पर सवाल उठाए थे।

डिजिटल असमानता की बढ़ती खाई के प्रति सरकार भी अपनी चिंता जताती रही है। 1 फरवरी 2022 को वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण के बजट भाषण में यह चिंता साफ दिखाई दी। उन्होंने अपने बजट भाषण में कहा, “हमारी सोच है कि शहरवासियों की तरह सभी गांवों और गांव में रहने वाले लोगों को ई-सेवाएं, संचार सुविधाएं और डिजिटल संसाधन समान रूप से मिलने चाहिए। इसके लिए बजट 2022-23 में निजी सार्वजनिक साझेदारी (पीपीपी) के माध्यम से भारतनेट परियोजना के तहत दूरदराज के क्षेत्रों सहित सभी गांवों में ऑप्टिकल फाइबर केबल (ओएफसी) बिछाने का ठेका दिया जाएगा, जो 2025 तक पूरा होने की उम्मीद है।”

दरअसल, वित्त मंत्री जिस भारतनेट परियोजना की बात कर रही थी, उसकी ही हकीकत जानने के लिए डाउन टू अर्थ 14 फरवरी 2022 को नेहा के गांव बाबा मोहतारा पहुंचा था। केंद्र सरकार हर गांव तक ब्रांडबैंड सर्विसेज पहुंचाने के उद्देश्य से चल रही भारतनेट परियोजना को देश में डिजिटल असमानता को दूर करने और गांवों तक प्रशासनिक सेवाओं को पहुंचाने का सबसे बड़ा जरिया बता रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 23 फरवरी 2022 को आम बजट 2022-23 पर आयोजित एक वेबिनार में कहा कि ब्रॉडबैंड न केवल गांवों में सुविधाएं प्रदान करेगा, बल्कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था में कौशल प्राप्त युवाओं का एक बड़ा पूल भी तैयार करेगा।

ब्रॉडबैंड, ग्रामीण क्षेत्रों में सेवा क्षेत्र का विस्तार करने और अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने में मदद करेगा। दरअसल, भारत के लिए डिजिटल असमानता और प्रौद्योगिकी के जरिए शासन (टेक्नोलॉजी गवर्नेंस) एक बड़ी चुनौती बन गया है। विश्व आर्थिक मंच (वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम) द्वारा जनवरी 2022 में जारी ग्लोबल रिस्क रिपोर्ट 2022 ने सरकार की चिंता को और बढ़ा दिया है। इस रिपोर्ट में कहा गया कि भारत के लिए पांच बड़े खतरों में चौथा खतरा डिजिटल गवर्नेंस की असफलता और पांचवां बड़ा खतरा डिजिटल असमानता है। अंतर्राज्यीय संबंधों में बिखराव को पहला, अर्थव्यवस्था पर कर्ज बढ़ने को दूसरा, युवाओं में आक्रोश को तीसरा बड़ा खतरा बताया गया। जानकार मानते हैं कि अगर गांवों में डिजिटल कनेक्टविटी बढ़ती है तो भारत दो बड़े खतरों को कम कर सकता है, जिसमें टेक्नालॉजी गवर्नेंस और डिजिटल असमानता शामिल हैं।

नेहा के गांव बाबा मोहतारा में एक साल पहले भारतनेट की ओएफसी केबल पहुंच चुकी है। यहां उपकरण भी लगा दिए गए हैं, जिसे ग्रामीण इंटरनेट बक्सा बुलाते हैं, लेकिन न ही वह सक्रिय हैं और न ही उसका किसी तरह का पंचायत में इस्तेमाल हो रहा है। जब डाउन टू अर्थ इस गांव से सटे मोहभट्टा पहुंचा तो पाया कि जिस कमरे में उपकरण लगे हैं वहां धूल और मकड़ी के जाले जम गए हैं। कई महीनों बाद वह कमरा खोला गया।

कमरे में अंधेरा था और ग्राम सचिव ने बताया कि उनसे कहा गया था कि इस कमरे को ठंडा रखना है लेकिन अभी वहां ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है। ग्राम सचिव ने बताया कि जब से उपकरण लगे हैं, तब से ही बंद है। उन्हें इस बारे में कुछ नहीं बताया गया। वहीं, दुर्ग के बनचरौदा गांव में ग्राम सचिव की कुर्सी के ठीक पीछे ये उपकरण लगे हैं। यहां भी इंटरनेट सेवा चालू नहीं है। ग्राम सचिव ने कहा कि हम इसे कभी नहीं छेड़ते हैं, यह जब से लगा है तब से चला नहीं। इसी तरह बेमतरा जिले के बसनी व ओड़िया, कबीरधाम जिले के पनेका पंचायत में भी इंटरनेट सेवा चालू हालत में नहीं मिली। हालांकि सरकारी रिकॉर्ड बताते हैं कि छत्तीसगढ़ की 8,532 ग्राम पंचायतों में ओएफसी पहुंच चुकी है और इनमें से 3,497 ग्राम पंचायतों में चालू हालत में है।

