द इकोनॉमिस्ट पत्रिका ने इस अकेले सवाल पर दुनियाभर में अब तक हो चुके चुनावों में हुई हिंसा पर एक व्यापक सर्वेक्षण किया है। इस सर्वेंक्षण में यह बात निकल कर आई कि 2024 में हुए विश्व भर में हुए चुनावों में हिंसा में कमी दर्ज की गई है। इस मामले में भारत भी एक ऐसे देश के रूप् में सामने आया है, जहां 2024 में हुए तमाम चुनावो में हिंसा पहले के मुकाबले कम हुई है।
2024 में एक अरब से अधिक लोग अब तक मतदान कर चुके हैं। जबकि चुनाव में हिंसा होना अब एक सामान्य बात है। और इससे लोकतंत्र और विकास की अवधारणाएं धुंधली पड़ती हैं। साथ ही इससे लोकतंत्र को आघात भी पहुंचता है।
लेकिन जब चुनाव के दौरान हिंसा में कम होती है तो इससे लोकतंत्र को मजबूती मिलती है और विकास कार्यों को एक गति मिलती है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए द इकोनॉमिस्ट पत्रिका ने इस अकेले सवाल पर दुनियाभर में अब तक हो चुके चुनावों में हुई हिंसा पर एक व्यापक सर्वेक्षण किया है।
इस साल अब तक आधी दुनिया में चुनाव हो चुके हैं। और इसमें सबसे महत्वपूर्ण बात यह सामने आई है कि जिन देशों में अब तक चुनाव हो चुके हैं, उनमें से एक भारत भी शामिल है। भारत सर्वेक्षण में लिए गए कुल 27 देशों में से 12 ऐसे देशों में शामिल है, जहां चुनाव के दौरान हुई हिंसा में कमी दर्ज की गई है। और इसमें भारत का नंबर पांचवा है।
सर्वे में बताया गया है कि इन 17 में से पांच ऐसे देश हैं, जहां सबसे अधिक हिंसा हुई है। इसमें पुर्तगाल अव्वल नंबर पर है और अंतिम पायदान पर मंगोलिया का नंबर आता है। भारत में चुनाव के दौरान हिंसा होना आमबात है। लेकिन सर्वे में कहा गया है कि भारत में 2024 के दौरान हुए अब तक के चुनाव में हिंसा का प्रतिशत पूर्व के मुकाबले कमी दर्ज की गई है।
सर्वेक्षण में कहा गया है कि चुनाव के दौरान हुई हिंसा दुनिया भर में लोकतंत्रों के स्वास्थ्य की धारणाओं को प्रभावित कर सकती है। एक हिंसक परिणाम हर जगह निरंकुश लोगों को प्रेरित करेगा और लोगों द्वारा शासन के आदर्श में विश्वास को कम करेगा।
हिंसा से बड़े चुनावों के बीच कुछ देशों में स्पष्ट रूप से लोकतांत्रिक सुधार की दिशा में मजबूत कदम बढ़ेंगे। ध्यान रहे कि 2024 में लगभग 3.4 अरब लोगों की कुल आबादी वाले कम से कम 67 देशों में इस साल राष्ट्रीय चुनाव हो रहे हैं।
सर्वेक्षण में कहा गया है कि लोकतांत्रिक व्यवस्था की मजबूती का सबसे अच्छा उदाहरण भारत में हुए आम चुनाव हैं। जहां भारत के मजबूत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जून में मीडिया के समर्थन और हिंदू राष्ट्रवाद के इस्तेमाल के बावजूद अपना संसदीय बहुमत खो दिया। और उन्हें भी अब मजबूरी में गठबंधन सरकार के जरिए शासन करना पड रहा है।
पिछले साल डराने-धमकाने और नियमों को तोड़ने-मरोड़ने वाले चुनावों में फिर से चुनाव जीतने वाले तुर्की के निरंकुश राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगन को भी मार्च में उस समय शर्मिंदगी उठानी पड़ी जब उनकी पार्टी प्रमुख शहरों में स्थानीय चुनावों में हार गई।
