विकास

गांधी के डांडी गांव को है दिन बहुरने का इंतजार

Anil Ashwani Sharma

गुजरात के नवसारी जिले से सोलह किलोमीटर दूर डांडी गांव स्थित है। यह गांव समुद्र किनारे ही स्थित है। यह वह गांव है जहां महात्मा गांधी ने नमक आंदोलन की शुरूआत की थी। आज भी यह गांव अपनी पुरानी यादों को समेटे हुए है।

नवसारी के ऑटो चालक मोहम्मद असलम भाई कहते हैं, डांडी में आज भी ऐसे लोग आते हैं, जिन्हें उस बापू से लगाव था, जिसने इस गांव में आकर इस गांव को अमर बना दिया। हालांकि उन्होंने कहा कि अब उस गांव में ऐसा कुछ नहीं है कि उसे देखने जाएं। डांडी भी जिले के अन्य सैकड़ों गांव की तरह समुद्र किनारे बसा हुआ है।

डांडी में गांधी की प्रतिमा लगी है, जहां बापू ने नमक बना कर अंग्रेजों का कानून तोड़ने की हिमाकत की थी, आज वहां से समुद्र की दूरी एक से डेढ़ किलोमीटर दूर है। गांधी की प्रतिमा के आसपास छोटा बगीचा है और एक संग्रहालय खस्ता हाल में है। यहां के संरक्षक ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि मैं कैसे इस संग्रहालय का रखरखाव करूं? मुझे पिछले छह माह से वेतन नहीं मिला है। हालांकि उनका कहना है कि यह जगह अब वीरान लगती है, लेकिन कभी कभार बाहरी लोग या स्थानीय लोग ही समुद्र देखने या घूमने के बहाने आ ही जाते हैं।

इस गांव में तीन चाय की दुकानें हैं। इन्हीं में से एक चाय की दुकान की मालकिन अम्बा बेन कहती हैं, बापू के इस गांव को देश के लोगों ने भुला दिया है। यहां पर सरकार ने भी ऐसी कुछ व्यवस्था नहीं की कि जिससे पर्यटक आएं। इस गांव में बैठने के लिए एक सीमेंट की बेंच मात्र है। 

गांव के ही विजय भाई कहते हैं कि जब गांधी ने साबरमती से डांडी की चार सौ किलोमीटर की दूरी तय की थी, तब यह डगर बहुत ही कठिन थी, अब तो सड़कें बन गई हैं। वे बताते हैं कि आज भी दूरदराज से लोग डांडी गांव आते हैं कि यहां गांधी की विरासत को संवार कर रखा होगा, लेकिन उन्हें यह देखकर घोर निराशा होती है कि बापू की इस विरासत को न तो केंद्र और न ही राज्य सरकार को संवारने की चिंता है। यहां का संग्रहालय धीरे-धीरे खंडहर में तब्दील होता जा रहा है।

नवसारी निवासी इकबाल भाई कहते हैं, एक बारगी लोग नवसारी तो आ भी जाते हैं, लेकिन इक्का दुक्का ही ऐसे लोग होंगे, जो डांडी गांव जाने की जहमत उठाते हैं। ऐसा नहीं है कि लोग जाना नहीं चाहते। पहली बात तो वहां तक जाने के लिए कोई नियमित परिवहन नहीं है और राज्य परिवहन की बसें जाती भी हैं तो डांडी गांव से काफी दूर रुकती हैं। अगर कोई डांडी जाना चाहता है तो उसे अपने ही वाहन से जाना पड़ता है।