क्या है भारतनेट

2011 में ही विश्व बैंक की एक स्टडी रिपोर्ट आई थी। इस रिपोर्ट में कहा गया था कि 10 प्रतिशत ब्रांडबैंड कनेक्शन बढ़ने से किसी भी अर्थव्यवस्था की सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 1.5 प्रतिशत वृद्धि हो सकती है। इस स्टडी को आधार बनाते हुए तत्कालीन केंद्र सरकार (यूपीए) ने राष्ट्रीय ऑप्टिकल फाइबर नेटवर्क (एनओएफएम) योजना की शुरुआत की। इसका मकसद देश की ढाई लाख ग्राम पंचायतों तक तेज गति का ब्रांडबैंड नेटवर्क पहुंचाना था। 25 अक्टूबर 2011 को हुई केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में इसे मंजूरी दी गई। तब कहा गया था कि इस योजना से अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलेगी और युवाओं को अतिरिक्त रोजगार, ई-एजुकेशन, ई-हेल्थ, ई-एग्री जैसी सुविधाएं मिलेंगी। इससे गांवों से शहरों की ओर पलायन कर रहे लोगों को भी रोका जाएगा। इसके लिए 2012 में एक नया केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रम (पीएसयू) भारत ब्रॉडबैंड नेटवर्क लिमिटेड (बीबीएनएल) का गठन किया गया। सहयोग की जिम्मेवारी रेलवे की दूरसंचार कंपनी रेलटेल और भारत संचार निगम लिमिटेड (बीएसएनएल) को दी गई। लेकिन 2014 तक केवल 350 किमी ओएफसी बिछाई जा सकी।

साल 2014 में सरकार बदली। भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) सरकार ने परियोजना की स्थिति की जांच की और इसे भारतनेट के नाम से शुरू करने का फैसला लिया। इस योजना के तहत बीएसएनएल द्वारा जिलों में ब्लॉक स्तर पर बनाए गए एक्सचेंज से ग्राम पंचायत तक अंडरग्राउंड ऑप्टिकल फाइबर केबल बिछाए जाते हैं। हर ग्राम पंचायत भवन में सोलर पैनल, राउटर, मॉडम और जीपीओएन (गीगाबाइट पेसिव ऑप्टिकल नेटवर्क) उपकरण लगाए जाते हैं और 100 एमबीपीएस क्षमता की ब्रॉडबैंड सर्विस शुरू की जाती है। हर ग्राम पंचायत से पांच कनेक्शन सेवाएं देने वाले संस्थानों या विलेज लेवल एंटरप्रेन्योर (वीएलई) को दिए जाते हैं। इन कनेक्शनों का इंस्टॉलेशन मुफ्त होता है और एक साल के लिए सर्विस चार्ज भी नहीं लिया जाता। इसके बाद ग्रामीणों को व्यक्तिगत सेवाएं दी जाती हैं। ये दो तरीके से दी जाती हैं। एक, पंचायत भवन और गांव में जगह-जगह वाईफाई हॉटस्पॉट कर अलग-अलग रिचार्ज प्लान के तहत इंटरनेट सर्विस दी जाती है। दूसरा, जो लोग फाइबर टू दी होम (एफटीटीएच) कनेक्शन लेने चाहते हैं, उनके घरों तक फाइबर केबल के जरिए कनेक्शन दिए जाते हैं।

अंतहीन समयसीमा

गांवों तक हाईस्पीड इंटरनेट पहुंचाने वाली यह परियोजना जहां पूरे देश के लिए बहुत महत्वपूर्ण है, वहीं, इसकी चुनौतियां भी बहुत अधिक है। इस वजह से यह लगातार अपने लक्ष्य से पिछड़ रही है। सबसे पहले यूपीए सरकार ने अक्टूबर 2011 में इस परियोजना की शुरुआत की, तब कहा गया था कि दो साल में परियोजना पूरी हो जाएगी। लेकिन 2011 से 2014 के बीच केवल 350 किलोमीटर लंबी ओएफसी बिछाई गई और समयसीमा को बढ़ाकर दिसंबर 2015 कर दिया गया। सरकार के बदलने पर न केवल परियोजना का नाम बदला गया बल्कि नई समयसीमा मार्च 2018 रखी गई। लेकिन उसके बाद समयसीमा पहले मार्च 2019, फिर मार्च 2020, अगस्त 2021 की गई। कोविड-19 महामारी और लॉकडाउन के बहाने नई समयसीमा अगस्त 2023 रखी गई। अब 1 फरवरी 2022 को घोषित बजट में भारतनेट परियोजना की समयसीमा 2025 कर दी गई है।