गैर सरकारी संगठन फ्रीडम हाउस के अनुसार पिछले दो दशकों में स्वतंत्रता जैसे कि मतदाताओं, प्रेस और अल्पसंख्यकों के लिए उन देशों की तुलना में अधिक देशों में घटी है, जहां पिछले 18 वर्षों में उनमें वृद्धि हुई है।
2024 में मतदान करने वाले तीन में से एक व्यक्ति ऐसे देश में रहता है, जहां पिछले पांच वर्षों में चुनावों की गुणवत्ता में काफी गिरावट आई है। सर्वें में यह बात निकलकर आई है कि लगभग 42 देशों में लोकतंत्र काफी लचीला साबित हुआ है, जिनके चुनाव स्वतंत्र थे।
चुनावों को कमजोर करने के प्रयास अक्सर विफल हो जाते हैं। 2024 में प्रवेश करते हुए कई पर्यवेक्षकों को चिंता थी कि सोशल मीडिया और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस द्वारा संचालित गलत सूचना अभियान मतदाताओं को धोखा दे सकती है।
अंतर-सरकारी संगठन, इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर डेमोक्रेसी एंड इलेक्टोरल असिस्टेंस के केविन कैसास जमोरा कहते हैं कि मुझे इसके लिए बहुत अधिक सबूत नहीं दिखते। शत्रुतापूर्ण राज्यों द्वारा की गई तोड़फोड़ का सीमित प्रभाव पड़ता है। ताइवान में मतदाताओं ने चीनी धमकी के बावजूद विलियम लाइ चिंग-ते को राष्ट्रपति चुना।
स्वतंत्र संस्थाएं अक्सर उदार मूल्यों के लिए खड़ी होती हैं। सेनेगल में एक मजबूत व्यक्ति की अनिश्चित काल तक शासन करने की महत्वाकांक्षा को देश की शीर्ष अदालत ने पूरी तरह से नकार दिया, सड़कों पर लोकतंत्र समर्थक प्रदर्शनकारियों ने इसकी स्थिति कमजोर कर दी।
आखिरकार मतदान होने के बाद मतदाताओं ने बासिरू डियोमाये फेय को अफ़्रीका का सबसे युवा लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित नेता बनाया। ज्यादातर जगहों पर चुनाव अधिक शांतिपूर्ण रहे हैं। द इकोनॉमिस्ट द्वारा डेटा के विश्लेषण के अनुसार 27 देशों के नमूने में पिछले चुनाव की तुलना में चुनाव-संबंधी हिंसा औसतन कम दर्ज हुई है।
मतदाताओं ने गलत नेताओं को पद से हटाकर या उनके संसदीय बहुमत को खत्म करके उन्हें जवाबदेह बनाया। इस साल अब तक हुए लोकतांत्रिक चुनावों में से आधे से अधिक में (यूरोपीय संसद के चुनावों को छोड़कर) मौजूदा नेताओं के खिलाफ झुकाव देखने को मिला।
ब्रिटेन में विपक्षी लेबर पार्टी ने 1997 के बाद से सबसे अधिक संसदीय सीटें जीतीं। दक्षिण कोरिया में मौजूदा पीपुल पावर पार्टी को भ्रष्टाचार के आरोपों के बीच अप्रैल में करारी हार का सामना करना पड़ा।
विश्व की कई बड़ी उभरती अर्थव्यवस्थाओं में जहां लोकतंत्र की सेहत जैसे सवालों के घेरे में थी, वहां मौजूदा नेताओं को मतदाताओं ने जोरदार तरीके से फटकार लगाई।
भ्रष्टाचार और अक्षमता से तंग आकर दक्षिण अफ़्रीकी मतदाताओं ने 1994 में रंगभेद की समाप्ति के बाद पहली बार सत्तारूढ़ अफ्रीकी नेशनल कांग्रेस से उसका संसदीय बहुमत छीन लिया, जिससे एक समय की सबसे शक्तिशाली पार्टी को सरकार में बने रहने के लिए गठबंधन बनाने पर मजबूर होना पड़ा।