अब तक भारतनेट परियोजना किस हालत में पहुंची है? देश में कुल 2,64,176 ग्राम पंचायतें हैं। बीबीएनएल के मुताबिक 5,67,123 किलोमीटर लंबी ओएफसी बिछ चुकी हैं। 11 मार्च 2022 तक 1,70,463 ग्राम पंचायतों (64.52 प्रतिशत) तक ब्रॉडबैंड सर्विस पहुंचा कर सर्विस के लिए तैयार कर दी गई है। हालांकि स्टेट्स रिपोर्ट्स बताती है कि इनमें से 93,846 पंचायतों (55.05 प्रतिशत) में कनेक्शन चालू (ऑन) हालत में हैं, जबकि शेष कनेक्शन या तो बंद हैं या उनकी स्थिति की जानकारी अज्ञात है (देखें, कहां तक पहुंचा भारतनेट,)। भारतनेट परियोजना पर खर्च को लेकर अक्सर सवाल उठते रहे हैं। ऐसे ही एक सवाल के जवाब में 16 मार्च 2022 को केंद्रीय संचार राज्य मंत्री देवूसिंह चौहान ने लोकसभा में बताया कि 2018-19 से चालू वित्त वर्ष 2021-22 के दौरान यूनाइटेड सर्विसेज ओब्लीगेशन फंड (यूएसओएफ) से भारतनेट परियोजना के तहत फरवरी 2022 तक 17,565.25 करोड़ रुपए की राशि जारी की जा चुकी है। कुल अनुमोदित लागत 61,109 करोड़ रुपए है। इसमें पंचायतों को कनेक्टविटी प्रदान करने के लिए 42,068 करोड़ रुपए और 16 राज्यों के सभी बसे हुए गांवों तक भारतनेट विस्तार के लिए सार्वजनिक निजी भागीदारी (पीपीपी) मॉडल के कार्यान्वयन के लिए वायबिलिटी गैप फंड के तौर पर 19,041 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है।



प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सभी 6 लाख गांवों को इस योजना के तहत कवर करने को कहा है। दिसंबर 2021 में संसद में रखी गई संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी पर संसदीय समिति की रिपोर्ट में दूसरे चरण में हो रही देरी पर सवाल उठाते हुए कहा कि दूसरे चरण का काम आठ राज्यों पर अधिक निर्भर है। इनमें से 65 हजार ग्राम पंचायतों में राज्य सरकारें खुद यह काम कर रही हैं। आठ राज्यों में से छत्तीसगढ़, झारखंड, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और ओडिशा में भी काम धीमा चल रहा है। वहीं, 23 हजार पंचायतों में बीएसएनएल द्वारा किया जा रहा है, लेकिन बीएसएनएल आर्थिक तंगी के दौर से गुजर रहा है। सरकार को यह तंगी दूर करनी चाहिए। अब सरकार पीपीपी मॉडल के तहत निजी क्षेत्र के भरोसे इस परियोजना को पूरा करने का सपना पाले हुए है, लेकिन इसमें अपना फायदा न देखते हुए निजी क्षेत्र आगे नहीं बढ़ रहा है।

फरवरी 2022 के अंतिम सप्ताह में बीबीएनएल को एक बड़ा फैसला लेना पड़ा और 16 राज्यों के 3.61 लाख गांवों को ओएफसी नेटवर्क से जोड़ने के लिए जारी किए गए टेंडर को रद्द करना पड़ा, क्योंकि जिन प्राइवेट कंपनियों ने इस टेंडर में हिस्सा लिया, वे योग्य नहीं पाई गईं। अब ऐसे में कयास लगाया जा रहा है कि सरकार अपनी नई समयसीमा का लक्ष्य भी हासिल नहीं कर पाएगी। दूरसंचार मंत्रालय के एक अधिकारी कहते हैं कि गांवों में डाटा की खपत काफी कम है और ज्यादातर गांवों में मोबाइल इंटरनेट पहुंच चुका है, इसलिए निजी क्षेत्र इसमें दिलचस्पी नहीं दिखा रहा है।

कितना काम आ रहा है भारतनेट

बेशक सरकारी दावे हैं कि 64.54 प्रतिशत ग्राम पंचायतों में सेवा तैयार हो चुकी हैं। लेकिन डाउन टू अर्थ ने जब 17 मार्च को बीबीएनएल की वेबसाइट से एक्टिव ग्राम पंचायत की स्टेटस रिपोर्ट डाउनलोड की तो पाया कि 50 से 55 प्रतिशत कनेक्शन चालू (ऑन) हालत में रहते हैं। जिन पंचायतों में कनेक्शन चालू हालत में है और बीबीएनएल के मुताबिक सबसे बेहतरीन प्रदर्शन कर रही है, उसमें से एक ग्राम पंचायत में डाउन टू अर्थ 11 मार्च 2022 को पहुंचा।

हरियाणा के सोनीपत जिले के ब्लॉक गन्नौर का गांव दतौली में ओएफसी 2014 में ही बिछ गई थी। लगभग चार साल बाद अप्रैल 2018 में यहां पहली बार इंटरनेट सेवाएं शुरू हुई। सांसद आदर्श ग्राम योजना में शामिल इस गांव में 10 वाईफाई हॉटस्पॉट लगाए गए। एक हॉटस्पॉट से 100 मीटर के दायरे में इंटरनेट चलाया जा सकता है। इंटरनेट सेवा उपलब्ध कराने का काम बीएसएनएल के पास था, लेकिन यह काम ज्यादा दिन नहीं चल पाया। आंधी-बरसात में ज्यादा हॉटस्पॉट खराब हो गए और सेवाएं भी ठप पड़ गईं। स्थानीय लोगों का कहना है कि दो-तीन दिन ही वाईफाई ने काम किया। 2019 में बीबीएनएल ने बीएसएनएल से करार तोड़ दिया और मेंटिनेंस अपने हाथ ले लिया। साथ ही, सेवा प्रदाता के तौर पर मिनिस्ट्री ऑफ इलेक्ट्रॉनिक्स एंड इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी के तहत चल रहे कॉमन सर्विस सेंटर (सीएससी) से करार किया।

दतौली गांव के देवराज गोस्वामी कॉमन सर्विस सेंटर (सीएससी) के चैंपियन वीएलई (विलेज लेवल एंटरप्रिन्योर) हैं। वह बताते हैं कि गांव में अब तक दस एफटीटीएच कनेक्शन लग चुके हैं। इनमें से पांच सरकारी भवनों में लगे हैं। उनमें एक गांव के सीनियर सेकेंडरी स्कूल में है, जबकि प्राइमरी स्कूल, आधार सेंटर, आंगनवाड़ी केंद्र और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में कनेक्शन लगे हैं। देवराज कहते हैं कि अभी यहां एक साल के लिए इंटरनेट सर्विस भी मुफ्त दी जा रही है। लेकिन अगले साल से पैसा लिया जाएगा या नहीं, यह फैसला सरकार को करना है। गांव के पांच लोगों ने निजी कनेक्शन भी लगवाया है। ये कनेक्शन लॉकडाउन के दौरान लगे। गांव में लगभग सभी मोबाइल कंपनियों का नेटवर्क है और ज्यादातर लोगों ने मोबाइल से ही काम चलाया, लेकिन इंटरनेट की एक बंधी हुई रफ्तार के लिए लोगों ने फाइबर पर भरोसा जताया।

हालांकि लगभग 15 हजार की आबादी वाले इस गांव में केवल पांच ही निजी कनेक्शन हैं। गांव में मोबाइल नेटवर्क की सुविधा बेहतर होने के कारण लोग अभी एफटीटीएच कनेक्शन नहीं ले रहे हैं। लेकिन दतौली जैसी ग्राम पंचायतों की संख्या कम है। डाउन टू अर्थ ने पाया कि हरियाणा के ही करनाल जिले के असंध ब्लॉक के गांव अरडाना में भारतनेट का फाइबर पहुंच गया है, पंचायत भवन में उपकरण भी लग गया है, लेकिन सेवाएं चालू नहीं हैं। ग्रामीण कहते हैं कि पंचायत भवन में लगा ब्रॉडबैंड कनेक्शन आज तक चालू ही नहीं हुआ। उनके सारे काम प्राइवेट मोबाइल कंपनियों की सेवाओं से चल रहे हैं।

ऐसे में अब देखना यह है कि भारतनेट परियोजना कब और कैसे डिजिटल असमानता की इस बढ़ती खाई को पाट पाती है।